साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 307 से 309
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय 25 में जांच (Inquiry) और ट्रायल के दौरान साक्ष्य (Evidence) दर्ज करने के तरीके को विस्तार से समझाया गया है। इसमें प्रक्रियात्मक (Procedural) स्पष्टता और न्याय के साथ अभियुक्त (Accused) के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की गई है। यहां हम धारा 307 से 309 तक की सभी प्रावधानों को सरल भाषा में उदाहरण सहित समझाएंगे।
धारा 307: अदालत की भाषा का निर्धारण (Determination of Court Language)
धारा 307 राज्य सरकार को अधिकार देती है कि वह अपनी सीमा में सभी अदालतों, हाई कोर्ट को छोड़कर, के लिए भाषा निर्धारित करे। यह प्रावधान भाषाई एकरूपता (Linguistic Uniformity) और न्याय प्रक्रिया को सुगम बनाता है।
उदाहरण (Example):
अगर किसी राज्य में मुख्य रूप से तमिल बोली जाती है, तो राज्य सरकार उस क्षेत्र की सभी अधीनस्थ अदालतों के लिए तमिल को अदालत की भाषा के रूप में तय कर सकती है। इससे न्याय प्रक्रिया सभी पक्षों के लिए आसानी से समझने योग्य बनती है।
धारा 308: अभियुक्त की उपस्थिति में साक्ष्य दर्ज करना (Recording Evidence in the Presence of the Accused)
धारा 308 यह सुनिश्चित करती है कि ट्रायल या अन्य प्रक्रिया के दौरान साक्ष्य हमेशा अभियुक्त की उपस्थिति में दर्ज किए जाएं। अगर अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति माफ कर दी जाती है, तो साक्ष्य उसके वकील (Advocate) की उपस्थिति में दर्ज किए जा सकते हैं।
यह प्रावधान ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means) का उपयोग करने की अनुमति भी देता है, जिसे राज्य सरकार द्वारा नामित स्थल पर लागू किया जा सकता है।
एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि जब किसी 18 वर्ष से कम आयु की महिला, जो यौन अपराध (Sexual Offence) की पीड़ित है, का बयान दर्ज किया जाए, तो अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि पीड़िता का अभियुक्त से आमना-सामना न हो। हालांकि, अभियुक्त को जिरह (Cross-Examination) का अधिकार भी सुरक्षित रहेगा।
उदाहरण (Example):
अगर किसी 16 वर्षीय लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का मामला है, तो अदालत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उसका बयान एक अलग कक्ष में दर्ज कर सकती है, जहां अभियुक्त उसे देखे बिना अपने वकील के माध्यम से सुनवाई में भाग ले सकता है।
व्याख्या (Explanation):
"अभियुक्त" शब्द का मतलब यहां सिर्फ आपराधिक मामलों (Criminal Cases) तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अध्याय 9 के तहत शुरू किए गए मामलों में शामिल व्यक्ति भी आते हैं।
उदाहरण (Example):
अगर किसी भरण-पोषण विवाद (Maintenance Dispute) में वित्तीय गड़बड़ी का आरोप लगाया गया है, तो जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है, उसे भी साक्ष्य दर्ज होने के दौरान उपस्थित या प्रतिनिधित्व करने का अधिकार होगा।
धारा 309: समन-प्रकरणों (Summons-Cases) और जांच में साक्ष्य का मेमो (Memorandum) बनाना
धारा 309 समन-प्रकरणों, धारा 164 से 167 के तहत जांच और धारा 491 के तहत अन्य कुछ कार्यवाहियों में साक्ष्य दर्ज करने के तरीके का प्रावधान करती है। यह बताती है कि मजिस्ट्रेट (Magistrate) गवाह के बयान दर्ज करते समय साक्ष्य का सार (Substance of the Evidence) मेमो के रूप में तैयार करेंगे।
अगर मजिस्ट्रेट खुद यह मेमो नहीं बना सकते, तो उन्हें अपनी असमर्थता का कारण दर्ज करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इसे लिखित रूप में या अदालत में उनके उच्चारण (Dictation) से तैयार किया जाए। यह मेमो मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित (Signed) होगा और इसे आधिकारिक रिकॉर्ड का हिस्सा माना जाएगा।
उदाहरण (Example):
मान लीजिए, किसी संपत्ति विवाद (Property Dispute) के समन-प्रकरण में, एक गवाह ने किसी घटना के बारे में अपने अवलोकन दिए। मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि वे उस गवाही का सार अपनी अदालत की भाषा में सही तरीके से दर्ज करें और उस पर हस्ताक्षर करें।
जांच (Inquiry) में प्रावधानों का उपयोग:
धारा 164 से 167 में बयान और कबूलनामे (Confessions) से संबंधित प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए, अगर धारा 164 के तहत किसी गवाह ने किसी आपराधिक साजिश में किसी की भूमिका का बयान दिया, तो मजिस्ट्रेट को उस बयान के मुख्य बिंदुओं का सार तैयार करना होगा। यह मेमो ट्रायल के अगले चरणों में एक विश्वसनीय संदर्भ के रूप में काम करेगा।
प्रक्रियात्मक अनुपालन का महत्व (Importance of Procedural Compliance)
धारा 307 से 309 के तहत दिए गए प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि साक्ष्य दर्ज करने की प्रक्रिया न्यायपूर्ण और पारदर्शी हो। अदालत की भाषा का मानकीकरण (Standardization), अभियुक्त की उपस्थिति को प्राथमिकता देना, और सटीक दस्तावेज़ीकरण (Accurate Documentation) की अनिवार्यता न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावी और विश्वसनीय बनाते हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत धारा 307 से 309 में साक्ष्य दर्ज करने के लिए ऐसा ढांचा तैयार किया गया है जो अभियुक्त और पीड़ित दोनों के अधिकारों का सम्मान करते हुए न्यायपालिका की प्रक्रियात्मक दक्षता को बनाए रखता है।
अदालत की भाषा का निर्धारण, तकनीकी साधनों का उपयोग और सटीक रिकॉर्डिंग जैसे प्रावधान आधुनिक न्याय प्रणाली की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन करके अदालतें यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि सभी पक्षों के लिए न्याय निष्पक्ष और समान रूप से प्रदान किया जाए।