भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 20 - 21: CCI द्वारा संयोजनों की जांच और वैधानिक प्राधिकरणों द्वारा संदर्भ

Update: 2025-08-07 11:46 GMT

हमने पिछले खंड में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India - CCI) के कर्तव्यों और जांच की शक्तियों के बारे में सीखा। अब, भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 20 (Section 20) और धारा 21 (Section 21) विशिष्ट रूप से यह बताती हैं कि CCI बड़े विलय (mergers) और अधिग्रहणों (acquisitions) (जिन्हें "संयोजन" कहते हैं) की जांच कैसे करता है और जब अन्य नियामक निकाय (regulatory bodies) Competition से संबंधित मुद्दों का सामना करते हैं तो वे क्या करते हैं।

धारा 20: संयोजनों की जांच (Inquiry into Combinations)

धारा 20 CCI को संयोजनों की जांच करने की शक्ति देती है।

एक तो, CCI अपने खुद के ज्ञान या सूचना के आधार पर जांच शुरू कर सकता है कि क्या कोई अधिग्रहण, नियंत्रण का अधिग्रहण, विलय या समामेलन भारत में Competition पर Appreciable Adverse Effect (पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव) डालता है या डालने की संभावना है। हालांकि, यह जांच किसी संयोजन के प्रभावी होने के एक साल बाद शुरू नहीं की जा सकती। यह सीमा सुनिश्चित करती है कि CCI को समय पर कार्रवाई करनी होगी।

दूसरे, CCI को धारा 6(2) के तहत प्राप्त नोटिस के आधार पर भी जांच करनी होगी। जब कोई कंपनी CCI को किसी संयोजन के बारे में सूचित करती है, तो CCI को यह जांच करनी ही होगी कि क्या उस संयोजन से Competition पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

तीसरे, धारा 20(3) में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो सरकार को हर दो साल में थोक मूल्य सूचकांक (wholesale price index) या विदेशी मुद्रा विनिमय दर (fluctuations in exchange rate of foreign currencies) में उतार-चढ़ाव के आधार पर संयोजन की वित्तीय सीमाओं (जैसे संपत्ति या टर्नओवर का मूल्य) को बदलने की शक्ति देता है। यह सुनिश्चित करता है कि कानून की सीमाएं समय के साथ आर्थिक बदलावों के अनुकूल बनी रहें।

चौथे, धारा 20(4) उन कारकों की एक सूची देती है जिन पर CCI को यह निर्धारित करते समय विचार करना होता है कि क्या किसी संयोजन से Competition पर पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। इन कारकों में शामिल हैं:

• आयात के माध्यम से Competition का स्तर: क्या बाजार में विदेशी उत्पादों से पर्याप्त Competition है?

• बाजार में प्रवेश की बाधाएँ: नए Competitors (प्रतिस्पर्धियों) के लिए बाजार में प्रवेश करना कितना मुश्किल है?

• बाजार में संयोजन का स्तर: क्या बाजार पहले से ही कुछ कंपनियों द्वारा नियंत्रित है?

• काउंटरवैलिंग पावर (countervailing power) की डिग्री: क्या बड़े ग्राहक (जैसे थोक विक्रेता) मर्जर के बाद भी बातचीत करने की स्थिति में होंगे?

• मूल्यों में महत्वपूर्ण वृद्धि की संभावना: क्या संयोजन के परिणामस्वरूप कंपनियों को कीमतें या लाभ मार्जिन (profit margins) बढ़ाने की शक्ति मिलेगी?

• बाजार में Competition बनाए रखने की संभावना: क्या मर्जर के बाद भी प्रभावी Competition जारी रहेगी?

• प्रतिस्थापनीय वस्तुओं की उपलब्धता: क्या उपभोक्ताओं के पास मर्जर की गई कंपनियों के उत्पादों के लिए अन्य विकल्प उपलब्ध हैं?

• फैल होने वाले व्यवसाय की संभावना: क्या मर्जर का उद्देश्य एक ऐसी कंपनी को बचाना था जो अन्यथा फेल हो जाती?

• अभिनव का स्वरूप और सीमा (nature and extent of innovation): क्या मर्जर Innovation को बाधित करेगा?

• लाभ बनाम प्रतिकूल प्रभाव: क्या संयोजन के लाभ (जैसे दक्षता में सुधार) इसके Competition पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से अधिक हैं?

उदाहरण: दो सबसे बड़ी मोबाइल नेटवर्क कंपनियां आपस में विलय करना चाहती हैं। CCI यह जांच करेगा कि क्या विलय के बाद उनके पास इतनी शक्ति होगी कि वे कीमतें बढ़ा सकें, ग्राहकों को कम विकल्प मिलें, या अन्य छोटी कंपनियों के लिए Competition करना असंभव हो जाए। इन सभी कारकों पर विचार करने के बाद ही CCI कोई निर्णय लेगा।

धारा 21: वैधानिक प्राधिकरणों द्वारा संदर्भ (Reference by Statutory Authority)

यह धारा Competition और अन्य नियामक क्षेत्रों के बीच संबंधों को नियंत्रित करती है। धारा 21(1) में कहा गया है कि यदि किसी वैधानिक प्राधिकरण (जैसे भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण - TRAI या भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण - IRDAI) के समक्ष किसी कार्यवाही के दौरान, कोई पक्ष यह मुद्दा उठाता है कि उस प्राधिकरण का कोई निर्णय Competition Act के प्रावधानों के विपरीत है, तो वह प्राधिकरण उस मुद्दे को CCI को संदर्भित (refer) कर सकता है। इसके अलावा, प्राधिकरण अपनी पहल पर (suo motu) भी CCI को ऐसा संदर्भ भेज सकता है।

धारा 21(2) बताती है कि CCI को ऐसा संदर्भ मिलने पर, उसे 60 दिनों के भीतर अपनी राय उस वैधानिक प्राधिकरण को देनी होगी। फिर वह प्राधिकरण CCI की राय पर विचार करेगा और उसके बाद अपने कारणों को दर्ज करते हुए अपने निष्कर्ष देगा।

उदाहरण: मान लीजिए कि TRAI एक नियम बनाता है जो दूरसंचार कंपनियों को एक-दूसरे के साथ नेटवर्क साझा करने से रोकता है। एक दूरसंचार कंपनी TRAI के सामने यह मुद्दा उठाती है कि यह नियम Competition-विरोधी है। TRAI इस मुद्दे को CCI को संदर्भित कर सकता है। CCI इस मामले में अपनी Competition संबंधी राय देगा, और TRAI उस राय पर विचार करने के बाद ही अंतिम निर्णय लेगा।

भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 20 और धारा 21 दो महत्वपूर्ण संस्थागत तंत्र स्थापित करती हैं। धारा 20 यह सुनिश्चित करती है कि बड़े मर्जर और अधिग्रहणों का CCI द्वारा Competition के दृष्टिकोण से गहन मूल्यांकन किया जाए। यह ग्राहकों और बाजार में निष्पक्ष Competition को बनाए रखने के लिए एक अनिवार्य safeguard है।

वहीं, धारा 21 विभिन्न नियामकों के बीच समन्वय (coordination) स्थापित करती है। यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी क्षेत्र में बनाए गए नियम Competition के सिद्धांतों के अनुरूप हों, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में एक समग्र और सुसंगत नियामक वातावरण बना रहे।

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