भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के तहत सार्वजनिक उपद्रव (Sections 160-162)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की जगह ले ली है और सार्वजनिक उपद्रव (Public nuisance) से संबंधित मामलों में नए प्रावधान (Provisions) लागू किए हैं।
संहिता की धारा 160 से 162 में सार्वजनिक उपद्रव को रोकने और उसके खिलाफ कार्रवाई करने के उपाय बताए गए हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 160 से 162 सार्वजनिक उपद्रव को रोकने और उसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्पष्ट और प्रभावी प्रक्रियाएँ प्रदान करती हैं।
मजिस्ट्रेटों को आदेशों के पालन को सुनिश्चित करने और जनता की सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया गया है। इन प्रावधानों का उद्देश्य सार्वजनिक स्थलों को सुरक्षित और सभी के लिए सुलभ बनाए रखना है, ताकि कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक हित के खिलाफ कार्य न कर सके।
धारा 160: आदेश के पालन के लिए निर्देश
धारा 160 उस स्थिति से संबंधित है जब मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 155 या धारा 157 के तहत जारी किया गया आदेश अंतिम (absolute) कर दिया जाता है। इस धारा के तहत, मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को आदेश के बारे में सूचित करना होता है जिसके खिलाफ आदेश जारी किया गया था।
इसके साथ ही, उस व्यक्ति को आदेशित कार्य को एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा करने के लिए कहा जाता है, जो नोटिस में निर्धारित होती है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को अवैध निर्माण (illegal construction) हटाने का आदेश दिया गया है और उसने इसे समय पर पूरा नहीं किया, तो मजिस्ट्रेट स्वयं उस निर्माण को हटाने की व्यवस्था कर सकते हैं।
इसके लिए किए गए खर्च को उस व्यक्ति की संपत्ति की बिक्री द्वारा वसूल किया जा सकता है, चाहे वह संपत्ति मजिस्ट्रेट के क्षेत्राधिकार (jurisdiction) के भीतर हो या बाहर।
धारा 160 में यह भी प्रावधान किया गया है कि इस धारा के तहत अच्छे विश्वास (good faith) में किए गए किसी भी कार्य के संबंध में कोई मुकदमा (suit) नहीं चलाया जा सकता।
धारा 161: तात्कालिक उपाय
धारा 161 मजिस्ट्रेट को सार्वजनिक उपद्रव से संबंधित मामलों में तत्काल (immediate) कदम उठाने का अधिकार देती है। यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि कोई गंभीर खतरा (imminent danger) या सार्वजनिक को हानि (injury) हो सकती है, तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ एक निषेधाज्ञा (injunction) जारी कर सकते हैं। यह आदेश उस खतरे को रोकने या टालने के लिए आवश्यक होता है जब तक कि मामला सुलझ नहीं जाता।
यदि व्यक्ति इस निषेधाज्ञा का पालन नहीं करता, तो मजिस्ट्रेट स्वयं आवश्यक कदम उठा सकते हैं या उठवाने का निर्देश दे सकते हैं। इस धारा के तहत अच्छे विश्वास में मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए किसी भी कार्य के लिए भी कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक मार्ग (public way) को अवरुद्ध कर रहा है और इससे जनता को गंभीर हानि हो सकती है, तो मजिस्ट्रेट तुरंत उस व्यक्ति को निषेधाज्ञा जारी कर सकते हैं और मार्ग को साफ कराने का आदेश दे सकते हैं।
धारा 162: सार्वजनिक उपद्रव की पुनरावृत्ति रोकने के लिए आदेश
धारा 162 के तहत, जिला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस उप-आयुक्त (Deputy Commissioner of Police) किसी व्यक्ति को सार्वजनिक उपद्रव को दोबारा करने या जारी रखने से रोकने के लिए आदेश जारी कर सकता है।
उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति ने किसी सार्वजनिक पार्क में अवैध रूप से ढांचा खड़ा कर दिया है, तो जिला मजिस्ट्रेट उसे इसे हटाने का आदेश दे सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वह व्यक्ति फिर से इस तरह का कार्य न करे।
धारा 152 से 159 का संक्षिप्त विवरण
हमने पहले Live Law Hindi पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 152 से 159 का विस्तार से वर्णन किया है। ये धाराएँ सार्वजनिक उपद्रव के मामलों में कार्यकारी मजिस्ट्रेटों को कार्रवाई करने का अधिकार देती हैं।
इसमें अवैध निर्माण, खतरनाक गतिविधियों (dangerous activities), और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए हानिकारक कार्यों को रोकने के लिए आदेश जारी करना शामिल है।
इन आदेशों के अनुपालन (compliance) को सुनिश्चित करने के लिए मजिस्ट्रेट को विभिन्न कदम उठाने के अधिकार दिए गए हैं, जिनमें तात्कालिक उपाय भी शामिल हैं।