The Indian Contract Act की धारा 31 के प्रावधान

Update: 2025-08-23 04:19 GMT

भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 31 के अंतर्गत समाश्रित संविदा की परिभाषा प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी संविदा को समपार्श्विक किसी घटना के घटित होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने के लिए हो।

धारा 31 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है-

ख से क संविदा करता है कि यदि ख का ग्रह जल जाए तो वह ख को दस हज़ार रूपये देगा, यह समाश्रित संविदा है

धारा 31 के अंतर्गत कुछ तत्वों का समावेश होता है जिसके अनुसार-

समाश्रित संविदा एक प्रकार की संविदा है जिसे कानूनी बल प्राप्त है।

यह संविदा से समपार्श्विक किसी घटना से संबंधित हो सकती है।

यह उक्त घटना से संबंधित नहीं भी हो सकती है।

जिसमें किसी बात को करने या न करने की बात होती है।

समाश्रित संविदा में अनिश्चितता होती है इसमें भविष्य में कोई घटना होने या ना होने जैसी बात होती है। समाश्रित संविदा से उत्पन्न होने वाले अधिकारों का प्रवर्तन उक्त घटना के घटने न घटने पर निर्भर करता है। यह किसी भी संविदा का समपार्श्विक होता है इसमें व्युत्क्रमानुपाती प्रतिज्ञाएं होती हैं।

कृपाल दास बनाम मैनेजर इकबाल एआईआर 1936 सिंध 26 के प्रकरण में कहा गया है कि कोई संविदा किसी संपत्ति का विक्रय किया जाना जबकि जो संयुक्त स्वामित्व के अधीन हैं और जब संयुक्त स्वामी संपदा को विभाजित कराने हेतु अग्रसर होंगे तो यह प्रवर्तनीय होगा अर्थात विभाजन संबंधी घटना के घटने पर ही यह प्रवर्तन योग्य माना जाएगा।

यदि वह भावी घटना जिस पर की कोई संविदा निर्भर है वह इस प्रकृति की है कि जिसके अनुसार कोई व्यक्ति बिना विनिर्दिष्ट किए हुए समय पर कोई कार्य करेगा तो वह घटना उस समय अवश्य हुई समझी जाएगी जबकि ऐसा व्यक्ति कोई बात करता है जिससे किसी निश्चित समय के भीतर या भविष्य में घटित होने वाली अनिश्चितताओं के बिना वैसा किया जाना संभव न हो।

जैसे कि 'क' यह करार करता है कि 'ख' यदि 'ग' से विवाह कर ले तो वह 'ख' को धनराशि देगा किंतु 'ग' 'घ' से विवाह कर लेता है न कि 'ख' से ऐसी स्थिति में 'ग' से 'ख' का विवाह होना संभव नहीं माना जाएगा क्योंकि उसने अपना विवाह 'घ' से कर लिया है किंतु यह संभव है कि 'घ' की मृत्यु हो जाने पर 'ख' 'ग' से विवाह कर सकता है।

जहां कोई संविदा किसी तृतीय पक्षकार द्वारा अनुमोदन पर निर्भर करती है तो ऐसी स्थिति में संविदा विधिमान्य होगी। कोई भी अनुमोदन कर दिया जाता है तो शर्त युक्तियुक्त रूप से संतुष्ट मानी जाएगी।

वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम राजेश 2012 बी सी 365 बॉम्बे के प्रकरण में कहा गया-

एक प्रत्याभूति की संविदा बैंक के उसके हिताधिकारी के बीच एक स्वतंत्र संविदा है तथा यदि यह एक संविदा था जो अनिश्चित भावी घटना घटित होने पर बैंक प्रत्याभूति का अवलंब लेने हेतु क्रेडिटर को अनुज्ञा देती है तो यह समाश्रित संविदा होती है जैसा की धारा 31 के अंतर्गत परिभाषित है तो वह जब तक घटना घटित नहीं होती विधि द्वारा पप्रवर्तनीय नहीं हो सकती। धारा 32 के उपबंध की दृष्टि से घटना घटित होने तक यह मात्र एक संविदा है जो प्रवर्तन नहीं होती है। समाश्रित संविदा के मामले में हिताधिकारी को तत्कालिक अदायगी की मांग करने को बैंक प्रत्याभूति का अवलंब लेने का अधिकार नहीं है।

इस ही प्रकार धारा 36 के भी प्रावधान हैं। धारा 36 के अंतर्गत यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी ऐसा करार जो किसी असंभव घटना पर आधारित होता है जिसका घट पाना ही असंभव है तो इस प्रकार का करार संविदा नहीं बनता है। किसी समाश्रित करार के संविदा बनने के लिए भी कुछ नियम होते हैं। कोई भी ऐसा करार जो असंभव है जिसका घट पाना ही संभव नहीं है तो इस प्रकार की घटना पर कोई करार संविदा नहीं बनता है।

जैसे कि कोई व्यक्ति यह करार कर ले कि चंद्रमा धरती पर आ जाए अब चंद्रमा का धरती पर आना असंभव है। इस प्रकार का करार संविदा नहीं होता है।

36 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है उस दृष्टांत के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से अपनी पुत्री से विवाह करने के लिए संविदा कर ले तथा यह कहे कि यदि वह उसकी पुत्री से विवाह करेगा तो वह उसे कुछ धनराशि देगा परंतु यदि इस प्रकार का करार करते समय पुत्री की मृत्यु हो चुकी है तो अब इस घटना का घट पाना संभव हो जाता है। इस प्रकार की असंभव घटना किसी भी परिस्थिति में घट ही नहीं सकती है तो यह करार संविदा नहीं हो सकता।

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