स्थावर संपत्ति के प्रत्युद्धरण के संबंध में अधिनियम के भाग 2 के अध्याय एक में दो प्रकार के उपबंध है। पहले प्रकार का उपबंध कब्जे के हक पर आधारित है तथा इसका वर्णन धारा 5 में किया गया है तथा दूसरे प्रकार का उपबंध कब्ज़े पर आधारित है तथा इसके संबंध में विधि धारा 6 में वर्णित है। जब कभी किसी व्यक्ति को उसके कब्जे की संपत्ति में से निकाल दिया जाता है वहां पर विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 5, 6, 7 और 8 के अनुसार न्याय प्रदान किया जाता है।
वी श्रीनिवासन राजू अन्य बनाम भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड अन्य के प्रकरण में अपीलार्थी ने संपत्ति के स्वामित्व एवं कब्जे की घोषणा के लिए वाद किया था क्योंकि उसके अनुसार प्रत्यार्थी ने अनधिकृत कब्जा कर रखा था तथा परीक्षण कोर्ट ने साक्ष्य पर पूर्ण विचार करे बगैर प्रत्यार्थी के पक्ष में डिक्री पारित की थी। हाईकोर्ट ने अपील में सभी मौखिक तथा अन्य साक्ष्य पर पूरी तरह विचार करके निर्णय दिया की संपत्ति अपीलार्थी के कब्जे में नहीं थी तथा प्रत्यार्थी ने अनधिकृत कब्जा नहीं किया था। यह निर्णय तथ्यों के आधार पर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया किसी भी संपत्ति में उस संपत्ति का कब्जा सबसे पहला साक्ष्य होता है जिस व्यक्ति के पास कब्जा होता है उसे संपत्ति का स्वामी होने की अवधारणा की जाती है।
जब कभी किसी स्थावर संपत्ति से किसी व्यक्ति को बे कब्जा किया जाता है या उसे निकाल दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के माध्यम से वह कोर्ट की शरण ले सकता है।
इस अधिनियम के माध्यम से वह कब्जे के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है। धारा 6 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति अपनी सहमति के बिना स्थावर संपत्ति से विधि के अनुक्रम से अन्यथा बेकब्जा कर दिया जाए तो वह अथवा उसके उत्पन्न अधिकार द्वारा दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति किसी अन्य से हटके होते हुए भी जो इसे वाद में खड़ा किया जा सकें उसको कब्जा वाद द्वारा प्रत्युद्धरण कर सकेगा।
इस धारा के अधीन कोई भी बात बेकब्जा किए जाने की तारीख से 6 महीने के बीत जाने के बाद अथवा सरकार के विरुद्ध नहीं लाया जा सकता। इस धारा के अधीन किए गए किसी वाद में पारित किसी भी आदेश व डिक्री के विरुद्ध कोई अपील होगी और न ही ऐसे किसी आदेश डिक्री का कोई अनुज्ञात होगा।
धारा की कोई भी बात किसी भी व्यक्ति को ऐसी स्थावर संपत्ति पर अपना हक स्थापित करने के लिए वाद लाने से उसके कब्जे का प्रत्युद्धरण करने से वंचित नहीं करेगी। धारा 6 महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित करती है, पहला सिद्धांत यह है कि विवादास्पद अधिकार विधि के समक्ष अनुक्रम में निर्मित किए जाने चाहिए, दूसरा सिद्धांत यह है कि यदि व्यक्ति का किसी संपत्ति पर कब्जा है तो कब्जे के स्त्रोत पर ध्यान दिए बिना उसके कब्जे को संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
दूसरे शब्दों में इस धारा का उद्देश्य है कि यदि किसी व्यक्ति का संपत्ति पर कब्जा है तो उसे केवल कानूनी प्रक्रिया द्वारा ही बेदखल किया जा सकता है। इस प्रकार यह धारा लोगों को कानून अपने हाथ में लेने से रोकती है। यह धारा वर्तमान कब्जे को बहुत महत्व देती है तथा उसे संरक्षण प्रदान करती है चाहे उसके विरुद्ध कोई भी हक खड़ा किया जाए। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के वर्तमान कब्ज़े के विरुद्ध किसी हक का दावा करता है तो वह कानूनी प्रक्रिया द्वारा दावा सिद्ध करके ही कब्जा प्राप्त कर सकता है। इस धारा के अंतर्गत कब्जा पुनः प्राप्त करके वही व्यक्ति वाद करने का अधिकारी है जिसका कब्जा वैध हो।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 के अंतर्गत धारा 6 की वह आवश्यक बातें जिनसे इस धारा का प्रारूप बनता है-
अधिनियम की धारा 6 का अध्ययन करने के उपरांत कुछ ऐसे आवश्यक तत्व नजर आते हैं जिनका होना इस धारा के लिए आवश्यक होता है।
संपत्ति से बेकब्जा किए जाने के समय वादी का कब्जा वैध होना चाहिए। कोई भी अवैध कब्जा इस धारा के अंतर्गत पुनः वापस नहीं दिलाया जाता है।
वादी को उसकी संपत्ति से उसकी सहमति के बगैर बेदखल किया जाता है। यदि वादी ने अपनी सहमति स्वतंत्र रूप से नहीं दी है तथा उसकी सहमति के बगैर उसे कब्जे से बेदखल कर दिया गया है तो विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 6 के अनुसार वह कब्जा पुनः प्राप्त करने का अधिकारी है।
यदि वादी को उसकी संपत्ति से बेदखल विधि के सम्यक अनुक्रम में न किया गया हो अर्थात किसी भी व्यक्ति को जब किसी संपत्ति के कब्जे से बेदखल किया जाता है तो विधि द्वारा स्थापित कोई प्रक्रिया होती है उसके अनुक्रम में ही उसे बेदखल किया जाता है। यदि इस प्रकार की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है तो व्यक्ति को उसकी संपत्ति से बेदखल किया जाना अवैध होगा।
यदि वादी को बेकब्जा करते समय उसका कब्जा वैध था तथा उसे विधि के अनुक्रम के बिना बेक़ब्ज़ा किया गया था तो वह कब्जा पुनः प्राप्त करने के लिए वाद कर सकता है भले ही ऐसे वाद में उसके विरुद्ध कोई अन्य क्यों न खड़ा किया जाए।
कब्जा पुनः प्राप्त करने के लिए वाद बेकब्जा किए जाने की तारीख से 6 माह के भीतर किया जाना चाहिए। यहां पर इस धारा के अंतर्गत वादी को एक समय सीमा दी गई है इस परिसीमा के बाधित हो जाने पर कोई भी व्यक्ति मुकदमा नहीं कर सकता है। जिस दिन उसे संपत्ति से बेदखल किया गया है बेकब्जा किया गया है उस दिवस से 6 माह के भीतर उसे वाद दाखिल करना होता है।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सरकार के विरुद्ध कोई वाद नहीं लाया जा सकता है कब्जा प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया वही होती है जो सिविल प्रक्रिया संहिता में दी गई है।