भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 124 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति के संबंध में उल्लेख किया गया है तथा क्षतिपूर्ति की संविदा कौन सी संविदा होती है इस पर स्पष्ट दिशा निर्देश दिए गए, लेकिन धारा 124 केवल क्षतिपूर्ति की संविदा क्या होती है इस संदर्भ में उल्लेख कर रही है परंतु क्षतिपूर्तिधारी के अधिकारों पर कोई उल्लेख नहीं है, उस पर कोई प्रावधान नहीं है।
धारा 125 क्षतिपूर्तिधारी के अधिकार के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा में स्पष्ट है कि दाता के क्या दायित्व होंगे और धारी के क्या अधिकार होंगे।
यह धारा क्षतिपूर्तिधारी के अधिकार का उल्लेख उस स्थिति में करती है जबकि उस पर वाद चलाया जाता है अर्थात कि यह धारा क्षतिपूर्तिधारी को उन दशाओं में उपलब्ध अधिकारों का उल्लेख करती है जबकि उसके विरुद्ध वाद चलाया गया हो परंतु धारा के अंतर्गत उस दशा में क्षतिपूर्तिधारी के सुलभ अनुदेशकों का उल्लेख नहीं किया गया है जबकि उस पर वाद नहीं चलाया गया है।
यह क्षतिपूर्ति जिसे देने हेतु से बाध्य किया जाता है किसी ऐसे बाध्य की प्रतिरक्षा हेतु समरूप मूल्य और ऐसे वाद के अधीन संदाय की गई कोई धनराशि जहां कोई धनराशि किसी बैंक में जमा की गई है जो सरकार के साथ में की गई संविदा के अधीन था किसी संविदात्मक दायित्व के अभाव में बैंकर का यह दायित्व है कि वह उक्त रकम जमाकर्ता को दें और वह संदाय (भुगतान) को रोक नहीं सकता।
क्षतिपूर्ति की संविदा का वचनग्रहिता अपने अधिकार क्षेत्र के अंदर कार्य करते हुए वचनदाता से धारा 125 के अंतर्गत निम्नलिखित वसूल कर सकता है-
वे सभी हानियां जिसके संदाय हेतु वह जिसे ऐसे वाद में विवश किया जाए जो किसी ऐसी बात के बारे में हो जिसे क्षतिपूर्ति करने का वचन लागू हो।
वह समस्त खर्चे जिसे वह देने के लिए विवश किया जाता है। यदि वह वाद लाने या प्रतिरक्षा करने में उससे वचनदाता के आदेशों का उल्लंघन किया है और करार इस प्रकार का हो कि जिस प्रकार का कार्य करना क्षतिपूर्ति की किसी संविदा के अभाव में उसके लिए प्रज्ञामुक्त होगा अथवा यदि वचनदाता ने वह वाद लाने का प्रतिरक्षा करने के लिए उसे प्राधिकृत किया हो।
वह समस्त धन राशियां जो उसने किसी विवाद के किसी समझौते के निबंधनों के अधीन दी थी हो यदि वह समझौता वचनदाता के आदेशों के प्रतिकूल न रहा हो और ऐसा रहा हो जो क्षतिपूर्ति की संविदा के अभाव में वचनग्रहिता के लिए करना प्रज्ञायुक्त होगा अथवा क्षतिपूर्तिदाता ने उसे मामले का समझौता करने के लिए प्राधिकृत किया हो।
स्मिथ बनाम हवेल 1851 (155 ई आर 379) के प्रकरण में यह निर्धारित किया गया कि पक्षकार उन अधिकारों को वसूलने के लिए अधिकृत है जो परिस्थितियों के अनुसार यथोचित एवं न्याय संगत है।
एक प्रकार से यह धारा 125 क्षतिपूर्तिधारी को उपचार उपलब्ध कर रही है। इस धारा के अनुसार जिस व्यक्ति को क्षतिपूर्ति का वचन दिया गया है वह व्यक्ति क्षतिपूर्ति नहीं होने की स्थिति में कोर्ट से उपचार प्राप्त कर सकता है। क्षतिपूर्ति के संबंध में भारतीय संविदा अधिनियम ने इस धारा में उपचार का समावेश कर क्षतिपूर्ति से संबंधित समस्त प्रावधान कर दिए है।