भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 27 और 28: CCI की जांच के बाद के आदेश और शक्तियां

Update: 2025-08-09 13:12 GMT

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को मिली शिकायतों और महानिदेशक की विस्तृत जांच के बाद, यदि आयोग यह निष्कर्ष निकालता है कि किसी कंपनी या कंपनियों के समूह ने प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार किया है, तो वह केवल जुर्माना लगाने तक सीमित नहीं होता।

भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 27 और धारा 28 CCI को कई तरह के आदेश जारी करने की शक्ति देती हैं, जिनका उद्देश्य न केवल उल्लंघन को दंडित करना है, बल्कि भविष्य में ऐसे व्यवहार को रोकना और बाजार की संरचना को ठीक करना भी है। इन धाराओं को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये CCI की वास्तविक शक्ति और प्रभाव को दर्शाती हैं।

धारा 27: जांच के बाद आयोग द्वारा जारी किए जाने वाले आदेश

धारा 27 उन विभिन्न आदेशों का विवरण देती है जो CCI, धारा 3 (प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते) या धारा 4 (प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग) के उल्लंघन की पुष्टि होने पर पारित कर सकता है। इन आदेशों को निवारक (रोकने वाले), दंडात्मक (सजा देने वाले) और सुधारात्मक (ठीक करने वाले) उपायों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

• व्यवहार बंद करने का निर्देश (Cease and Desist Order): सबसे पहला और सबसे आम आदेश यह होता है कि उल्लंघन करने वाली कंपनी या कंपनियों के समूह को तुरंत उस प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार को बंद करने और भविष्य में दोबारा उसमें शामिल न होने का निर्देश दिया जाए।

o उदाहरण: यदि CCI को पता चलता है कि कई एयरलाइन कंपनियों ने मिलकर हवाई किराए को कृत्रिम रूप से उच्च बनाए रखने का समझौता किया है, तो CCI उन्हें तुरंत इस समझौते को खत्म करने और भविष्य में ऐसी कोई भी मिलीभगत न करने का आदेश देगा।

• जुर्माना (Imposition of Penalty): CCI उल्लंघन करने वाले प्रत्येक उद्यम पर जुर्माना लगा सकता है, जो आमतौर पर पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत टर्नओवर के 10% से अधिक नहीं होता। हालाँकि, कार्टेल (कई कंपनियों का एक गुप्त समूह) के मामलों में यह दंड बहुत सख्त हो जाता है। CCI प्रत्येक कार्टेल सदस्य पर जुर्माना लगा सकता है, जो या तो उस समझौते के जारी रहने के प्रत्येक वर्ष के लाभ का तीन गुना या प्रत्येक वर्ष के टर्नओवर का 10% हो सकता है, इनमें से जो भी अधिक हो।

o उदाहरण: यदि एक सीमेंट कंपनी को तीन साल तक कार्टेल का हिस्सा पाया जाता है, और उसका वार्षिक टर्नओवर 1000 करोड़ रुपये है और लाभ 100 करोड़ रुपये है, तो उस पर प्रति वर्ष 300 करोड़ रुपये (3 x 100 करोड़) या 100 करोड़ रुपये (10% x 1000 करोड़), यानी 300 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह भारी जुर्माना कार्टेल बनाने के लिए एक मजबूत निवारक के रूप में कार्य करता है।

• समझौतों में संशोधन (Modification of Agreements): CCI यह निर्देश भी दे सकता है कि प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौते को इस हद तक और इस तरीके से संशोधित किया जाए जैसा कि आयोग अपने आदेश में निर्दिष्ट करता है। इसका मतलब है कि पूरा समझौता रद्द करने के बजाय, उसे कानूनी और प्रतिस्पर्धा-अनुकूल बनाया जा सकता है।

• अन्य निर्देश और समूह के सदस्यों के विरुद्ध आदेश (Other Directions and Orders against Group Members): CCI आवश्यकतानुसार अन्य आदेश भी जारी कर सकता है, जिसमें लागत का भुगतान शामिल है। एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी है कि यदि उल्लंघन करने वाला उद्यम किसी समूह का सदस्य है और उस समूह के अन्य सदस्य भी उल्लंघन के लिए जिम्मेदार हैं, तो CCI उन सभी समूह सदस्यों के खिलाफ आदेश पारित कर सकता है।

o उदाहरण: यदि किसी बड़े समूह की एक छोटी सहायक कंपनी प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार में लिप्त पाई जाती है, तो CCI जांच कर सकता है कि क्या मूल कंपनी या समूह के अन्य सदस्य भी इसमें शामिल थे। यदि ऐसा पाया जाता है, तो CCI पूरे समूह पर भी जुर्माना लगा सकता है, जिससे किसी सहायक कंपनी के माध्यम से अनुचित लाभ लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगती है।

धारा 28: प्रमुख स्थिति वाले उद्यम का विभाजन

धारा 28 CCI को एक असाधारण शक्ति देती है जो प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने के लिए अंतिम उपाय के रूप में प्रयोग की जा सकती है। यह धारा CCI को किसी प्रमुख स्थिति वाले उद्यम को विभाजित करने का निर्देश देने की अनुमति देती है, यदि ऐसा करना उसकी प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक है। यह आदेश अन्य किसी भी कानून में मौजूद प्रावधानों के बावजूद लागू होता है।

• उद्देश्य: यह धारा CCI को केवल जुर्माना लगाने से आगे जाकर, बाजार की संरचना को सीधे बदलने की शक्ति देती है। यदि कोई कंपनी इतनी बड़ी और प्रभावशाली हो गई है कि वह बार-बार अपनी शक्ति का दुरुपयोग करती है और प्रतिस्पर्धा को स्थायी रूप से नुकसान पहुँचाती है, तो CCI उसे छोटे, प्रतिस्पर्धी हिस्सों में बाँट सकता है।

• विभाजन आदेश में शामिल विषय (Matters Included in the Division Order): CCI के विभाजन आदेश में कई तरह के निर्देश हो सकते हैं, जैसे:

o संपत्ति, अधिकार और देनदारियों का एक से अधिक संस्थाओं के बीच हस्तांतरण।

o शेयरों, स्टॉक या प्रतिभूतियों का निर्माण, आवंटन या रद्द करना।

o कंपनी के ज्ञापन या एसोसिएशन के लेखों में संशोधन।

o उद्यम का गठन या समापन।

• मुआवजे पर रोक (Restriction on Compensation): इस धारा का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यदि किसी कंपनी के अधिकारी को इस विभाजन के परिणामस्वरूप अपना पद छोड़ना पड़ता है, तो वह किसी भी मुआवजे का दावा करने का हकदार नहीं होगा। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि विभाजन की प्रक्रिया बिना किसी कानूनी अड़चन के पूरी हो सके।

• उदाहरण: कल्पना कीजिए कि एक दूरसंचार कंपनी पूरे देश में अकेली सेवा प्रदाता है और वह लगातार ग्राहकों पर अनुचित और भेदभावपूर्ण कीमतें थोप रही है। यदि जुर्माना लगाने के बाद भी उसका व्यवहार नहीं बदलता है, और CCI को लगता है कि यह एकाधिकार प्रतिस्पर्धा के लिए हानिकारक है, तो CCI उस कंपनी को दो या तीन अलग-अलग, स्वतंत्र कंपनियों में विभाजित करने का आदेश दे सकता है, जो आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगी।

भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 27 और 28 CCI को न केवल एक न्यायिक निकाय के रूप में स्थापित करती हैं जो गलत व्यवहार को दंडित करता है, बल्कि एक नियामक निकाय के रूप में भी स्थापित करती हैं जो बाजार की संरचना को ठीक करने और उसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए आवश्यक उपाय कर सकता है।

जुर्माना, व्यवहार बंद करने के निर्देश और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, प्रमुख उद्यमों के विभाजन का अधिकार CCI को भारत के आर्थिक परिदृश्य में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में एक शक्तिशाली और प्रभावी भूमिका देता है।

Tags:    

Similar News