वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 36A - धारा 36D : भारत में संरक्षित क्षेत्रों के नए प्रकार: संरक्षण और सामुदायिक भंडार
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972) भारत में संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी ढाँचा (legal framework) है। पारंपरिक राष्ट्रीय उद्यानों (National Parks) और अभयारण्यों (Sanctuaries) से परे, अधिनियम में धारा 36A से 36D तक के खंडों को शामिल किया गया है, जो दो नए प्रकार के संरक्षित क्षेत्रों - संरक्षण भंडार (Conservation Reserves) और सामुदायिक भंडार (Community Reserves) की स्थापना करते हैं। ये प्रावधान स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा देने और संरक्षित क्षेत्रों के बीच महत्वपूर्ण गलियारों (corridors) की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
संरक्षण भंडार: घोषणा और प्रबंधन (Conservation Reserves: Declaration and Management)
धारा 36A संरक्षण भंडार (Conservation Reserves) की घोषणा और प्रबंधन की प्रक्रिया को परिभाषित करती है। ये भंडार सरकार के स्वामित्व वाले क्षेत्रों में घोषित किए जाते हैं, विशेष रूप से राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों से सटे (adjacent) क्षेत्रों में, या उन क्षेत्रों में जो एक संरक्षित क्षेत्र को दूसरे से जोड़ते हैं। इसका प्राथमिक उद्देश्य वन्यजीवों के लिए एक सतत और जुड़े हुए परिदृश्य (connected landscape) को बनाए रखना है।
इस तरह के भंडार की घोषणा करने से पहले, राज्य सरकार को स्थानीय समुदायों (local communities) के साथ परामर्श करना आवश्यक है। यह कदम सुनिश्चित करता है कि घोषणा प्रक्रिया में स्थानीय लोगों की आवाज और हितों को शामिल किया जाए। यदि भंडार में केंद्र सरकार (Central Government) के स्वामित्व वाली कोई भूमि शामिल है, तो घोषणा करने से पहले उसकी पूर्व सहमति (prior concurrence) प्राप्त करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि संघीय और राज्य के बीच समन्वय (coordination) बना रहे।
एक बार घोषित होने के बाद, धारा 36A(2) स्पष्ट करती है कि अभयारण्यों पर लागू होने वाले कुछ नियम संरक्षण भंडार पर भी लागू होते हैं। विशेष रूप से, धारा 18(2), 27(2), (3) और (4), धारा 30, 32, और धारा 33(b) और (c) के प्रावधान यहाँ भी लागू होते हैं, जिसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में भी प्रवेश पर प्रतिबंध, आग लगाना, हानिकारक पदार्थों का उपयोग और वन्यजीवों की सुरक्षा और आवास में सुधार से संबंधित नियम लागू होते हैं।
धारा 36B संरक्षण भंडार के प्रबंधन के लिए एक विशिष्ट समिति, संरक्षण भंडार प्रबंधन समिति (Conservation Reserve Management Committee) की स्थापना करती है। यह समिति मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wild Life Warden) को भंडार के संरक्षण, प्रबंधन और रखरखाव पर सलाह देती है। समिति में विभिन्न हितधारकों (stakeholders) का प्रतिनिधित्व होता है: वन या वन्यजीव विभाग (forest or Wild Life Department) का एक प्रतिनिधि (जो सदस्य-सचिव होता है), प्रत्येक गाँव पंचायत (Village Panchayat) का एक प्रतिनिधि जिसके अधिकार क्षेत्र में भंडार स्थित है, वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले तीन गैर-सरकारी संगठनों (non-governmental organisations) के प्रतिनिधि, और कृषि और पशुपालन विभाग (Department of Agriculture and Animal Husbandry) से एक-एक प्रतिनिधि। यह संरचना एक सहयोगी और समावेशी दृष्टिकोण (collaborative and inclusive approach) सुनिश्चित करती है।
सामुदायिक भंडार: घोषणा और प्रबंधन (Community Reserves: Declaration and Management)
धारा 36C सामुदायिक भंडार (Community Reserves) के लिए एक अलग ढाँचा प्रदान करती है। ये भंडार उन क्षेत्रों में घोषित किए जाते हैं जहाँ समुदाय या किसी व्यक्ति ने स्वैच्छिक रूप से वन्यजीवों और उनके आवासों (wild life and their habitats) के संरक्षण के लिए पहल की है। ये निजी या सामुदायिक भूमि पर स्थापित किए जाते हैं जो राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों या संरक्षण भंडार के भीतर नहीं आते हैं। इन भंडारों का उद्देश्य वन्यजीवों, वनस्पतियों (flora) और पारंपरिक या सांस्कृतिक संरक्षण मूल्यों और प्रथाओं (traditional or cultural conservation values and practices) की रक्षा करना है।
संरक्षण भंडार की तरह, धारा 36C(2) भी स्पष्ट करती है कि धारा 18(2), 27(2), (3) और (4), धारा 30, 32, और धारा 33(b) और (c) के प्रावधान सामुदायिक भंडारों पर भी लागू होते हैं। यह एक संरक्षित क्षेत्र के रूप में उनकी कानूनी स्थिति को मजबूत करता है।
धारा 36C(3) एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय प्रदान करती है: एक बार जब एक सामुदायिक भंडार के रूप में अधिसूचित (notified) हो जाता है, तो प्रबंधन समिति (management committee) द्वारा पारित एक प्रस्ताव (resolution) और राज्य सरकार की मंजूरी (approval) के बिना भूमि उपयोग पैटर्न (land use pattern) में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि समुदाय के संरक्षण के प्रयासों को सरकार द्वारा कानूनी रूप से संरक्षित किया जाता है।
धारा 36D सामुदायिक भंडार प्रबंधन समिति (Community Reserve Management Committee) की स्थापना का विवरण देती है, जो भंडार के संरक्षण, रखरखाव और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण (responsible authority) है।
इस समिति की संरचना अद्वितीय है और इसमें सामुदायिक भागीदारी पर अधिक जोर दिया गया है: इसमें गाँव पंचायत (Village Panchayat) या जहाँ ऐसी पंचायत मौजूद नहीं है, वहाँ ग्राम सभा (Gram Sabha) के सदस्यों द्वारा नामित पाँच प्रतिनिधि होते हैं, और एक प्रतिनिधि राज्य वन या वन्यजीव विभाग से होता है।
यह समिति सामुदायिक भंडार के लिए प्रबंधन योजना (management plan) तैयार करने और लागू करने के लिए सक्षम प्राधिकरण (competent authority) है और वन्यजीवों और उनके आवास की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाती है। समिति अपने अध्यक्ष (Chairman) का चुनाव करती है, जो सामुदायिक भंडार पर एक मानद वन्यजीव वार्डन (Honorary Wild Life Warden) भी होता है। यह संरचना सामुदायिक स्वामित्व और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देती है, जिससे संरक्षण प्रयासों की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।