The Indian Contract Act की धारा 140, 141 एवं 145 में Suretyके ऋण दाता मूल ऋणी एवं सह Surety के विरुद्ध अधिकारों का उल्लेख किया गया है। जहां कोई Surety मुख्य ऋणी के ऋणों का भुगतान कर देता है तो वह मुख्य ऋणी के विरुद्ध उन सभी अधिकारों एवं प्रतिभूतियों का हकदार हो जाता है जो कि ऋण दाता को उसके विरुद्ध प्राप्त थे। ऐसी स्थिति में मुख्य ऋणी के स्थान पर Surety प्रतिस्थापित हो जाता है। ऐसे अधिकार प्रतिभूओं में स्वतः उस समय अवस्थित हो जाते हैं और उन्हें अंतरित किए जाने की आवश्यकता नहीं होती।
ऋण दाता की प्रतिभूतियों का लाभ उठाने का अधिकार
Surety उन समस्त प्रतिभूतियों का लाभ उठाने का हकदार होता है जो ऋण दाता ने मुख्य ऋणी के विरुद्ध प्राप्त की है। यदि ऋण दाता ऐसी प्रतिभूति को खो देता है या Surety की सहमति के बिना उस प्रतिभूति को विलय कर देता है तो Surety उस प्रतिभूति के मूल्य के परिणाम तक उन्मोचित हो जाएगा। लेकिन यदि कोई हानि किसी देवीय कृत्य, राज्य के शत्रुओं या आकस्मिक दुर्घटना के कारण होती है तो उपरोक्त नियम लागू नहीं होगा।
क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार
धारा 145 मुख्य ऋणी से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के Surety के विवक्षित अधिकारों का उल्लेख करती है। Surety उस समग्र धनराशि को मुख्य ऋणी से वसूल करने का अधिकार रखता है जो प्रत्याभूति के अधीन वह अधिकारपूर्वक देता है परंतु ऐसी कोई धनराशि को वसूल नहीं कर सकता जो वह अधिकार पूर्वक नहीं देता है। शब्द "अधिकारपूर्वक" से तात्पर्य सही न्यायोचित एवं साम्यपूर्ण देनगी से है। बाधित ऋण का भुगतान अधिकार पूर्वक भुगतान नहीं होता। बाधित ऋण उसे कहते हैं जो परिसीमा अधिनियम के अंतर्गत समय बाधित हो गया है।
सह Surety के विरुद्ध बराबर अंश पाने का अधिकार
धारा 146 के अनुसार सह Surety के विरुद्ध प्रत्येक Surety को अधिकार होता है कि वह अन्य Surety से मूल ऋण की देनगी के लिए बराबर अंशदान कराए
Surety के दायित्वों का उन्मोचन
Surety निम्नलिखित प्रकार से अपने दायित्व से उन्मोचित हो जाता है-
प्रतिसंहरण की सूचना द्वारा
धारा 138 के तहत चलत प्रत्याभूति को Surety ऋण दाता को सूचना देकर भविष्य के संव्यवहारों के बारे में किसी भी समय प्रतिसंहरण कर सकता है।
धारा 131 के प्रावधानों के अनुसार Surety की मृत्यु चलत प्रत्याभूति को प्रतिकूल संविदा के अभाव में वहां तक जहां तक कि उनका भविष्य के संव्यवहारों से संबंध है रिवोक कर देती है।
संविदा में परिवर्तन या भिन्नता
विधि का यह सामान्य नियम है कि किसी भी संविदा के निबंधनों में कोई भी फेरफार उस संविदा के सभी मुख्य पक्षकारों की सहमति से किया जाना चाहिए। यदि प्रत्याभूति कि संविदा में लेनदार और ऋणी Surety की जानकारी एवं सम्मति के बिना उस संविदा के निर्बन्धन में कोई फेरफार कर लेते हैं तो वह Surety उस संविदा के अधीन पश्चातवर्ती संव्यवहारों के लिए अपने दायित्वों से उन्मोचित हो जाएगा।