राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 111 से 115 : सीमाओं से संबंधित विवादों का निवारण

Update: 2025-05-26 11:40 GMT

धारा 111: सीमाओं से संबंधित विवादों का निवारण

इस धारा के अनुसार, यदि किसी भूमि की सीमा को लेकर विवाद उत्पन्न होता है, तो उसे निपटाने की जिम्मेदारी भूमि अभिलेख अधिकारी (Land Records Officer) की होगी। सबसे पहले अधिकारी यह प्रयास करेगा कि वह विवाद का निपटारा पहले से उपलब्ध सर्वेक्षण मानचित्रों के आधार पर करे। यदि ऐसा मानचित्र उपलब्ध नहीं है, या किसी कारण से उसका उपयोग संभव नहीं है, तो वह वर्तमान भौतिक कब्जे (actual possession) के आधार पर निर्णय करेगा।

यदि अधिकारी यह निश्चित नहीं कर पाता कि कौन-सा पक्ष उस भूमि पर वास्तव में काबिज है, या यह सामने आता है कि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से, पिछले तीन महीने के भीतर उसकी भूमि से बेदखल किया गया है, तो अधिकारी एक संक्षिप्त जांच करके यह तय करेगा कि किस पक्ष को भूमि पर अधिकार मिलना चाहिए। उसके बाद वही सीमा तय की जाएगी।

उदाहरण: मान लीजिए कि दो किसानों – रामू और श्यामू – के खेतों की सीमा को लेकर विवाद है। अधिकारी पहले सर्वेक्षण के नक्शे देखता है, लेकिन वे पुराने और अस्पष्ट हैं। फिर वह देखता है कि जमीन पर किसका कब्जा है। यदि यह स्पष्ट नहीं होता कि कौन वहां है, और पता चलता है कि रामू को तीन महीने पहले श्यामू ने जबरन हटाया था, तो अधिकारी यह मान सकता है कि रामू का कब्जा सही था और सीमा उसी के अनुसार तय कर दी जाएगी।

धारा 112: नक्शा और खेत पुस्तिका की तैयारी

इस धारा में कहा गया है कि जब किसी क्षेत्र में सर्वेक्षण और अभिलेख संबंधी कार्य हो रहा हो, तो उस क्षेत्र के प्रत्येक गाँव या गाँव के भाग के लिए भूमि अभिलेख अधिकारी को नक्शा और खेत पुस्तिका (field book) तैयार करनी होगी। यह कार्य राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार होगा।

नक्शा, गाँव के प्रत्येक खेत या खसरा संख्या को दर्शाता है कि कौन-सी भूमि कहां स्थित है और किस प्रकार की है। वहीं खेत पुस्तिका में हर खेत का क्षेत्रफल, फसल, मालिक का नाम आदि जानकारी दर्ज की जाती है। ये दोनों दस्तावेज गाँव की भूमि व्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

उदाहरण: मान लीजिए कि टोंक जिले के किसी गाँव में सर्वेक्षण हो रहा है। अधिकारी वहाँ हर खेत का नक्शा बनाएगा और हर खेत का विवरण खेत पुस्तिका में दर्ज करेगा, जैसे कि खसरा संख्या 101 पर गेहूं की फसल है और इसका मालिक गणपत लाल है।

धारा 113: अधिकार अभिलेखों की तैयारी

जब किसी क्षेत्र में सर्वेक्षण और अभिलेख कार्य या केवल अभिलेख कार्य किया जा रहा हो, तब भूमि अभिलेख अधिकारी को प्रत्येक गाँव या उसके भाग के लिए “अधिकार अभिलेख” (record of rights) तैयार करना होगा। इसका उद्देश्य यह होता है कि उस क्षेत्र की भूमि पर किसका क्या अधिकार है, इसका स्पष्ट विवरण अभिलेखों में हो।

यह अधिकार अभिलेख भूमि मालिकों, काश्तकारों और अन्य अधिकारधारकों की पहचान, उनकी हिस्सेदारी और भूमि के प्रकार को स्पष्ट करता है। इससे भूमि विवादों की संभावना कम होती है और प्रशासन के लिए भी पारदर्शिता रहती है।

उदाहरण: अगर किसी गाँव में यह रिकॉर्ड तैयार होता है तो उसमें यह दर्ज किया जाएगा कि किस व्यक्ति के पास कितनी भूमि है, वह किस प्रकार का स्वामी है (मालिक, बंधक, किरायेदार आदि), और किस खसरा संख्या पर उसका कब्जा है।

धारा 114: अधिकार अभिलेखों की सामग्री

यह धारा बताती है कि अधिकार अभिलेख में कौन-कौन से विवरण होने चाहिए। इसे राज्य सरकार द्वारा तय विधि के अनुसार तैयार किया जाएगा। इसके मुख्य भाग इस प्रकार हैं:

(क) खेवट (Khewat): यह रजिस्टर उस क्षेत्र के सभी भूमि स्वामियों (estate-holders) का होता है। इसमें यह बताया जाता है कि किस व्यक्ति के पास कितनी भूमि है, उसका स्वामित्व का प्रकार क्या है, उसके साथ कोई सह-स्वामी है या नहीं, कोई बंधक है या कोई व्यक्ति किरायेदार नहीं होकर अन्य प्रकार से भूमि पर काबिज है तो वह भी दर्शाया जाता है।

(ख) खतौनी (Khatauni): यह रजिस्टर उन सभी व्यक्तियों का होता है जो उस क्षेत्र में खेती कर रहे हैं या किसी भी प्रकार से भूमि का उपयोग कर रहे हैं। इसमें धारा 121 में वर्णित विवरण दिए जाते हैं, जैसे भूमि का प्रकार, फसल, कब्जा करने वाले का नाम आदि।

(ग) कर-मुक्त भूमि रजिस्टर: इसमें उन सभी व्यक्तियों का विवरण होगा जो किसी भूमि का उपयोग बिना किसी कर या राजस्व के कर रहे हैं।

(घ) अन्य रजिस्टर: राज्य सरकार यदि आवश्यक समझे तो अन्य प्रकार के रजिस्टर भी निर्धारित कर सकती है।

उदाहरण: खेवट रजिस्टर में यह दर्ज होगा कि बालमुकुंद के पास खेवट संख्या 15 है जिसमें 5 बीघा भूमि है। उसके सह-स्वामी के रूप में उनके भाई का नाम दर्ज है और भूमि पर कोई बंधक नहीं है। खतौनी में यह दर्ज होगा कि वही भूमि पर वह गेहूं की खेती कर रहा है।

धारा 115: स्वामी रहित भूमि पर दावा आमंत्रित करना

जब किसी क्षेत्र में सर्वेक्षण या अभिलेख कार्य हो रहा हो, और भूमि अभिलेख अधिकारी को कोई भूमि ऐसी प्रतीत हो जो कि बिना किसी वैध स्वामी के है, तो उसे उस भूमि को राज्य सरकार की संपत्ति मानने का इरादा प्रकट करना होगा।

इसके लिए अधिकारी एक घोषणा (Proclamation) जारी करता है जिसमें यह कहा जाता है कि ऐसी भूमि को राज्य की संपत्ति माना जाएगा, यदि कोई व्यक्ति तीन महीने की अवधि के भीतर यह नहीं सिद्ध कर दे कि उसका उस भूमि पर कोई वैध दावा है। जो भी व्यक्ति उस भूमि पर कोई दावा करता है, उसे एक लिखित याचिका (written petition) देनी होती है जिसमें वह यह बताए कि उसका दावा किस आधार पर है।

यदि याचिका दी जाती है, तो भूमि अभिलेख अधिकारी संक्षिप्त जांच (summary inquiry) करेगा और तय करेगा कि दावा सही है या नहीं।

उदाहरण: मान लीजिए किसी क्षेत्र में एक चार बीघा जमीन पड़ी है जिस पर कोई खेती नहीं कर रहा और न ही कोई दस्तावेज उपलब्ध है। अधिकारी यह मानता है कि वह भूमि बिना स्वामी की है और घोषणा करता है कि उसे राज्य की संपत्ति माना जाएगा। फिर कोई व्यक्ति – जयराम – आवेदन देकर कहता है कि वह जमीन उसके दादा के नाम थी और उसने उसके कर भी अदा किए हैं, पर रिकॉर्ड में गलती से दर्ज नहीं हुआ। अधिकारी इस याचिका की जांच करेगा और यदि संतुष्ट हुआ तो भूमि जयराम के नाम दर्ज की जा सकती है।

राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 111 से 115 तक भूमि के अभिलेख, सीमाओं के निर्धारण, अधिकारों की पुष्टि और स्वामी रहित भूमि के प्रबंधन की एक सुस्पष्ट और न्यायिक व्यवस्था प्रदान करती हैं। इन धाराओं का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी गाँव या क्षेत्र की भूमि पर किसका अधिकार है, कौन काश्तकार है, किसके पास क्या कब्जा है, यह सब स्पष्ट रूप से अभिलेखों में दर्ज हो।

साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि यदि कोई भूमि बिना स्वामी के प्रतीत होती है तो राज्य उसका अधिग्रहण उचित प्रक्रिया से करे, और यदि किसी व्यक्ति का उस पर अधिकार हो तो उसे न्याय मिले। इन प्रावधानों के माध्यम से राज्य भूमि प्रशासन में पारदर्शिता, न्याय और सार्वजनिक हित सुनिश्चित करता है।

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