Constitution में हाईकोर्ट जज की पात्रता

Update: 2024-12-19 14:35 GMT

कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 217 के अनुसार किसी हाई कोर्ट में जज नियुक्त होने के लिए एक व्यक्ति में कुछ योग्यताएं होनी चाहिए जैसे वह भारत का नागरिक होना चाहिए, भारत राज्य क्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष तक कोई न्यायिक पद धारण कर चुका होना चाहिए और हाई कोर्ट में कम से कम 10 वर्ष तक एडवोकेट रह चुका होना चाहिए।

श्रीकुमार पदम प्रसाद बनाम भारत संघ के मामले में न्यायालय ने असम हाई कोर्ट में नियुक्त किए गए अनुमोदित श्री श्रीवास्तव की नियुक्ति को इस आधार पर अवैध घोषित कर दिया कि संविधान के आर्टिकल 217 के अधीन न्यूनतम योग्यता नहीं रखते थे। इस आर्टिकल के अनुसार हाई कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त होने के लिए भारत राज्य क्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष तक किसी न्यायिक पद को धारण करना आवश्यक है। आर्टिकल 217 (2) के अधीन न्यायिक पद धारण करने वाले से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो न्यायिक कार्य करता है। पक्षकारों के बीच मामलों का निपटारा करता है, वह न्यायिक क्षमता में वृद्धि करता है उसे कार्यपालिका से पृथक होना चाहिए।

हाई कोर्ट के जज 62 वर्ष की आयु तक अपना पद धारण करते हैं उन्हें अपने पद से हटाया भी जा सकता है। इस संबंध में सारी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के समान है अर्थात उसी तरह और उसी आधारों पर हटाए जा सकते हैं। स्थिति और जिन कारणों से सुप्रीम कोर्ट का एक न्यायधीश हटाया जा सकता है यदि हाई कोर्ट के जजों की आयु के बारे में कोई प्रश्न होता है तो मुख्य जज के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा निश्चित किया जाएगा और उसका निर्णय अंतिम होगा। किसी जज का पद उसके सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हो जाने पर या अन्य हाई कोर्ट को स्थापित किए जाने पर खाली हो जाएगा।

कोई न्यायधीश राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर द्वारा अपने पद का त्याग कर सकता है। इसका उल्लेख कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 217 में प्रयुक्त भाषा से स्पष्ट नहीं होता है कि जज द्वारा दिया गया त्यागपत्र कब प्रभावी होता है।

आर्टिकल 220 हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों को भारत के किसी न्यायालय किसी पर अधिकारी के समक्ष अभिवचन करने का प्रतिषेध करता है किंतु वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में वकालत कर सकता है, यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है।

संविधान के आर्टिकल 222 के अधीन राष्ट्रपति भारत के चीफ जस्टिस के परामर्श से हाई कोर्ट के किसी जज का एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में स्थानांतरण कर सकता है। इस स्थांतरण किए गए जज को वेतन के अतिरिक्त ऐसे प्रतीकात्मक भत्ते भी दिए जाएंगे जैसा कि संसद विधि द्वारा निर्धारित करें।

भारत बनाम संकलचंद के मामले में राष्ट्रपति की उस अधिसूचना को जिसके द्वारा गुजरात हाई कोर्ट के एक जज को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट को स्थापित कर दिया गया था इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि स्थानांतरण आदेश संबंधित जज की सहमति के बिना और भारत के मुख्य जज के परामर्श के बिना किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने 3/2 के बहुमत से सरकार के तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के जज को बिना उसकी सहमति के स्थान्तरित किया जा सकता है यदि न्यायधीश की सहमति को आर्टिकल 222 में निहित माना जाता है तो अपनी सहमति न देकर स्थांतरण की शक्ति को विफल कर देता है। भारत के मुख्य जज के मामले में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि परामर्श सहमति नहीं है परामर्श मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है किंतु न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि स्थानांतरण की शक्ति जनहित में प्रयोग करने के लिए प्रदान की गई है न की किसी जज को जो कार्यपालिका की इच्छा अनुसार निर्णय नहीं देता है उसे दंडित करने के लिए प्रदान की गई है। ऐसा न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

आर्टिकल 222 के अधीन राष्ट्रपति अपनी शक्ति का प्रयोग भारत के मुख्य जज के परामर्श से करने के लिए बाध्य है, यह पूर्ववर्ती शब्द है जिसका पूरा होना आवश्यक है। यही परामर्श को प्रभावी होना आवश्यक है, इसका तात्पर्य यह है कि जजों से परामर्श करते समय राष्ट्रपति को सभी आवश्यक तत्वों को जो उसे उपलब्ध हो उसके समक्ष प्रस्तुत करना चाहेंगे इसके लिए आवश्यक तत्व नहीं दिए गए हैं तो वह उन्हें मांग सकता है। मुख्य जज सभी तथ्यों पर विचार करके राष्ट्रपति को अपना परामर्श देगा।

राष्ट्रपति द्वारा संपूर्ण तत्वों को देना तथा मुख्य न्यायधीश द्वारा अपनी राय के लिए आवश्यक तथ्यों को मांगना एक ही प्रक्रिया के अंग हैं और एक दूसरे के पूरक है।

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड बनाम भारत संघ के मामले में अपने ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने एमसी गुप्त बनाम भारत संघ के निर्णय को उलट दिया जिसमें निर्णय दिया गया कि जजों की नियुक्तियां और स्थानांतरण के मामले में अंतिम निर्णय सरकार का है। यह कहा गया कि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और उनके स्थांतरण के मामलों में भारत के चीफ जस्टिस का परामर्श लेना अंतिम माना जाएगा न की सरकार का निर्णय अंतिम माना जाएगा।

एसपी गुप्ता के मामले में यह कहा गया कि जजों की नियुक्ति और स्थांतरण के संबंध में सरकार का निर्णय ही अंतिम है। न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ ने 7/2 के बहुमत से यह कहा कि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और स्थांतरण के मामले में भारत के मुख्य जज का निर्णय अंतिम होगा, जो वह अपने दो सहयोगियों के परामर्श करके करेगा।

सरकार को केवल अयोग्य व्यक्तियों को रोकने की शक्ति होगी। न्यायालय ने कहा कि किसी हाई कोर्ट के जज की नियुक्ति भारत के मुख्य जज के परामर्श के बिना नहीं की जाएगी। किसी हाईकोर्ट में नियुक्ति का प्रस्ताव हाई कोर्ट के मुख्य जज के द्वारा ही किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और अन्य जजों के स्थानांतरण के मामले में यह कहा कि इस मामले में अंतिम निर्णय भारत के चीफ जस्टिस का ही होगा।

हाईकोर्ट के मुख्य जज और अन्य जजों के स्थानांतरण के संबंध में भारत के चीफ जस्टिस के मत को प्राथमिकता दी जाएगी। भारत के चीफ जस्टिस की सिफारिश पर किया गया। कोई स्थांतरण दंड स्वरूप नहीं माना जाएगा और न ही उसे किसी आधार पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी। स्थानांतरण के संबंध में संबंधित जज की सहमति की आवश्यकता नहीं है। सभी नियुक्तियां और स्थांतरण के निर्णय विहित मापदंडों के आधार पर ही किए जा सकते हैं। बहुमत ने यह निर्णय दिया कि हाईकोर्ट में जजों की संख्या भी पुनर्विलोकन का विषय है।

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