घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की धारा 20 के प्रावधान

Update: 2025-10-11 12:27 GMT

इस एक्ट की धारा 20 में धनीय अनुतोष से संबंधित प्रावधान हैं जिसके अनुसार-

(1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय, मजिस्ट्रेट, घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप व्यथित व्यक्ति और व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान द्वारा उपगत व्यय और सहन की गई हानियों की पूर्ति के लिए धनीय अनुतोष का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निदेश दे सकेगा और ऐसे अनुतोष में निम्नलिखित सम्मिलित हो सकेंगे किन्तु वह निम्नलिखित तक ही सीमित नहीं होगा

(क) उपार्जनों की हानि;

(ख) चिकित्सीय व्ययों;

(ग) व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि और

(घ) व्यथित व्यक्ति के साथ-साथ उसकी सन्तान, यदि कोई हों, के लिए भरण पोषण, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कोई आदेश या भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त कोई आदेश सम्मिलित है।

(2) इस धारा के अधीन अनुदत्त धनीय अनुतोष, पर्याप्त, उचित और युक्तियुक्त होगा तथा उस जीवन स्तर से, जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा।

(3) मजिस्ट्रेट को, जैसा मामले की प्रकृति और परिस्थितियाँ, अपेक्षा करें, भरण पोषण के एक समुचित एकमुश्त संदाय या मासिक संदाय का आदेश की शक्ति होगी।

(4) मजिस्ट्रेट, आवेदन के पक्षकारों को और पुलिस थाने के भारसाधक को, जिसकी स्थानीय सीमाओं की अधिकारिता में प्रत्यर्थी निवास करता है, उपधारा (1) के अधीन दिये गये धनीय अनुतोष के आदेश की एक प्रति भेजेगा।

(5) प्रत्यर्थी, उपधारा (1) के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर व्यथित व्यक्ति को अनुदत्त धनीय अनुतोष का संदाय करेगा।

(6) उपधारा (1) के अधीन आदेश के निबन्धनों में संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी की ओर से असफलता पर, मजिस्ट्रेट, प्रत्यर्थी के नियोजक या ऋणी को, व्यथित व्यक्ति को प्रत्यक्षतः संदाय करने या मजदूरी या वेतन का एक भाग कोर्ट में जमा करने या शोध्य ऋण या प्रत्यर्थी के खाते में शोध्य या उद्भूत ऋण को, जो प्रत्यर्थी द्वारा संदेय धनीय अनुतोष में समायोजित कर ली जायेगी, जमा करने का निदेश दे सकेगा।

धारा 20 के अधीन, मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 12 के अधीन आवेदन निस्तारित करते समय प्रत्यर्थी को उपार्जनों की हानि, चिकित्सीय व्ययों, व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि और व्यथित व्यक्ति साथ-ही-साथ उसके सन्तान के भरण-पोषण के धनीय अनुतोष के भुगतान के लिए निर्देशित कर सकता है। वह भरण-पोषण की एक मुश्त राशि या मासिक भुगतान के लिए भी आदेश कर सकता है।

एक मामले में कहा गया है कि बातिल विवाह में पत्नी निश्चित रूप से अपने दम्पत्ति के साथ साझी गृहस्थी में विवाह की प्रकृति की नातेदारी में रह रही थी। केवल तथ्य कि ऐसी नातेदारी धारा 12 के अधीन डिक्री द्वारा पश्चात्वर्ती रूप से अकृत की गई थी, तो यह घरेलू नातेदारी में और साझी गृहस्थी में उनके रहने में पक्षकारगण की प्रास्थिति के प्रतिकूल नहीं हो सकते। इन परिस्थितियों में धारा 12 के अधीन, पश्चात्वर्ती रूप से विवाह को रद्द करने वाली डिक्री के होते हुए भी पत्नी को अधिनियम की धारा 20 (1) (घ) के अधीन भरण पोषण के धनीय अनुतोष के लिए हकदार धारित की जानी चाहिए।

भले ही धनीय/यौगिक दावा धारा 12 के अधीन अनुमन्य किया जाय, ऐसा भुगतान किसी अन्य कोर्ट की आज्ञाप्ति या आदेश के अनुसार संगत शीर्षों के अधीन शोध्य राशि के विरुद्ध मुजरा की जायेगी। इसलिए कठोरतापूर्वक यह मानना सही नहीं होगा कि दावों का अतिच्छादन घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन कार्यवाही को खारिज कर देगा

धारा 12 की उपधारा (2), किसी अनुतोष जिसके लिए किसी प्रत्यर्थी द्वारा की गई घरेलू हिंसा के कार्यों द्वारा कारित की गई क्षतियों के लिए प्रतिकर या नुकसान के लिए वाद संस्थित करने के लिए ऐसे व्यक्ति के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी प्रतिकर या नुकसान के संदाय के लिए अनुतोष, प्रावधानित करती है।

अधिनियम की धारा 20 धनीय अनुतोष को व्यवहृत करती है। मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी के विरुद्ध धनीय अनुतोष का आदेश पारित कर सकता है। हालांकि अधिनियम की धारा 21 एवं के अधीन अनुतोष का अनुदान केवल प्रत्यर्थी के विरुद्ध प्रावधानित है न कि किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध इसलिए, यदि अधिनियम के अधीन अन्य परिभाषाओं के संदर्भ में एवं अधिनियम के प्रावधानों में प्रत्यर्थी' शब्द के अर्थों में, प्रत्यर्थी की परिभाषा या परन्तुक में स्त्री या महिला को नहीं शामिल करता, भले ही व्यथित व्यक्ति को इस प्रत्यर्थी को परिभाषा के परन्तुक के निबन्धनों में परिवाद दाखिल करने का अधिकार है जो महिला नातेदारों को यही शामिल करती है, अन्यथा यह अधिनियम के उद्देश्यों को विफल बनाएगा।

व्यथित व्यक्ति को धनीय अनुतोष का अनुदान घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 20 मजिस्ट्रेट को प्रत्यर्थी से उपगत व्यय और सहन की गई हानि जिसमें उपार्जनों की हानि, चिकित्सीय व्यय, सम्पत्ति को हानि एवं व्यथित व्यक्ति एवं उसकी संतान को दण्ड प्रक्रिया सहिता, 1973 की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन या अतिरिक्त भरण-पोषण का आदेश पारित कर सकती है।

उपधारा (2) प्रावधानित करती है कि धनीय अनुतोष पर्याप्त उचित एवं युक्तियुक्त एवं उस जीवन स्तर से जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा। यह धारा मजिस्ट्रेट को एकमुश्त राशि या भरण-पोषण के मासिक भुगतान के लिए भी सशक्त करती है। उपधारा (6) प्रावधान करती है कि प्रत्यर्थी की धनीय अनुतोष के लिए भुगतान करने में विफलता पर मजिस्ट्रेट नियोजक या ऋणी या प्रत्यर्थी को व्यथित व्यक्ति को प्रत्यक्षतः संदाय करने का, या मजदूरी या वेतन या प्रत्यर्थी को शोध्य या प्रोभूत ऋण का एक भाग कोर्ट में जमा कराने का निर्देश दे सकता है।

घरेलू हिंसा अधिनियम के अधीन, पुरुष सदस्य जिसने घरेलू हिंसा कारित किया है के विरुद्ध धनीय अनुतोष एवं प्रतिकर के अनुदान को अनुमन्य करना अनुज्ञेय है। एस आर बत्रा के मामले में शीर्ष कोर्ट ने संप्रेक्षित किया था कि वैकल्पिक वास सुविधा के लिए दावा केवल पति के विरुद्ध ही किया जा सकता था न कि ससुराल वालों या अन्य नातेदारों के विरुद्ध मामले की इस दृष्टि में अवर कोर्ट द्वारा याचीगण को किराया भुगतान करने का निर्देश विधितः अवधार्य नहीं है तद्नुसार, आपेक्षित निर्णय उसी सीमा तक हस्तक्षेपित किया गया कि वर्तमान याची अवर कोर्ट द्वारा निर्देशित 1000 रुपये प्रतिमाह का किराया भुगतान करने का दायी नहीं होगा।

2005 के अधिनियम की धारा 20 प्रावधानित करती है कि (1) धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय, मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप व्यथित व्यक्ति और व्यथित व्यक्ति की किसी सन्तान द्वारा उपगत व्यय और सहन की गई हानियों की पूर्ति के लिए धनीय अनुतोष का संदाय करने के लिए प्रत्यर्थी को निर्देश दे सकेगा और ऐसे अनुतोष में निम्नलिखित हो सकेंगे किन्तु वह सीमित नहीं होगा :

(क) उपार्जनों की हानि

(ख) चिकित्सीय व्यय

(ग) व्यथित व्यक्ति के नियंत्रण में से किसी सम्पत्ति के नाश, नुकसानी या हटाये जाने के कारण हुई हानि

(घ) व्यक्ति व्यक्ति के साथ-साथ उसकी सन्तान, यदि कोई हो, के लिए भरण-पोषण, जिसमें दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कोई आदेश या भरण-पोषण के आदेश के अतिरिक्त कोई आदेश सम्मिलित है। इस धारा के अधीन अनुदत्त धनीय अनुतोष, पर्याप्त उचित एवं युक्तियुक्त होगा तथा उस जीवन स्तर से जिसका व्यथित व्यक्ति अभ्यस्त है, संगत होगा।

मजिस्ट्रेट मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के अनुसार व्यथित व्यक्ति की अपेक्षा पर विचार करेगा और प्रत्यर्थी द्वारा या तो समुचित एक मुश्त रकम के रूप में या भरण-पोषण के मासिक भुगतान के रूप में किन्तु दोनों में नहीं, व्यथित व्यक्ति को मौद्रिक अनुतोष के भुगतान के लिए आदेश पारित करेगा।

घरेलू हिंसा की रिपोर्ट प्रस्तुत मामले में, घरेलू हिंसा की किसी रिपोर्ट का प्रश्न नहीं होता जैसा कि यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि पक्षकारगण के मध्य सितम्बर, 2003 में तलाक हुआ था एवं अधिनियम के प्रावधानों के लागू होने के बाद पक्षकारगण को व्यथित व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। विशेष न्यायाधीश ने याचीगण के भरण-पोषण को अनुमन्य करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को अपास्त करने का अकाट्य कारण दिया है। विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश पूर्णतया विधिक है एवं विधि के विपरीत नहीं है। विशेष न्यायाधीश ने इसे पारित करने में कोई अवैधानिकता नहीं कारित की है। इस प्रकार पुनरीक्षणीय क्षेत्राधिकार में किसी प्रकार के हस्तक्षेप को आवश्यकता नहीं है। पुनरीक्षण याचिका बलहीन है जिसे खारिज किया जाता है।

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