पंजीकरण अधिनियम, 1908 - धारा 47- 50: पंजीकरण और गैर-पंजीकरण के प्रभाव

Update: 2025-08-04 11:12 GMT

धारा 47. पंजीकृत दस्तावेज़ कब से प्रभावी होता है (Time from which registered document operates)

यह धारा पंजीकरण के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक को स्थापित करती है: पंजीकरण का पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect)। इसमें कहा गया है कि एक पंजीकृत दस्तावेज़ उस समय से प्रभावी माना जाएगा जिस समय से वह प्रभावी होना शुरू होता, यदि उसके पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती या उसे पंजीकृत नहीं किया गया होता। यह पंजीकरण के समय से प्रभावी नहीं होता।

• उदाहरण: यदि एक संपत्ति का बिक्री विलेख 1 जनवरी को निष्पादित (execute) किया जाता है, लेकिन 1 अप्रैल को पंजीकृत होता है, तो कानूनी रूप से, संपत्ति का स्वामित्व 1 जनवरी से ही खरीदार को हस्तांतरित माना जाएगा, न कि 1 अप्रैल से। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की तारीख से ही पक्षों के अधिकार सुरक्षित रहें।

धारा 48. संपत्ति से संबंधित पंजीकृत दस्तावेज़ मौखिक समझौतों के विरुद्ध कब प्रभावी होते हैं (Registered documents relating to property when to take effect against oral agreements)

यह धारा पंजीकृत और गैर-पंजीकृत (मौखिक) दस्तावेजों के बीच प्राथमिकता (priority) को स्पष्ट करती है। इस अधिनियम के तहत विधिवत पंजीकृत सभी गैर-वसीयती दस्तावेज़, जो किसी भी संपत्ति (चल या अचल) से संबंधित हैं, उसी संपत्ति से संबंधित किसी भी मौखिक समझौते (oral agreement) या घोषणा (declaration) के विरुद्ध प्रभावी होंगे।

इसमें एक अपवाद है: यदि मौखिक समझौते या घोषणा के साथ कब्जे का हस्तांतरण (delivery of possession) हुआ हो और वह कब्जा किसी भी लागू कानून के तहत एक वैध हस्तांतरण (a valid transfer) का गठन करता हो, तो मौखिक समझौता प्रभावी हो सकता है।

• उदाहरण: रमेश ने 1 जनवरी को सुरेश को अपनी ज़मीन बेचने के लिए एक मौखिक समझौता किया और सुरेश को तुरंत कब्ज़ा भी दे दिया। फिर, रमेश ने 1 फरवरी को उसी ज़मीन का बिक्री विलेख दिनेश के पक्ष में निष्पादित और पंजीकृत करवा दिया। इस मामले में, सुरेश का कब्ज़ा दिनेश के पंजीकृत विलेख के विरुद्ध प्रभावी हो सकता है, बशर्ते कि कब्ज़े का हस्तांतरण कानून के तहत वैध माना जाता हो।

परंतु (Provided that): इस खंड में एक और महत्वपूर्ण प्रावधान है। संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) की धारा 58 में परिभाषित एक बंधक (mortgage), उसी संपत्ति से संबंधित बाद में निष्पादित और पंजीकृत किसी भी बंधक विलेख के विरुद्ध प्रभावी होगा।

• उदाहरण: यदि एक बैंक ने किसी संपत्ति के लिए 1 जनवरी को एक बंधक विलेख पंजीकृत किया, और 1 फरवरी को दूसरे बैंक ने उसी संपत्ति के लिए एक और बंधक विलेख पंजीकृत किया, तो 1 जनवरी का बंधक विलेख कानूनी रूप से 1 फरवरी के बंधक विलेख पर प्राथमिकता रखेगा।

धारा 49. पंजीकृत किए जाने के लिए आवश्यक दस्तावेजों के गैर-पंजीकरण का प्रभाव (Effect of non-registration of documents required to be registered)

यह धारा पंजीकरण के कानूनी परिणामों पर जोर देती है, खासकर जब पंजीकरण अनिवार्य (compulsory) हो। धारा 17 (section 17) या संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act, 1882) के किसी भी प्रावधान द्वारा पंजीकृत होने के लिए आवश्यक कोई भी दस्तावेज़, जब तक वह पंजीकृत नहीं हो जाता, तब तक वह:

• (a) उसमें शामिल किसी भी अचल संपत्ति को प्रभावित नहीं करेगा।

• (b) दत्तक ग्रहण करने की कोई शक्ति (power to adopt) प्रदान नहीं करेगा।

• (c) ऐसी संपत्ति को प्रभावित करने वाले किसी भी लेनदेन या ऐसी शक्ति प्रदान करने वाले किसी भी लेनदेन के साक्ष्य (evidence) के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

इसका मतलब है कि यदि किसी दस्तावेज़ का पंजीकरण अनिवार्य था, और उसे पंजीकृत नहीं किया गया है, तो वह कानूनी रूप से लगभग बेकार है। वह न तो अधिकार बनाता है और न ही अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

• उदाहरण: यदि ₹1000 मूल्य की संपत्ति का बिक्री विलेख पंजीकृत नहीं हुआ है, तो वह अदालत में संपत्ति के स्वामित्व का दावा करने के लिए सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।

परंतु (Provided that): इस सख्त नियम का एक महत्वपूर्ण अपवाद है। एक गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ जो अचल संपत्ति को प्रभावित करता है और जिसे इस अधिनियम या संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 द्वारा पंजीकृत किया जाना आवश्यक था, उसे निम्नलिखित स्थितियों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है:

• यह विशिष्ट अनुपालन (specific performance) के लिए एक मुकदमे में अनुबंध (contract) के साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

• यह किसी भी संपार्श्विक लेनदेन (collateral transaction) के साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है जिसे पंजीकृत साधन द्वारा प्रभावित करना आवश्यक नहीं था।

• उदाहरण: यदि एक गैर-पंजीकृत बिक्री विलेख है, तो उसे अदालत में यह साबित करने के लिए पेश नहीं किया जा सकता कि संपत्ति का स्वामित्व हस्तांतरित हो गया है। हालांकि, इसे विशिष्ट अनुपालन (specific performance) के मुकदमे में यह साबित करने के लिए पेश किया जा सकता है कि पक्षों के बीच एक बिक्री का अनुबंध हुआ था और अब विक्रेता अनुबंध को पूरा करने से इनकार कर रहा है।

धारा 50. कुछ पंजीकृत दस्तावेज़ों का गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ों के विरुद्ध प्रभावी होना (Certain registered documents relating to land to take effect against unregistered documents)

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि पंजीकृत दस्तावेज़ों को गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ों पर कानूनी प्राथमिकता मिले।

उपधारा (1) कहती है कि धारा 17 की उपधारा (1) के खंड (a), (b), (c) और (d) और धारा 18 के खंड (a) और (b) में उल्लिखित प्रकार का प्रत्येक दस्तावेज़, यदि विधिवत पंजीकृत है, तो उसमें शामिल संपत्ति के संबंध में, उसी संपत्ति से संबंधित प्रत्येक गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ (unregistered document) के विरुद्ध प्रभावी होगा। यह इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ पंजीकृत दस्तावेज़ के समान प्रकृति का है या नहीं।

• उदाहरण: रमेश अपनी ज़मीन सुरेश को 1 जनवरी को एक गैर-पंजीकृत विलेख के माध्यम से बेचता है। फिर, 1 फरवरी को, वह उसी ज़मीन को दिनेश को एक पंजीकृत विलेख के माध्यम से बेचता है। इस मामले में, दिनेश का पंजीकृत दस्तावेज़ सुरेश के गैर-पंजीकृत दस्तावेज़ पर कानूनी रूप से प्राथमिकता रखेगा।

उपधारा (2) में उन दस्तावेजों को स्पष्ट किया गया है जिन पर यह नियम लागू नहीं होता। यह उपधारा (1) में उल्लिखित प्रावधानों को धारा 17 की उपधारा (1) के परंतुक के तहत छूट प्राप्त पट्टों (leases), या उसी धारा की उपधारा (2) में उल्लिखित किसी भी दस्तावेज़, या किसी भी पंजीकृत दस्तावेज़ पर लागू नहीं करती, जिसे इस अधिनियम के प्रारंभ होने के समय लागू कानून के तहत प्राथमिकता नहीं मिली थी।

स्पष्टीकरण (Explanation): यह खंड ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि "गैर-पंजीकृत" शब्द का क्या अर्थ है, खासकर जब यह पुराने पंजीकरण अधिनियमों (जैसे 1864, 1866, 1871, या 1877) के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।

ये धाराएँ मिलकर पंजीकरण के कानूनी महत्व को दर्शाती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि पंजीकृत दस्तावेज़ों को गैर-पंजीकृत दस्तावेजों पर प्राथमिकता मिले, और यह भी बताती हैं कि गैर-पंजीकृत दस्तावेजों का सीमित उपयोग कब हो सकता है। यह प्रणाली संपत्ति के स्वामित्व और हस्तांतरण में कानूनी निश्चितता प्रदान करती है।

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