जल अधिनियम (Water Act, 1974) की धारा 15 में यह व्यवस्था की गई है कि जब किसी संयुक्त बोर्ड (Joint Board) का गठन होता है, तब यह स्पष्ट होना ज़रूरी है कि दिशा-निर्देश (Directions) देने की शक्ति किसके पास होगी।
सामान्य स्थिति में राज्य सरकार अपने राज्य के भीतर प्रदूषण नियंत्रण से जुड़े मामलों में निर्देश जारी कर सकती है। लेकिन यदि संयुक्त बोर्ड बना है, तो कई बार यह स्पष्ट नहीं रहता कि कौन-सा निर्णय केवल राज्य स्तर पर लिया जाएगा और कौन-सा निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लेना होगा। इसी अस्पष्टता को दूर करने के लिए धारा 15 लागू की गई है।
इस धारा के अनुसार यदि कोई दिशा केवल किसी एक राज्य की भौगोलिक सीमा तक सीमित है, तो उस राज्य की सरकार उसे जारी करने के लिए सक्षम होगी। लेकिन यदि दिशा दो या अधिक राज्यों की सीमा से संबंधित है, या फिर किसी केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) से जुड़ा हुआ है, तो ऐसी स्थिति में केवल केंद्र सरकार (Central Government) ही सक्षम होगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतर्राज्यीय विवाद या सीमा से जुड़े मामलों में निर्णय एक केंद्रीय प्राधिकरण के माध्यम से लिया जाए, ताकि किसी भी तरह का टकराव या भ्रम न पैदा हो।
उदाहरण के तौर पर यदि यमुना नदी में प्रदूषण नियंत्रण से जुड़ा आदेश केवल दिल्ली की सीमा तक सीमित है, तो दिल्ली सरकार दिशा जारी कर सकती है। लेकिन यदि यह आदेश हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश तीनों से जुड़ा है, तो यह काम केवल केंद्र सरकार कर सकती है।
केन्द्रीय बोर्ड के कार्य (Section 16 – Functions of the Central Board)
धारा 16 के अनुसार, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) का मुख्य कार्य पूरे देश में नदियों और कुओं की सफाई और प्रदूषण नियंत्रण को बढ़ावा देना है। लेकिन इस सामान्य कार्य के अलावा अधिनियम में कई विशिष्ट जिम्मेदारियाँ भी दी गई हैं।
सबसे पहले, केन्द्रीय बोर्ड केंद्र सरकार को सलाह देता है कि जल प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए कौन-कौन से कदम उठाए जाएँ। इसके साथ ही यह विभिन्न राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की गतिविधियों का समन्वय करता है और यदि राज्यों के बीच कोई विवाद होता है तो उसे सुलझाता है।
बोर्ड का एक बड़ा कार्य है तकनीकी सहायता और मार्गदर्शन देना। उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य बोर्ड को किसी नदी में औद्योगिक अपशिष्टों के परीक्षण की नई तकनीक अपनानी है, तो केन्द्रीय बोर्ड उन्हें न केवल तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है बल्कि शोध (Research) भी कराता है और ज़रूरत पड़ने पर प्रशिक्षण (Training) की व्यवस्था करता है।
केन्द्रीय बोर्ड व्यापक स्तर पर जन-जागरूकता (Public Awareness) कार्यक्रम भी आयोजित करता है। यह काम समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीविज़न और अब डिजिटल माध्यमों के जरिए किया जाता है ताकि लोग समझ सकें कि जल प्रदूषण केवल सरकार का नहीं बल्कि हर नागरिक का मुद्दा है।
इसके अलावा बोर्ड आँकड़े (Statistics) एकत्र करता है, शोध रिपोर्ट प्रकाशित करता है, मैनुअल और गाइड तैयार करता है जिनमें यह बताया जाता है कि गंदे पानी का शोधन (Treatment) कैसे किया जाए और किस तरह औद्योगिक अपशिष्टों का सुरक्षित निस्तारण किया जा सकता है।
धारा 16 में यह भी प्रावधान है कि केन्द्रीय बोर्ड देशभर में मानक (Standards) तय कर सकता है। लेकिन ये मानक राज्य की ज़रूरत और नदी की प्रकृति को ध्यान में रखकर अलग-अलग भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा जैसी बड़ी नदी में घुलनशीलता (Dilution Capacity) अधिक है, जबकि राजस्थान की छोटी नदियों में यह क्षमता कम है। इसलिए दोनों जगहों पर प्रदूषण की सीमा अलग-अलग तय की जा सकती है।
केन्द्रीय बोर्ड राष्ट्रीय स्तर पर बड़े कार्यक्रम भी चलाता है, जैसे गंगा एक्शन प्लान और नेशनल रिवर कंज़र्वेशन प्लान। इन योजनाओं का उद्देश्य केवल प्रदूषण रोकना ही नहीं बल्कि जल स्रोतों को दीर्घकाल तक सुरक्षित बनाए रखना भी है।
अंत में, बोर्ड अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए प्रयोगशालाएँ (Laboratories) स्थापित करता है या मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की सेवाएँ लेता है। इन प्रयोगशालाओं में नदियों और कुओं से लिए गए पानी के नमूनों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है ताकि यह पता चल सके कि प्रदूषण का स्तर कितना है और उसे नियंत्रित करने के लिए कौन-सी तकनीक कारगर होगी।
राज्य बोर्ड के कार्य (Section 17 – Functions of the State Board)
धारा 17 के अनुसार, प्रत्येक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board – SPCB) अपने राज्य की नदियों और कुओं के प्रदूषण नियंत्रण की ज़िम्मेदारी निभाता है। जहाँ केन्द्रीय बोर्ड पूरे देश पर ध्यान देता है, वहीं राज्य बोर्ड अपने क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करता है।
राज्य बोर्ड का पहला कार्य है कि वह अपने राज्य के लिए एक समग्र योजना (Comprehensive Programme) बनाए ताकि प्रदूषण रोकने और नियंत्रित करने के प्रयास व्यवस्थित रूप से किए जा सकें। साथ ही, यह राज्य सरकार को परामर्श देता है कि किन नीतियों और परियोजनाओं को लागू किया जाना चाहिए।
राज्य बोर्ड सूचना एकत्र करता है और उसे जनता तक पहुँचाता है। इसके साथ ही यह शोध (Research) को बढ़ावा देता है ताकि स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप प्रदूषण नियंत्रण की नई तकनीकें विकसित की जा सकें। उदाहरण के लिए, पंजाब का बोर्ड धान की फसल में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों के कारण नदियों में हो रहे प्रदूषण पर विशेष शोध कर सकता है।
राज्य बोर्ड निरीक्षण (Inspection) भी करता है। इसके अधिकारी कारखानों, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और अपशिष्ट निस्तारण इकाइयों का दौरा करते हैं और देखते हैं कि क्या वहाँ निर्धारित मानकों का पालन हो रहा है। यदि नहीं हो रहा, तो वे आदेश जारी करते हैं कि नये शोधन संयंत्र लगाए जाएँ या पुराने संयंत्रों में सुधार किया जाए।
राज्य बोर्ड का एक अहम कार्य है मानक तय करना। यह अपशिष्ट जल (Effluent) की सीमा निर्धारित करता है कि कितनी मात्रा में और किस प्रकार का गंदा पानी नदियों में छोड़ा जा सकता है। यदि कोई उद्योग इन मानकों का पालन नहीं करता तो राज्य बोर्ड उसे दंडित भी कर सकता है।
राज्य बोर्ड स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से भी नए तरीके विकसित करता है। उदाहरण के लिए, जिन जगहों पर नदियाँ साल के अधिकांश समय सूखी रहती हैं, वहाँ बोर्ड ज़मीन पर अपशिष्ट जल डालने की पद्धति विकसित करता है। इसी तरह, जहाँ जल की कमी है, वहाँ अपशिष्ट जल का उपयोग कृषि में करने की विधि विकसित की जाती है।
राज्य बोर्ड यह तय करता है कि किसी विशेष धारा या कुएँ में कितना प्रदूषण सहन किया जा सकता है। इसके बाद वह उद्योगों को यह मानक लागू करने के लिए बाध्य करता है। साथ ही, राज्य बोर्ड यह भी देखता है कि कोई नया उद्योग कहाँ स्थापित किया जाए ताकि उसके कारण नदी या कुएँ में प्रदूषण न फैले।
जैसे केन्द्रीय बोर्ड के पास, वैसे ही राज्य बोर्ड के पास भी प्रयोगशालाएँ स्थापित करने की शक्ति है। इन प्रयोगशालाओं में स्थानीय नदियों और कुओं के जल की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है ताकि प्रदूषण के स्तर पर लगातार निगरानी रखी जा सके।
धारा 15 से 17 तक के प्रावधान यह दर्शाते हैं कि जल अधिनियम 1974 केवल एक कानून नहीं बल्कि एक संगठित व्यवस्था है। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किस स्तर पर कौन-सी संस्था को निर्णय लेने का अधिकार होगा और उनकी जिम्मेदारियाँ क्या होंगी। केंद्र और राज्य बोर्ड के कार्यों को अलग-अलग परिभाषित करके अधिनियम ने प्रदूषण नियंत्रण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाया है।
उदाहरण के तौर पर यदि गंगा नदी को देखें, तो यह कई राज्यों से होकर बहती है। इसलिए इसके प्रदूषण नियंत्रण के लिए केन्द्रीय बोर्ड और केंद्र सरकार की भूमिका प्रमुख होगी। लेकिन यदि किसी राज्य के भीतर कोई छोटी नदी प्रदूषित हो रही है, तो उस पर राज्य बोर्ड अधिक ध्यान देगा।
इस तरह यह अधिनियम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर दोनों पर संतुलन स्थापित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि जल स्रोतों की रक्षा केवल कागज़ी कार्यवाही न होकर एक व्यवहारिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया बने।