भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 29 और 30: संयोजनों की जांच की प्रक्रिया

Update: 2025-08-11 11:36 GMT

हमने पिछले अनुभागों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के गठन, कर्तव्य और जांच की शक्तियों के बारे में सीखा। अब, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 29 और धारा 30 विस्तार से बताती हैं कि CCI बड़े विलय (Mergers) और अधिग्रहणों (Acquisitions) की जांच कैसे करता है।

यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि CCI किसी भी संयोजन (Combination) का गहन मूल्यांकन करे और इस बात की पुष्टि करे कि इसका भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा (Competition) पर कोई प्रतिकूल प्रभाव (Appreciable Adverse Effect) नहीं पड़ेगा।

धारा 29: संयोजनों की जांच की प्रक्रिया (Procedure for Investigation of Combinations)

धारा 29 उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जिसका CCI पालन करता है जब उसे किसी संयोजन के बारे में जानकारी मिलती है जो प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

1. प्रथम दृष्टया राय और कारण बताओ नोटिस (Prima Facie Opinion and Show Cause Notice)

धारा 29(1) के अनुसार, जब CCI को प्रथम दृष्टया (Prima Facie) यह राय होती है कि कोई संयोजन भारत में प्रासंगिक बाजार (Relevant Market) में प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है या डाल चुका है, तो वह संयोजन के पक्षों (parties) को एक कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी करेगा। इस नोटिस में CCI पूछता है कि उनके संयोजन की जांच क्यों नहीं की जानी चाहिए। पक्षों को नोटिस प्राप्त होने के तीस दिनों (30 days) के भीतर जवाब देना होता है।

• उदाहरण: मान लीजिए कि भारत की दो सबसे बड़ी सीमेंट कंपनियां आपस में विलय करने का प्रस्ताव करती हैं। CCI को लगता है कि इस विलय से बाजार में प्रतिस्पर्धा काफी कम हो सकती है, जिससे ग्राहकों को नुकसान हो सकता है। CCI इस विलय में शामिल दोनों कंपनियों को एक कारण बताओ नोटिस भेजेगा, जिसमें उनसे पूछा जाएगा कि CCI को इस मामले में आगे की जांच क्यों नहीं करनी चाहिए।

• वास्तविक मामला (Actual Case): वोडाफोन (Vodafone) और आइडिया (Idea) के विलय के मामले में, CCI ने प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव का आकलन करने के लिए विस्तृत जांच की। हालांकि CCI ने अंततः विलय को मंजूरी दे दी, लेकिन उसने कंपनियों पर कुछ शर्तें लगाईं ताकि प्रतिस्पर्धा पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके।

2. महानिदेशक की रिपोर्ट (Director General's Report)

धारा 29(1A) के अनुसार, पक्षों से जवाब मिलने के बाद, CCI महानिदेशक (Director General) से एक रिपोर्ट मांग सकता है। महानिदेशक को CCI द्वारा निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर यह रिपोर्ट जमा करनी होगी। यह रिपोर्ट CCI को मामले की और अधिक गहराई से समझ प्रदान करती है।

3. सार्वजनिक सूचना (Public Notice)

धारा 29(2) में एक महत्वपूर्ण कदम का उल्लेख है जो पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। यदि CCI की प्रथम दृष्टया राय है कि संयोजन से प्रतिस्पर्धा पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, तो वह पक्षों के जवाब मिलने के सात कार्य दिवसों (7 working days) के भीतर (या महानिदेशक की रिपोर्ट मिलने के बाद, जो भी बाद में हो) उन्हें संयोजन का विवरण सार्वजनिक (public) करने का निर्देश देगा। यह विवरण ऐसे तरीके से प्रकाशित किया जाना चाहिए जिसे CCI उचित समझता है, ताकि जनता और उन लोगों को इसकी जानकारी हो सके जो संयोजन से प्रभावित हो सकते हैं।

4. सार्वजनिक आपत्तियाँ (Public Objections)

धारा 29(3) सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए, CCI किसी भी व्यक्ति या जनता के सदस्य को, जो संयोजन से प्रभावित हो सकता है, पंद्रह कार्य दिवसों (15 working days) के भीतर CCI को अपनी लिखित आपत्तियाँ जमा करने के लिए आमंत्रित कर सकता है। यह कदम हितधारकों (stakeholders) को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का मौका देता है।

• उदाहरण: जब दो बड़ी दूरसंचार कंपनियां विलय करती हैं, तो उनके ग्राहक और उनके छोटे प्रतिस्पर्धी इस संयोजन से प्रभावित हो सकते हैं। यह प्रावधान ग्राहकों और प्रतिस्पर्धियों को CCI के समक्ष अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अवसर देता है।

5. अतिरिक्त जानकारी (Additional Information)

धारा 29(4) और 29(5) में CCI को अतिरिक्त जानकारी मांगने की शक्ति दी गई है। CCI, आपत्तियाँ जमा करने की अवधि समाप्त होने के पंद्रह कार्य दिवसों (15 working days) के भीतर, संयोजन के पक्षों से और जानकारी मांग सकता है। पक्षों को भी यह जानकारी CCI को पंद्रह दिनों (15 days) के भीतर देनी होगी। यह CCI को मामले का पूरी तरह से मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक सभी डेटा प्राप्त करने में मदद करता है।

6. अंतिम निर्णय (Final Decision)

धारा 29(6) इस प्रक्रिया के अंतिम चरण का वर्णन करती है। सभी जानकारी प्राप्त होने के बाद, CCI पैंतालीस कार्य दिवसों (45 working days) की अवधि के भीतर धारा 31 के प्रावधानों के अनुसार मामले पर कार्यवाही करेगा। धारा 31 वह धारा है जो CCI को संयोजन को मंजूरी देने, अस्वीकार करने या उसमें संशोधन करने की शक्ति देती है।

• वास्तविक मामला: स्नैपडील (Snapdeal) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) के बीच प्रस्तावित विलय के मामले में, CCI ने संभावित प्रतिस्पर्धा-विरोधी प्रभावों की जांच शुरू की थी। हालांकि, यह सौदा अंतिम रूप से निष्पादित नहीं हुआ।

धारा 30: धारा 6(2) के तहत नोटिस की प्रक्रिया (Procedure in case of Notice under Section 6(2))

धारा 30 बहुत ही संक्षिप्त और स्पष्ट है। इसमें कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति या उद्यम ने धारा 6(2) के तहत CCI को एक संयोजन का नोटिस दिया है, तो CCI उस नोटिस की जांच करेगा और धारा 29(1) में दिए गए प्रावधान के अनुसार अपनी प्रथम दृष्टया (Prima Facie) राय बनाएगा। इसके बाद, CCI धारा 29 में वर्णित पूरी प्रक्रिया का पालन करेगा।

• सरल शब्दों में: धारा 30 धारा 6(2) के तहत दिए गए अनिवार्य नोटिस को धारा 29 में निर्धारित विस्तृत जांच प्रक्रिया से जोड़ती है। इसका मतलब है कि कोई भी संयोजन, जिसे धारा 6(2) के तहत अधिसूचित किया गया है, CCI की जांच प्रक्रिया से गुजरेगा, जैसा कि धारा 29 में निर्धारित है।

भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 29 और धारा 30 एक मजबूत और बहु-चरणीय प्रक्रिया स्थापित करती हैं, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी बड़ा विलय या अधिग्रहण भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान न पहुँचाए। यह प्रक्रिया न केवल CCI को जांच करने की शक्ति देती है, बल्कि इसमें पारदर्शिता और हितधारकों (stakeholders) की भागीदारी के लिए भी प्रावधान हैं।

कारण बताओ नोटिस, सार्वजनिक सूचना, और सार्वजनिक आपत्तियां आमंत्रित करना सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने से पहले सभी संबंधित पक्षों की चिंताओं पर विचार किया जाए। यह विस्तृत और सावधानीपूर्वक प्रक्रिया CCI को बाजार की संरचना को प्रभावी ढंग से विनियमित करने और भारत में एक स्वस्थ और प्रतिस्पर्धी आर्थिक वातावरण बनाए रखने में सक्षम बनाती है।

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