POCSO Act में अपराध करने के लिए उकसाने पर सजा

Update: 2025-10-31 03:46 GMT

इस एक्ट की धारा 16 के प्रावधान Abetment को क्राइम बनाते हैं लेकिन धारा 16 के सज़ा का उल्लेख नहीं है। Abetment की सज़ा का उल्लेख धारा 17 में मिलता है। जिसके अनुसार-

जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है, यदि दुष्प्रेरित कार्य दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, तो वह उस दंड से दंडित किया जाएगा जो उस अपराध के लिए उपबंधित है। स्पष्टीकरण–कोई कार्य या अपराध दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप तब किया गया कहा जाता है जब वह उस उकसाहट के परिणामस्वरूप या उस षड्यंत्र के अनुसरण में या उस सहायता से किया जाता है, जिससे दुष्प्रेरण गठित होता है।

तेज खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 2004 क्रि लॉ ज 276 के मामले में विमर्श से यह साबित हुआ है कि गफूरन ने उसके पति के द्वारा कारित किए गये अपराध में और उसे सरक्षित करने में भी सक्रिय भूमिका निभाया था। इस सम्बन्ध में हसीना का कथन यह है कि यह अपीलार्थी गफूरन, जो उसे उसके घर पर इस बहाने से ले गयी थी कि उसका चाचा उसे बुला रहा था और यह वह थी. जिसने दरवाजा को बाहर से बन्द कर लिया था और अपराध कारित करने को दुष्प्रेरित किया था। यह निष्कर्ष कि वह अपने पति के साथ षडयंत्र में शामिल थी. विधिक और विश्वसनीय साक्ष्य पर आधारित है और इस सम्बन्ध में अभियोजन के साक्ष्य को केवल इस कारण से नामजूर नहीं किया जा सकता है कि पत्नी लड़की के साथ बलात्संग कारित करने में अपने पति की सहायता नहीं करेगी।

एम. जिगनेश बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य, 2003 क्रि लॉ ज 739 एपी के मामले में चूंकि अभियोजन अपीलार्थी और एन के बीच पीड़िता के साथ बलात्संग कारित करने के षड़यंत्र को सभी युक्तियुक्त संदेह के परे साबित करने में विफल हुआ था और चूंकि अभिलेख पर साक्ष्य भी यह साबित नहीं करता है कि अपीलार्थी ने ए-1 को अ सा 2 के साथ बलात्संग कारित करने के लिए दुष्प्रेरित किया था, परन्तु यह नहीं बल्कि कहा जा सकता है कि अभियोजन अपीलार्थी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120-ख 109 सपठित धारा 376 के अधीन आरोप को साबित करने में विफल हुआ था।

अभियोजन के द्वारा प्रस्तुत किए गये साक्ष्य से युक्तियुक्त संदेह से परे यह साबित होता है कि अपीलार्थी-तेज खान ने 11 वर्षीय हसीना के साथ बलात्संग कारित किया था और उसकी पत्नी, अपीलार्धिनी- गफूरन अपने पति के साथ षडयंत्र की थी और अपराध कारित करने में उसे सहायता प्रदान की थी। इसलिए दोनों अपीलार्थीगण की दोषसिद्धि उचित है।

राम कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 1995 क्रि लॉ ज 3621 के मामले में जहाँ पर अभियोक्त्री का साक्ष्य विश्वसनीय था और वह उसके पति के साक्ष्य और स्थानीय लोगों के साक्ष्य के द्वारा संपुष्ट था तथा अभियुक्त ने अपनी स्थिति का दुरुपयोग करते हुए अभियोक्त्री के साथ बलात्संग कारित किया था, जबकि सह-अभियुक्त अपने पति की देखभाल कर रही थी वहां पर यह अभिनिर्धारित किया गया था कि हाईकोर्ट के द्वारा बलात्संग का अपराध कारित करने के लिए अभियुक्त का 7 वर्ष का कठोर कारावास का दण्डादेश तथा बलात्संग का अपराध कारित करने को दुष्प्रेरित करने के लिए सह-अभियुक्त का 2 वर्ष का कठोर कारावास का दण्डादेश उचित था।

दुष्प्रेरण को साबित करने के लिए यह साबित किया जाना है कि साशय सहायता थी। मात्र सहायता प्रदान करना दुष्प्रेरण की कोटि में नहीं आ सकता है, जब तक यह साशय न हो। किसी व्यक्ति की ओर से मात्र कृत्य अथवा लोप, जो वास्तव में अपराध कारित करने को सुकर बनाने में परिणामित होता है. स्पष्टीकरण 2 की अपेक्षाओं को संतुष्ट नहीं करेगा जो साबित किया जाना आवश्यक है, यह है कि व्यक्ति, जिसके विरुद्ध दुष्प्रेरण का आरोप विरचित किया गया है, अपराध कारित करने को सुकर बनाने के लिए क्या कुछ चीज किया था।

इसलिए जो आवश्यक है, वह यह है कि व्यक्ति, जिसके विरुद्ध दुष्प्रेरण का आरोप लगाया गया है को ऐसी कुछ चीज प्रयोजनपूर्ण रूप में साबित करना है, जो अपराध कारित करने को आसान बनाती हो। मात्र इस कारण से कि कोई व्यक्ति किसी ऐसी चीज को करता है अथवा किसी ऐसी चीज का लोप करता है, जो अपराध कारित करने को आसान बनाती हो, उसे तीसरे खण्ड सपठित स्पष्टीकरण 2 के द्वारा यथाअनुचिन्तित या तो कृत्य अथवा अवैध लोप के द्वारा अपराध कारित करने में साशय सहायता प्रदान करने के लिए नहीं कहा जा सकता है।

दुष्प्रेरण का आरोप सामान्यतः उस समय विफल हो जाता है, जब मुख्य अपराधी के विरुद्ध सारवान अपराध साबित न हुआ हो।

बलात्संग के दुष्प्रेरण का अपराध अपीलार्थी संख्या 2 के विरुद्ध बलात्संग के दुष्प्रेरण के अपराध को साबित करने के लिए उस रीति, जिसमें वह अभियोक्त्री के साथ अपीलार्थी संख्या 1 के द्वारा बलात्संग कारित करने को दुष्प्रेरित किया था, को दर्शाते हुए कुछ साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसे किसी साक्ष्य के पूर्ण अभाव में अपीलार्थी संख्या 2 को भारतीय दण्ड सहिता की धारा 376, सपठित धारा 109 के अधीन अपराध के लिए दोषमुक्त करना उचित नहीं होगा।

जहाँ पर मुख्य अथवा प्रमुख अभियुक्त को अपराध से दोषमुक्त कर दिया गया हो, वहां पर उस व्यक्ति जो केवल उस अपराध के दुष्प्रेरण से आरोपित किया गया हो, को दोषी नहीं पाया जा सकता है अथवा दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता है।

एक मामले में अभियुक्त ने अभिकथित रूप में एक 14 वर्षीय गांव की लड़की पर आक्रमण तथा उसके साथ बलात्संग कारित किया था। 6 अभियुक्त थे, उनमें से तीन को वास्तविक रूप में भाग लेने के लिए अभिकथित किया गया था और शेष तीनों षडयंत्रकारी तथा दुष्प्रेरक थे। परिवाद दर्ज कराने में विलम्ब इतना पर्याप्त नहीं था कि वह अभियोजन मामले को समाप्त कर दे। हमला में अभियुक्तगण संख्या 1 4 और 5 के शामिल होने को साबित करने के लिए निश्चायक साक्ष्य था। लेकिन चिकित्सीय साक्ष्य हल्का-सा कमजोर था और पीड़िता के साक्ष्य में शैथिल्यता थी।

अभियुक्तगण संख्या 1 4 और 5 यद्यपि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354 के अधीन दोषसिद्ध किए जाने के लिए दायी थे, फिर भी वे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 और 109 के अधीन संदेह के लाभ के हकदार हैं। चूंकि अभियुक्तगण संख्या 2, 3 और 6 को कोर्ट के समक्ष पीडिता के द्वारा विनिर्दिष्ट रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया था, इसलिए वे दोषमुक्त किए जाने के लिए हकदार है।

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