सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 21 से 24 : इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी करने के लिए लाइसेंस
धारा 21: इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी करने के लिए लाइसेंस
धारा 21 के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति जिसे इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी करने की अनुमति चाहिए, वह नियंत्रक (Controller) के समक्ष आवेदन कर सकता है। लेकिन यह लाइसेंस तभी मिलेगा जब वह व्यक्ति केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ आवश्यक योग्यताओं, विशेषज्ञता, मानव संसाधन, वित्तीय संसाधनों और आधारभूत सुविधाओं की शर्तों को पूरा करता हो।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि कोई कंपनी "डिजिटसर्ट इंडिया लिमिटेड" नाम से एक नया डिजिटल प्रमाणन सेवा शुरू करना चाहती है। उसे यह दिखाना होगा कि उसके पास तकनीकी विशेषज्ञ, डेटा सर्वर, सुरक्षित बुनियादी ढांचा और पर्याप्त वित्तीय संसाधन हैं। यदि ये मानदंड पूरे होते हैं, तो वह लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकती है।
लाइसेंस की वैधता एक निश्चित समय के लिए होगी जो कि केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाएगा। यह लाइसेंस न तो किसी और को हस्तांतरित किया जा सकता है और न ही किसी को विरासत में दिया जा सकता है। साथ ही, यह लाइसेंस कुछ शर्तों और नियमों के अधीन होगा जिन्हें नियंत्रक द्वारा बनाए गए विनियमों में वर्णित किया जाएगा।
धारा 22: लाइसेंस के लिए आवेदन
धारा 22 में यह बताया गया है कि जो कोई भी व्यक्ति या संस्था लाइसेंस प्राप्त करना चाहती है, उसे एक निर्धारित फॉर्म में आवेदन करना होगा, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया है। इसके साथ कुछ आवश्यक दस्तावेज भी देने होते हैं।
पहला दस्तावेज होता है - "सर्टिफिकेशन प्रैक्टिस स्टेटमेंट" यानी प्रमाणन प्रक्रिया संबंधी विवरण जिसमें यह बताया जाता है कि यह संस्था प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को कैसे संचालित करेगी। दूसरा आवश्यक विवरण होता है - आवेदनकर्ता की पहचान की प्रक्रिया संबंधी जानकारी। यानी वे किन-किन माध्यमों से यह सुनिश्चित करेंगे कि जिसे प्रमाण पत्र दिया जा रहा है, वह व्यक्ति वास्तव में वही है।
इसके अलावा, आवेदन के साथ अधिकतम पच्चीस हजार रुपये तक की फीस भी जमा करनी होती है, जो केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। साथ ही, कुछ अन्य आवश्यक दस्तावेज भी देने होते हैं जो सरकार समय-समय पर तय कर सकती है।
उदाहरण के लिए, अगर कोई "साइबरट्रस्ट प्राइवेट लिमिटेड" नाम की संस्था लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहती है, तो उसे यह प्रमाणित करना होगा कि वह प्रमाणन प्रक्रिया कैसे निभाएगी, किस तरह की पहचान प्रक्रिया का पालन करेगी, और वह शुल्क भी अदा करेगी।
धारा 23: लाइसेंस का नवीनीकरण
धारा 23 के अंतर्गत यदि कोई संस्था अपने लाइसेंस को आगे बढ़ाना चाहती है, तो उसे वैधता समाप्त होने से कम से कम 45 दिन पहले नवीनीकरण के लिए आवेदन करना होगा। यह आवेदन भी निर्धारित फॉर्म में किया जाएगा और इसके साथ अधिकतम पाँच हजार रुपये तक की फीस जमा करनी होगी।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि "डिजिटसर्ट इंडिया लिमिटेड" का लाइसेंस 31 दिसंबर 2025 को समाप्त हो रहा है, तो उन्हें 15 नवंबर 2025 से पहले नवीनीकरण का आवेदन देना होगा। ऐसा न करने पर उनका लाइसेंस समाप्त हो सकता है और उन्हें पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करनी पड़ सकती है।
धारा 24: लाइसेंस देने या अस्वीकार करने की प्रक्रिया
धारा 24 के अनुसार, जब नियंत्रक को धारा 21 के तहत कोई आवेदन प्राप्त होता है, तो वह उस आवेदन के साथ आए दस्तावेजों और अन्य जरूरी तथ्यों की जांच करता है। यदि उसे लगता है कि आवेदनकर्ता सभी शर्तों को पूरा करता है, तो वह लाइसेंस प्रदान कर सकता है। यदि ऐसा नहीं है, तो वह आवेदन को अस्वीकार भी कर सकता है।
लेकिन यदि आवेदन को अस्वीकार किया जाना है, तो नियंत्रक को यह सुनिश्चित करना होगा कि आवेदनकर्ता को अपनी बात रखने का उचित अवसर दिया गया है। यह प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत है, जो हमारे संविधान की भी आत्मा है।
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी संस्था का आवेदन अस्वीकार किया जाता है और वह कहती है कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया, तो यह अवैधानिक माना जा सकता है। इसलिए नियंत्रक को पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता से कार्य करना होता है।
धारा 21 से 24 तक की व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि केवल वे ही व्यक्ति या संस्थाएँ इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाण पत्र जारी कर सकें जो तकनीकी, आर्थिक और नैतिक रूप से सक्षम हैं। इससे न केवल आम लोगों का विश्वास बना रहता है, बल्कि डिजिटल लेन-देन और संचार प्रणाली की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शिता, जवाबदेही और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है।
इसलिए, अगर कोई संस्था डिजिटल सर्टिफिकेट जारी करना चाहती है, तो उसे इन धाराओं को गहराई से समझना और सभी आवश्यक शर्तों का पालन करना अनिवार्य है।