क्या Criminal Case लंबित होने पर Appellate Court Dismissal को टाल सकता है?

Eastern Coalfields Limited बनाम Rabindra Kumar Bharti [2022 LiveLaw (SC) 374] में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब एक कर्मचारी के खिलाफ एक ही समय पर Departmental Inquiry (विभागीय जांच) और Criminal Trial (आपराधिक मुकदमा) चल रहा हो, तो क्या Appellate Court (अपील अदालत) उसके Dismissal (निलंबन/बर्खास्तगी) को Criminal Case की समाप्ति तक टाल सकती है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन प्रमुख कानूनी सिद्धांतों को दोहराया जो यह बताते हैं कि Departmental Proceedings (विभागीय कार्यवाही) और Criminal Trials (आपराधिक मुकदमे) अलग-अलग उद्देश्य, प्रक्रिया और सबूत के मानक (Standard of Proof) पर आधारित होते हैं। साथ ही, कोर्ट ने Civil Procedure Code (नागरिक प्रक्रिया संहिता), 1908 की Order 41 Rule 33 (आदेश 41 नियम 33) की सीमाओं और शक्तियों पर भी विस्तार से चर्चा की।
विभागीय और आपराधिक कार्यवाही: अलग उद्देश्य और मानक (Different Objectives and Standards)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि Departmental Inquiry (विभागीय जांच) और Criminal Trial (आपराधिक मुकदमा) दो अलग-अलग प्रक्रिया हैं। Criminal Case में दोष साबित करने के लिए "Beyond Reasonable Doubt" (उचित संदेह से परे) प्रमाण की आवश्यकता होती है, जबकि Departmental Inquiry में सिर्फ "Preponderance of Probabilities" (संभावनाओं की अधिकता) काफी होती है।
इस सैद्धांतिक भेद को कई पुराने फैसलों में भी माना गया है, जैसे Ajit Kumar Nag v. Indian Oil Corporation Ltd. [(2005) 7 SCC 764], State of Rajasthan v. B.K. Meena [(1996) 6 SCC 417], और Karnataka Power Transmission Corporation Ltd. v. C. Nagaraju [(2019) 10 SCC 367]।
Stay Principle और उसका अपवाद (Stay Principle and its Exceptions)
एक अहम सवाल यह था कि क्या Criminal Case लंबित रहने की वजह से Departmental Inquiry को रोका जाना चाहिए। Court ने Capt. M. Paul Anthony v. Bharat Gold Mines Ltd. [(1999) 3 SCC 679] को उद्धृत किया जिसमें कहा गया कि अगर Criminal और Departmental Case में आरोप और सबूत समान हों, तो Departmental Inquiry को टालना बेहतर हो सकता है ताकि कर्मचारी को अपने बचाव (Defence) के खुलासे से नुकसान न हो।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह नियम पूर्ण (Absolute) नहीं है। इसका प्रयोग मामले की विशेष परिस्थितियों के अनुसार किया जाना चाहिए। अगर Criminal Case बहुत लंबा खिंच रहा हो या जल्दी निष्कर्ष तक न पहुंचे, तो Departmental Action को टालना प्रशासनिक दृष्टि से उचित नहीं होता।
इसी सिद्धांत को Depot Manager, A.P. SRTC v. Mohd. Yousuf Miya [(1997) 2 SCC 699] में भी दोहराया गया कि एक साथ Departmental Inquiry और Criminal Trial चलाया जा सकता है जब तक कि आरोप बहुत जटिल (Complicated) न हों।
Inquiry में भाग लेने का असर (Impact of Participation in Inquiry)
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई कर्मचारी Departmental Inquiry में भाग लेता है और अपनी तरफ से Defence पेश करता है, तो वह बाद में यह नहीं कह सकता कि उसे Criminal Case की वजह से नुकसान हो रहा है।
इस मामले में Respondent ने हाईकोर्ट से Departmental Inquiry को रोकने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने 29.06.2017 के आदेश में Inquiry को जारी रखने की अनुमति दे दी। इसके बाद Respondent ने Inquiry में भाग लिया, जिससे उसने अपनी रक्षा को स्वेच्छा से प्रकट किया। ऐसे में बाद में यह तर्क नहीं दिया जा सकता कि Inquiry से उसे Criminal Trial में नुकसान होगा।
Order 41 Rule 33 CPC की सीमाएं (Limits of Order 41 Rule 33 CPC)
हाईकोर्ट के Division Bench ने Order 41 Rule 33 का प्रयोग करते हुए Dismissal को Criminal Trial की समाप्ति तक टालने का आदेश दिया था। Supreme Court ने कहा कि इस तरीके से इस प्रावधान का प्रयोग अनुचित (Unjustified) था।
Order 41 Rule 33 Appellate Court को विशेष परिस्थितियों में न्याय देने के लिए शक्तियां देता है, लेकिन यह एक असाधारण (Extraordinary) शक्ति है, जिसे सामान्य रूप से सभी Appeals में नहीं लागू किया जा सकता। कोर्ट ने इसे "Rare Jurisdiction" (दुर्लभ अधिकारिता) कहा।
इस केस में, Disciplinary Authority द्वारा पारित Dismissal Order को Division Bench में चुनौती तक नहीं दी गई थी। ऐसे में Appellate Court द्वारा उस आदेश को रोकना CPC के आदेश 41 नियम 33 के दायरे में नहीं आता।
महत्वपूर्ण पुराने फैसलों का संदर्भ (Reference to Important Precedents)
Court ने कई पुराने निर्णयों का उल्लेख किया जैसे कि Pandiyan Roadways Corpn. Ltd. v. N. Balakrishnan [(2007) 9 SCC 755], जिसमें कहा गया कि Criminal Trial में Acquittal (बरी होना) अपने आप Disciplinary Action को गलत नहीं ठहराता।
इसी तरह Commissioner of Police v. Narender Singh [(2006) 4 SCC 265] में Court ने दोहराया कि दोनों प्रकार की कार्यवाहियों में सबूत, प्रक्रिया और मानक अलग-अलग होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निष्कर्ष (Final Conclusion by Supreme Court)
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए Appeal को स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि एक बार जब हाईकोर्ट ने जांच को जारी रखने की अनुमति दे दी और कर्मचारी ने उसमें भाग लिया, तो Dismissal को Criminal Case की समाप्ति तक टालना उचित नहीं है।
साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Respondent के पास अब भी यह अधिकार है कि वह Disciplinary Proceedings को किसी उचित Forum में चुनौती दे सकता है। उसकी सभी कानूनी राहें खुली रहेंगी।
यह निर्णय फिर से इस मूल सिद्धांत को स्थापित करता है कि Departmental और Criminal कार्यवाहियां स्वतंत्र (Independent) हैं और अलग-अलग मानदंडों पर आधारित होती हैं। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि Appellate Courts को CPC के Order 41 Rule 33 के तहत अधिकार का उपयोग बहुत सावधानी से और विशेष परिस्थितियों में ही करना चाहिए।
Eastern Coalfields Ltd. V Rabindra Kumar Bharti का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि Employee के अधिकारों और प्रशासनिक अनुशासन (Disciplinary Discipline) के बीच संतुलन बना रहे, और न्याय की प्रक्रिया अनुचित विलंब (Unjust Delay) की शिकार न हो।