Representation of the People Act, 1950 की धारा 23 विशेष रूप से मतदाता सूचियों में नामों को शामिल करने से संबंधित है, जो मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करती है। यह धारा उन व्यक्तियों को अनुमति देती है जिनका नाम मतदाता सूची में नहीं है, वे पंजीकरण अधिकारी से नाम जोड़ने का आवेदन कर सकते हैं। धारा 23 का महत्व इसलिए है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि योग्य मतदाता चुनाव में भाग ले सकें, लेकिन नामांकन की अंतिम तिथि के बाद कोई बदलाव न हो, जो चुनाव की निष्पक्षता बनाए रखता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 का शीर्षक "मतदाता सूचियों में नामों का समावेशन" (Inclusion of names in electoral rolls) है।
"(1) कोई व्यक्ति जिसका नाम किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल नहीं है, वह अपने नाम को उस सूची में शामिल करने के लिए मतदाता पंजीकरण अधिकारी को आवेदन दे सकता है।
(2) मतदाता पंजीकरण अधिकारी, यदि संतुष्ट हो कि आवेदक मतदाता सूची में पंजीकृत होने का हकदार है, तो उसके नाम को उसमें शामिल करने का निर्देश देगा:
परंतु यदि आवेदक किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में पंजीकृत है, तो मतदाता पंजीकरण अधिकारी उस अन्य निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता पंजीकरण अधिकारी को सूचित करेगा और वह अधिकारी सूचना प्राप्त होने पर आवेदक का नाम उस सूची से हटा देगा।
(3) धारा 22 के अंतर्गत किसी प्रविष्टि का कोई संशोधन, स्थानांतरण या विलोपन नहीं किया जाएगा और इस धारा के अंतर्गत किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में नाम शामिल करने का कोई निर्देश नहीं दिया जाएगा, उस निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव के लिए नामांकन करने की अंतिम तिथि के बाद और उस चुनाव की समाप्ति से पहले।"
यह धारा तीन मुख्य भागों में विभाजित है। उपधारा (1) किसी भी योग्य व्यक्ति को नाम शामिल करने का अधिकार देती है। उपधारा (2) पंजीकरण अधिकारी को जांच के बाद नाम जोड़ने की शक्ति प्रदान करती है, साथ ही दोहरे पंजीकरण को रोकने का प्रावधान है। उपधारा (3) सबसे महत्वपूर्ण है, जो नामांकन की अंतिम तिथि के बाद मतदाता सूची में कोई बदलाव प्रतिबंधित करती है, जो चुनाव की अखंडता सुनिश्चित करती है।
धारा 23 का उद्देश्य मतदाता सूचियों को पूर्ण और सटीक बनाना है। भारत में करोड़ों मतदाताओं के साथ, कई लोग पंजीकरण से वंचित रह जाते हैं। यह धारा फॉर्म 6 के माध्यम से नाम जोड़ने की सुविधा देती है। हालांकि, उपधारा (3) का कठोर प्रावधान चुनावी धोखाधड़ी को रोकता है, जैसे अंतिम समय में फर्जी नाम जोड़ना। निर्वाचन आयोग ने इस धारा के तहत दिशानिर्देश जारी किए हैं, जैसे आधार लिंकिंग और ऑनलाइन आवेदन।
धारा 23 भारतीय लोकतंत्र में मतदाता अधिकारों की रक्षा करती है। संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिक मतदान के हकदार हैं, लेकिन सटीक सूची आवश्यक है। यह धारा नाम न होने पर सुधार का अवसर देती है, जो विशेष रूप से प्रवासी मजदूरों, महिलाओं और युवाओं के लिए उपयोगी है। उपधारा (3) चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखती है, क्योंकि नामांकन के बाद बदलाव राजनीतिक हेरफेर को आमंत्रित कर सकता है।
इस धारा का प्रभाव चुनावी चुनौतियों में दिखता है। यदि नामांकन के बाद नाम जोड़े जाते हैं, तो ऐसे मतदाताओं के वोट अवैध माने जाते हैं, जो चुनाव परिणाम प्रभावित कर सकते हैं। हाल के वर्षों में, निर्वाचन आयोग ने VLMS Voter List Management System जैसे डिजिटल टूल से इस प्रक्रिया को मजबूत किया है।
रूप लाल मेहता बनाम धन सिंह के मामले जहां कोर्ट ने मतदाताओं की आयु पर चुनौती पर विचार किया। कोर्ट ने माना कि धारा 23 के तहत नामांकन के बाद नाम जोड़ना अवैध है, और ऐसे वोट चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यह निर्णय मतदाता सूची की अंतिमता पर जोर देता है।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के एक मामले में कोर्ट ने नामांकन के बाद 1375 नाम जोड़ने को धारा 23(3) का उल्लंघन माना। हालांकि, याचिका में विवरणों की कमी के कारण खारिज कर दी गई, लेकिन कोर्ट ने काबुल सिंह मामले का हवाला देकर प्रतिबंध की पुष्टि की। इन निर्णयों ने धारा 23 को प्राकृतिक न्याय और चुनावी शुद्धता से जोड़ा।
रामजी प्रसाद सिंह बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में कोर्ट ने धारा 23(3) पर जोर दिया कि नामांकन के बाद कोई संशोधन या समावेशन नहीं हो सकता। इस मामले में अवैध वोटों पर चुनाव रद्द करने की मांग थी, और कोर्ट ने प्रतिबंध की कठोरता की पुष्टि की।
पी.टी. राजन बनाम कर्नाटक राज्य के प्रकरण में कोर्ट ने कहा कि धारा 23(3) अनिवार्य है, और नामांकन के बाद कोई बदलाव चुनाव को अमान्य कर सकता है। कोर्ट ने मतदाता सूचियों में हेरफेर पर सख्त रुख अपनाया। हाल के संदर्भ में, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स जैसे मामलों में धारा 23 का उल्लेख हुआ, जहां 'D' श्रेणी मतदाताओं पर चर्चा हुई, लेकिन मुख्य फोकस अन्य था। इन फैसलों ने धारा 23 को संवैधानिक अधिकारों से जोड़ा।
यह धारा 23 मतदाता सूचियों को पूर्ण बनाने का महत्वपूर्ण साधन है। यह योग्य व्यक्तियों को नाम जोड़ने का अधिकार देती है लेकिन नामांकन के बाद प्रतिबंध लगाती है, जो चुनावी निष्पक्षता सुनिश्चित करती है। भविष्य में, डिजिटल तकनीक से इसकी प्रभावशीलता बढ़ सकती है।