आरोप में बदलाव के बाद गवाहों को पुनः बुलाने का अधिकार: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 240

Update: 2024-10-30 12:13 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) 2023 के अंतर्गत, धारा 240 अभियुक्त (Accused) और अभियोजन पक्ष (Prosecutor) को यह अधिकार देती है कि अगर मुकदमे के दौरान आरोप (Charge) में कोई बदलाव या नई धाराएं जोड़ी जाती हैं, तो वे गवाहों (Witnesses) को पुनः बुला सकते हैं और उनसे नए आरोप के संदर्भ में सवाल कर सकते हैं।

यह प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि नए या परिवर्तित आरोपों के अनुसार दोनों पक्षों को उचित तैयारी और जवाब देने का अवसर मिले।

धारा 239: मुकदमे के दौरान आरोपों में बदलाव का अधिकार

धारा 239 के तहत, अदालत (Court) को यह अधिकार है कि वह मुकदमे के किसी भी चरण में, लेकिन फैसले से पहले, आरोपों में बदलाव कर सकती है या नए आरोप जोड़ सकती है। यह प्रावधान इसलिए आवश्यक है क्योंकि मुकदमे की कार्यवाही के दौरान नए तथ्य सामने आ सकते हैं, जो मामले को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकते हैं।

इस स्थिति में, अदालत को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि इस बदलाव से अभियुक्त या अभियोजन पक्ष पर कोई अनुचित प्रभाव न पड़े। यदि ऐसा कोई खतरा होता है, तो अदालत मुकदमे को स्थगित (Adjourn) कर सकती है या नए सिरे से सुनवाई का निर्देश दे सकती है।

धारा 240: गवाहों को पुनः बुलाने और नए गवाह बुलाने का अधिकार

धारा 239 के प्रावधान के बाद, धारा 240 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोपों में बदलाव के बाद भी मुकदमे की निष्पक्षता बनी रहे।

इसके तहत, यदि आरोपों में बदलाव किया जाता है, तो अभियुक्त और अभियोजन पक्ष दोनों को दो महत्वपूर्ण अधिकार मिलते हैं:

1. गवाहों को पुनः बुलाने का अधिकार: आरोपों में बदलाव के बाद, अभियुक्त और अभियोजन पक्ष उन गवाहों को पुनः बुला सकते हैं जिनका बयान पहले ही दर्ज किया जा चुका है। इन गवाहों से नए आरोप या बदले हुए आरोप के संदर्भ में नए सवाल किए जा सकते हैं ताकि उनकी गवाही में सभी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल हो सके।

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति पर पहले केवल चोरी का आरोप था और बाद में अदालत ने इस आरोप में 'धोखाधड़ी' (Fraud) का तत्व जोड़ दिया, तो अभियुक्त उस गवाह को पुनः बुला सकता है जिसने घटना के दौरान आरोपी के इरादे को देखा हो, ताकि यह साबित किया जा सके कि धोखाधड़ी का कोई इरादा नहीं था।

2. नए गवाह बुलाने का अधिकार: आरोपों में बदलाव के बाद, अभियुक्त और अभियोजन पक्ष नए गवाहों को भी बुला सकते हैं, जो नए या बदले हुए आरोप के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकते हैं। अदालत इस पर विचार करती है कि नया गवाह बदलते आरोप के हिसाब से महत्वपूर्ण है या नहीं।

उदाहरण के लिए, अगर प्रारंभिक आरोप सिर्फ सामान्य मारपीट का था और बाद में इसमें 'हथियार के साथ मारपीट' (Assault with a Deadly Weapon) जोड़ दिया गया, तो अभियुक्त ऐसा गवाह बुला सकता है जो यह गवाही दे सके कि घटना के दौरान कोई हथियार नहीं था। इसी तरह, अभियोजन पक्ष नया गवाह बुला सकता है जिसने आरोपी को घटना से पहले हथियार के साथ देखा हो।

दुरुपयोग रोकने के लिए सीमाएं

जहां धारा 240 दोनों पक्षों को गवाहों को पुनः बुलाने का अधिकार देती है, वहीं इसका दुरुपयोग न हो, इसे भी सुनिश्चित किया गया है। अदालत के पास यह अधिकार है कि यदि उसे लगे कि गवाह को पुनः बुलाने का उद्देश्य केवल मुकदमे को खींचना या न्याय को बाधित करना है, तो वह उस अनुरोध को अस्वीकार कर सकती है और इसके कारणों को लिखित रूप में दर्ज कर सकती है।

उदाहरण के लिए, अगर अभियुक्त बार-बार गवाहों को बिना उचित कारण के बुला रहे हैं या उनसे ऐसे सवाल पूछ रहे हैं जिनका मामले से संबंध नहीं है, तो अदालत इस प्रक्रिया को रोक सकती है। इससे मुकदमे में अनावश्यक देरी से बचा जा सकता है।

धारा 240 का उपयोग: कुछ व्यावहारिक उदाहरण

1. पुनः गवाह बुलाने का उदाहरण: मान लीजिए कि अभियुक्त पर पहले एक मामूली संपत्ति अपराध का आरोप था, लेकिन मुकदमे के दौरान नए सबूतों के आधार पर इस आरोप में धोखाधड़ी का तत्व जोड़ा गया। अभियुक्त इस परिस्थिति में पहले से गवाही दे चुके किसी गवाह को पुनः बुला सकता है ताकि उसके इरादे के बारे में नई जानकारी प्रदान की जा सके।

2. नया गवाह बुलाने का उदाहरण: अगर पहले से दर्ज आरोप में सामान्य हमले का मामला था, लेकिन बाद में इसमें जानलेवा हथियार के साथ हमला का आरोप जोड़ा गया, तो अभियुक्त कोई नया गवाह ला सकता है जो घटना के दौरान वहां मौजूद था और पुष्टि कर सकता है कि कोई हथियार नहीं था।

इन दोनों उदाहरणों में, धारा 240 यह सुनिश्चित करती है कि बदले हुए आरोपों की पूरी तरह से जांच हो सके और सभी संबंधित गवाही प्रस्तुत की जा सके, ताकि मुकदमे की निष्पक्षता बनी रहे।

धारा 237 और 238 के साथ तुलना

धारा 240 की व्यापकता को समझने के लिए, धारा 237 और 238 का संदर्भ भी उपयोगी है। धारा 237 यह सुनिश्चित करती है कि आरोपों के वर्णन में इस्तेमाल किए गए शब्दों की व्याख्या उसी कानूनी अर्थ में हो जिसके तहत अपराध को दंडनीय माना गया है।

धारा 238 यह स्पष्ट करती है कि अगर आरोप में कोई त्रुटि है, तो यह अपने आप आरोप को अमान्य नहीं बनाता जब तक कि अभियुक्त को इससे भ्रमित नहीं किया गया हो और इससे न्याय में बाधा न आई हो। ये दोनों धाराएं आरोप के गठन की स्पष्टता में सहायता करती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि मुकदमे की प्रक्रिया निष्पक्ष बनी रहे।

निष्पक्ष सुनवाई में धारा 240 का योगदान

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 240 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करती है कि आरोपों में बदलाव के बाद भी मुकदमा निष्पक्षता के साथ आगे बढ़ सके। यह अभियुक्त और अभियोजन पक्ष को नए आरोपों का सामना करने के लिए पर्याप्त समय और मौका देती है ताकि वे गवाहों की पुनः गवाही या नए गवाहों को प्रस्तुत कर सकें।

धारा 237, 238, और 239 के साथ मिलकर, धारा 240 मुकदमे की निष्पक्षता को बनाए रखती है और उन सभी बदलावों के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने में सहायक है जो सुनवाई के दौरान आवश्यक हो सकते हैं।

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