राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम 1961 की धारा 69 और 70 : स्टाम्प विक्रेताओं के लिए दंडात्मक प्रावधान
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 एक ऐसा कानून है जो राज्य के भीतर न्यायालयों में प्रस्तुत होने वाले विभिन्न प्रकार के दस्तावेजों, याचिकाओं, अपीलों और अन्य कार्यवाहियों पर लगने वाले शुल्क (कोर्ट फीस) को नियंत्रित करता है।
इस अधिनियम के पिछले अध्यायों में यह बताया गया है कि किन मामलों में शुल्क देना आवश्यक है, किस दस्तावेज पर कितना शुल्क लगेगा, और कौन से दस्तावेज शुल्क से मुक्त होंगे। अधिनियम की धारा 66, 67 और 68 में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि सभी शुल्क मुद्रांक द्वारा वसूले जाएं, किसी दस्तावेज को संशोधित करने पर दोबारा शुल्क न लगे, और मुद्रांक को कैसे रद्द किया जाए।
इन्हीं नियमों की श्रृंखला में धारा 69 और 70 को रखा गया है, जिनका महत्व न्यायालय शुल्क के पुनर्भरण और स्टाम्प विक्रय व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने में है। धारा 69 उस स्थिति में लागू होती है जब कोई व्यक्ति न्यायालय से भुगतान किया गया शुल्क वापस लेने का अधिकारी बनता है या कोई मुद्रांक खराब हो जाता है। वहीं धारा 70 स्टाम्प विक्रेताओं और स्टाम्प बेचने के अधिकार के उल्लंघन से संबंधित है। यह लेख इन दोनों धाराओं का विस्तार से वर्णन करता है।
धारा 69 – शुल्क की वापसी या क्षतिग्रस्त मुद्रांकों के स्थान पर रक़म या मुद्रांक का भुगतान
धारा 69 उस स्थिति को नियंत्रित करती है जिसमें किसी व्यक्ति को शुल्क वापस किया जाना हो या उसने जो स्टाम्प खरीदे हों वे खराब या बेकार हो गए हों। यह धारा स्पष्ट रूप से बताती है कि यदि न्यायालय किसी व्यक्ति को आदेश देता है कि उसने जो शुल्क दिया है वह वापस किया जाए जैसे कि धारा 61, 62 या 63 के अंतर्गत), या यदि किसी व्यक्ति के पास ऐसे मुद्रांक हैं जो किसी कारणवश खराब या अप्रयुक्त रह गए हैं, तो वह व्यक्ति कलेक्टर से शुल्क या मुद्रांक का बदला लेने का अधिकार रखता है।
यह प्रक्रिया केवल उस स्थिति में अपनाई जाती है जब संबंधित व्यक्ति कलेक्टर के समक्ष विधिवत आवेदन प्रस्तुत करता है। यदि कलेक्टर यह पाता है कि संबंधित मुद्रांक वास्तव में असली हैं और उन्होंने अभी तक किसी दस्तावेज में उपयोग नहीं हुआ है, तो वह व्यक्ति को वही मूल्य वापस कर सकता है। यह भुगतान तीन रूपों में हो सकता है – उसी मूल्य के अन्य मुद्रांक, किसी अन्य प्रकार के मुद्रांक, या अगर आवेदनकर्ता चाहे तो नकद रक़म।
हालांकि, इसमें एक महत्वपूर्ण शर्त जोड़ी गई है कि यदि नकद राशि के रूप में भुगतान किया जाता है, तो प्रत्येक रुपये या उसके अंश पर छह नये पैसे की कटौती की जाएगी। यह एक प्रकार का प्रोसेसिंग शुल्क या राजस्व नुकसान की पूर्ति है। किंतु, यदि शुल्क की वापसी किसी न्यायालय के आदेश के कारण हो रही है और वह आदेश अपील में पलटा गया है या संशोधित हुआ है, तो ऐसी स्थिति में यह कटौती नहीं की जाएगी।
उदाहरण के रूप में मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने एक दीवानी वाद दायर करते समय ₹1000 का न्यायालय शुल्क जमा किया और वह वाद बाद में वापस ले लिया गया या खारिज हो गया। अब यदि न्यायालय आदेश देता है कि याचिकाकर्ता को ₹1000 वापस दिया जाए, तो वह कलेक्टर के समक्ष आवेदन देकर यह राशि प्राप्त कर सकता है।
यदि वह व्यक्ति नकद चाहता है, तो उसे ₹940 ही मिलेगा क्योंकि ₹60 की कटौती की जाएगी (प्रत्येक ₹1 पर 6 naye paise)। लेकिन यदि यह वापसी किसी आदेश के पलटे जाने पर हो रही है, तो पूरा ₹1000 दिया जाएगा, कोई कटौती नहीं होगी।
इसी प्रकार, यदि किसी व्यक्ति के पास ₹50 के स्टाम्प हैं जो गलती से भीग कर खराब हो गए हैं और उन्होंने उनका प्रयोग नहीं किया है, तो वह कलेक्टर के पास जाकर उन्हें दिखाकर नए मुद्रांक प्राप्त कर सकता है या उस मूल्य की नकद राशि (कटौती सहित) ले सकता है।
धारा 70 – स्टाम्प विक्रेताओं के लिए दंडात्मक प्रावधान
धारा 70 इस अधिनियम के तहत स्टाम्प बेचने वाले अधिकृत विक्रेताओं और अनधिकृत रूप से स्टाम्प बेचने वालों के लिए दंड की व्यवस्था करती है। यह धारा दो प्रकार की स्थितियों को कवर करती है। पहली स्थिति में कोई ऐसा व्यक्ति आता है जो विधिवत रूप से स्टाम्प बेचने के लिए नियुक्त किया गया है, लेकिन वह इस अधिनियम के तहत बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करता है।
उदाहरण के लिए, यदि राज्य सरकार द्वारा यह निर्देश दिया गया है कि स्टाम्प केवल सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक ही बेचे जाएं और वह विक्रेता रात 9 बजे बेच रहा है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
दूसरी स्थिति में कोई ऐसा व्यक्ति स्टाम्प बेचता है या बेचने का प्रयास करता है, जिसे राज्य सरकार ने स्टाम्प बेचने के लिए अधिकृत नहीं किया है। यह एक गंभीर अपराध है क्योंकि इससे सरकारी राजस्व को हानि हो सकती है और नकली स्टाम्प के जरिए धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती है।
इन दोनों स्थितियों में, संबंधित व्यक्ति को छह महीने तक की कारावास या ₹500 तक का जुर्माना या दोनों दंड दिए जा सकते हैं। यह दंड इसलिए रखा गया है ताकि स्टाम्प की बिक्री पर सरकार का नियंत्रण बना रहे और कोई व्यक्ति इस प्रक्रिया का दुरुपयोग न कर सके।
इस प्रावधान का संबंध अधिनियम की धारा 66 से भी है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि सभी न्यायालय शुल्क केवल मुद्रांक द्वारा ही वसूले जाएंगे। यदि मुद्रांक बेचने की प्रक्रिया ही अनियमित हो जाए, तो पूरे शुल्क संग्रहण प्रणाली की विश्वसनीयता समाप्त हो जाएगी।
उदाहरण के रूप में यदि कोई व्यक्ति बाज़ार में बिना अधिकृत लाइसेंस के ₹100 के स्टाम्प ₹90 में बेच रहा है, और कोई भोला ग्राहक यह सोचकर खरीद लेता है कि यह सही है, तो यह न केवल सरकार को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि भविष्य में जब वह स्टाम्प न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा, तो वह अवैध घोषित हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को इस धारा के अंतर्गत दंडित किया जाएगा।
पूर्व धाराओं का संदर्भ
धारा 69 और 70 को समझने के लिए अधिनियम की पूर्व की धाराओं को समझना आवश्यक है। जैसे:
धारा 61 में यह बताया गया है कि न्यायालय किस स्थिति में शुल्क की वापसी का आदेश दे सकता है।
धारा 62 में हाईकोर्ट द्वारा समीक्षा के आधार पर शुल्क वापस करने की प्रक्रिया का उल्लेख है।
धारा 63 में त्रुटियों के आधार पर शुल्क की वापसी की व्यवस्था है।
धारा 64 में यह बताया गया है कि कौन-कौन से दस्तावेज शुल्क से पूरी तरह मुक्त हैं।
धारा 65 में राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी विशेष क्षेत्र या वर्ग के लिए शुल्क कम या माफ कर सकती है।
इन सभी धाराओं के माध्यम से अधिनियम एक न्यायसंगत और पारदर्शी शुल्क व्यवस्था स्थापित करता है, और धारा 69 तथा 70 इस व्यवस्था को व्यवहारिक और अनुशासित बनाए रखने में सहायक सिद्ध होती हैं।
धारा 69 और 70 राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के दो अत्यंत व्यावहारिक और अनुपालन आधारित प्रावधान हैं। एक ओर जहां धारा 69 यह सुनिश्चित करती है कि किसी व्यक्ति को उसका भुगतान किया गया शुल्क न्यायालय के आदेश या कानूनी कारण से उचित रूप से वापस मिल सके, वहीं धारा 70 यह सुनिश्चित करती है कि इस पूरी प्रक्रिया में कोई अनधिकृत या अनुचित स्टाम्प विक्रय न हो सके।
इन धाराओं के माध्यम से अधिनियम यह दर्शाता है कि न्यायालय शुल्क केवल वसूली का साधन नहीं है, बल्कि एक विधिसम्मत प्रक्रिया का हिस्सा है जिसे नियमों के अनुसार ही क्रियान्वित किया जाना चाहिए। इन प्रावधानों का पालन सभी पक्षकारों, अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों और विक्रेताओं के लिए अत्यंत आवश्यक है ताकि राज्य की राजस्व व्यवस्था सुरक्षित, न्यायपूर्ण और पारदर्शी बनी रह सके।