Constitution में हाईकोर्ट से संबंधित प्रावधान

Update: 2024-12-19 14:33 GMT
High Courts

भारत के संघ को उसे अपनी न्यायपालिका दी गई है जिसे भारत का सुप्रीम कोर्ट कहा जाता है और भारत के राज्यों को अलग न्यायपालिका दी गई है जो अलग-अलग राज्यों के हाई कोर्ट होते हैं। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 214 से लेकर 237 तक राज्य न्यायपालिका के संबंध में उल्लेख किया गया है। राज्यों के हाई कोर्ट और उसके अधीनस्थ न्यायालयों से मिलकर राज्य न्यायपालिका बनती है।

प्रत्येक राज्य में एक हाई कोर्ट होता है पर संसद दो या दो से अधिक राज्यों और एक संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही हाई कोर्ट की स्थापना कर सकती है। इसका उल्लेख संविधान के आर्टिकल 231 के अंतर्गत किया गया है।

प्रत्येक हाईकोर्ट में एक मुख्य जज होता है तथा ऐसे अन्य जज होते हैं, जिन्हें समय समय पर राष्ट्रपति नियुक्त करना आवश्यक समझता है। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 216 के अंतर्गत हाई कोर्ट का गठन किया जाता है तथा आर्टिकल 217 के अंतर्गत मुख्य जज की नियुक्ति की जाती है। हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। चीफ जस्टिस के नियुक्ति वह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल के परामर्श से करता है। अन्य जजों की नियुक्ति दशा में वह उक्त व्यक्तियों के अतिरिक्त संबंधित हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से भी परामर्श कर सकता है। हाई कोर्ट का एक जज अपना पद 62 वर्ष तक धारण कर सकता है चाहे तो अपने हस्ताक्षर से राष्ट्रपति को भेजे पत्र के माध्यम से पद का त्याग कर सकता है।

भारत संघ बनाम प्रतिभा बनर्जी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि हाई कोर्ट के जज और उसके अधिकारी सरकारी सेवक नहीं है। वह संवैधानिक पद धारण करते हैं जो कार्यपालिका के नियंत्रण से अलग है। हाई कोर्ट के अधिकारी और सेवक सरकार के बीच का संबंध स्वामियों सेवक का संबंध नहीं है, अतः वह सरकार के अधीन पद धारण नहीं करते हैं यदि ऐसा संबंध स्वीकार कर लिया जाएगा तो न्यायिक स्वतंत्रता और कार्यपालिका से न्यायपालिका के पृथक्करण के संपूर्ण अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी।

प्रस्तुत मामले में प्रत्यार्थी प्रतिभा बनर्जी 1978 में कोलकाता हाई कोर्ट के जज नियुक्त की गई थी और 1989 उस उस पद से रिटायर हुए। इसके पश्चात उन्हें केंद्रीय प्रशासन अभिकरण का उपसभापति नियुक्त किया गया था जिस पथ से वह 1992 में रिटायर हुई थी। प्रत्यार्थी का अभिकथन था कि उसकी पेंशन हाई कोर्ट जज सेवा की शर्तें अधिनियम 1954 की प्रथम अनुसूची के भाग 1 के अनुसार निर्धारित की जाना चाहिए थी किंतु केंद्र सरकार का तर्क यह था कि उसकी पेंशन उक्त अधिनियम के भाग 3 के अंतर्गत नियत किया जाना चाहिए। प्रशासनिक अधिकरण ने निर्णय दिया कि उनकी पेंशन भाग-1 के अधीन नियत की जानी चाहिए।

केंद्र सरकार ने इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील फाइल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासनिक अभिकरण द्वारा दिए गए निर्णय की पुष्टि करते हुए यह कहा कि हाई कोर्ट के न्यायधीश संविधानिक पद धारण करते हैं और वह सरकारी सेवक नहीं है। हाई कोर्ट के अधिकारियों व सेवक भी सरकारी सेवक नहीं है। हाई कोर्ट ने यह कहा कि संविधान के आर्टिकल 214, 217, 219, 221 से यह स्पष्ट हो जाता है हाई कोर्ट सरकार का तीसरा अंग है और कार्यपालिका और विधान मंडल से पूरी तरह स्वतंत्र है। संविधान के अधीन एक जज एक विशेष पद धारण करता है। इस प्रकार संविधान की योजना से स्पष्ट है संविधान निर्माता यह सुनिश्चित करने के लिए उत्सुक थे की न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र हो।

शक्ति कहीं भी एक स्थान पर एकत्रित नहीं होना चाहिए इसलिए कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में कार्यपालिका न्यायपालिका और विधायिका में बंटवारा करने के प्रयास किए हैं। सरकार की कोई भी शक्ति किसी एक अंग में समा जाने से रोकने का प्रयास किया है। संविधान के भाग 5 के अध्याय 6 से यह स्पष्ट है के संविधान निर्माता अधीनस्थ न्यायपालिका को भी कार्यपालिका से स्वतंत्र रखने के इच्छुक थे।

इसलिए आर्टिकल 233 और 230 के अंतर्गत अधीनस्थ न्यायालय के न्यायिक अधिकारियों जिला जज तक की नियुक्ति की प्रक्रिया सिविल पदों के धारण करने वाले सेवकों से पूर्णता भिन्न है। प्रारंभिक नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है किंतु उसके पश्चात उनकी तैनाती, अवकाश आदि के मामले हाई कोर्ट के हाथ में है सरकार के हाथ में नहीं है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सशक्त बनाने में उक्त निर्णय अत्यंत सार्थक है।

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