क्या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास स्वत: संज्ञान लेने की शक्ति है?

Update: 2024-12-16 12:44 GMT

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) भारत के पर्यावरण न्याय (Environmental Justice) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह तय किया गया कि क्या NGT को पर्यावरण से संबंधित मामलों में स्वत: संज्ञान (Suo Motu Powers) लेने का अधिकार है।

यह फैसला यह निर्धारित करता है कि NGT बिना किसी औपचारिक आवेदन या याचिका (Petition) के पर्यावरणीय क्षति (Environmental Degradation) के मामलों में कार्रवाई कर सकता है या नहीं।

NGT की भूमिका और अधिकार (Role and Mandate of NGT)

NGT का वैधानिक ढांचा (Statutory Framework)

NGT की स्थापना जटिल पर्यावरणीय मुद्दों को हल करने के लिए की गई थी, जिनके लिए विशेष ज्ञान (Specialized Knowledge) की आवश्यकता होती है। NGT अधिनियम, 2010 (NGT Act, 2010) के तहत इसे विशेष पर्यावरणीय कानूनों के तहत विवादों का निपटारा करने, मुआवजा देने और पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए आदेश जारी करने का अधिकार है।

NGT अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

• धारा 14 (Section 14): NGT को "मूल क्षेत्राधिकार" (Original Jurisdiction) देता है, जिससे यह पर्यावरण से जुड़े बड़े सवालों पर निर्णय ले सकता है।

• धारा 15 (Section 15): NGT को पर्यावरणीय क्षति के लिए राहत, मुआवजा और पुनर्स्थापन (Restitution) देने का अधिकार है।

• धारा 19 (Section 19): NGT को प्रक्रिया में लचीलापन (Flexibility) प्रदान करता है, यह CPC (Code of Civil Procedure) के तहत बंधा हुआ नहीं है, लेकिन प्राकृतिक न्याय (Principles of Natural Justice) के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है।

हालांकि इन प्रावधानों से NGT को व्यापक शक्तियां दी गई हैं, अधिनियम में स्वत: संज्ञान (Suo Motu) लेने के अधिकार का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यही अस्पष्टता (Ambiguity) इस मामले में विवाद का मुख्य कारण बनी।

वैधानिक उद्देश्य और इरादा (Legislative Intent and Objectives)

NGT अधिनियम का उद्देश्य पर्यावरणीय विवादों का प्रभावी और तेज़ निपटारा सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम की प्रस्तावना (Preamble) और उद्देश्य के वक्तव्य (Statement of Objects and Reasons) से यह स्पष्ट है कि इसका लक्ष्य पर्यावरण की रक्षा करना, अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखना और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं (International Commitments) को लागू करना है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के पीछे की मंशा (Intent) पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि NGT का गठन पर्यावरणीय समस्याओं का व्यापक समाधान करने के लिए किया गया था, और इसे स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण (Supreme Court's Reasoning)

NGT अधिनियम की व्याख्या (Interpretation of the NGT Act)

सुप्रीम कोर्ट ने NGT अधिनियम की "उद्देश्यपूर्ण व्याख्या" (Purposive Interpretation) की। उन्होंने कहा कि NGT का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण की रक्षा करना है। अगर इसके कार्यों को प्रक्रियात्मक बाधाओं (Procedural Constraints) से सीमित किया जाए, तो यह अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा।

कोर्ट ने हेडन नियम (Heydon's Rule) का उल्लेख किया, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी अधिनियम को उस समस्या को हल करने के लिए व्याख्यायित किया जाए, जिसे वह खत्म करने के लिए बनाया गया है। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अधिनियम में स्वत: संज्ञान का स्पष्ट उल्लेख न होने के बावजूद, NGT को ऐसे मामलों में कार्रवाई का अधिकार होना चाहिए।

पर्यावरणीय सिद्धांत और संवैधानिक दायित्व (Environmental Principles and Constitutional Mandate)

फैसले में NGT अधिनियम में निहित पर्यावरणीय सिद्धांतों (Environmental Principles) की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया:

1. सतत विकास (Sustainable Development): यह सुनिश्चित करना कि वर्तमान की जरूरतें भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित किए बिना पूरी हों।

2. सावधानी सिद्धांत (Precautionary Principle): पर्यावरणीय क्षति की स्थिति में रोकथाम के लिए कार्यवाही करना, भले ही वैज्ञानिक प्रमाण (Scientific Evidence) पूरी तरह उपलब्ध न हो।

3. प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle): प्रदूषकों को पर्यावरणीय क्षति के लिए वित्तीय रूप से जिम्मेदार ठहराना।

कोर्ट ने कहा कि इन सिद्धांतों के साथ-साथ अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत स्वस्थ पर्यावरण का संवैधानिक अधिकार, NGT की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।

अन्य ट्रिब्यूनल से तुलना (Comparison with Other Tribunals)

ट्रिब्यूनल जिनके पास स्वत: संज्ञान का अधिकार नहीं है (Tribunals Without Suo Motu Powers)

फैसले में उन ट्रिब्यूनलों की तुलना की गई जिनके पास सीमित अधिकार हैं, जैसे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act) और बैंक ऋण वसूली अधिनियम (Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act)। ऐसे ट्रिब्यूनल केवल उन्हीं अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं जो उन्हें स्पष्ट रूप से प्रदान किए गए हैं।

NGT की अनूठी भूमिका (Unique Role of NGT)

कोर्ट ने कहा कि NGT की जिम्मेदारी केवल विवादों को हल करने तक सीमित नहीं है। यह पर्यावरण की रक्षा और क्षति को रोकने में सक्रिय भूमिका निभाता है। इसका व्यापक अधिकार (Broad Mandate) इसे अन्य ट्रिब्यूनलों से अलग बनाता है।

महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख (Landmark Judgments Referenced)

1. भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन बनाम भारत संघ (Bhopal Gas Peedith Mahila Udyog Sangathan v. Union of India)

इस मामले में NGT को पर्यावरणीय मुद्दों के लिए एक विशेषज्ञ मंच (Specialized Forum) के रूप में स्थापित किया गया।

2. वेल्लोर सिटीज़न्स वेलफेयर फोरम बनाम भारत संघ (Vellore Citizens Welfare Forum v. Union of India)

सुप्रीम कोर्ट ने सतत विकास को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा माना।

3. आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बनाम प्रो. एम. वी. नायडू (Andhra Pradesh Pollution Control Board v. Prof. M. V. Nayudu)

विशेषज्ञ निकायों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया जो पर्यावरणीय चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकें।

4. मंत्री टेकज़ोन प्राइवेट लिमिटेड बनाम फॉरवर्ड फाउंडेशन (Mantri Techzone (P) Ltd. v. Forward Foundation)

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय अधिकारों को लागू करने के लिए NGT के व्यापक अधिकार क्षेत्र को मान्यता दी।

5. मेघालय राज्य बनाम ऑल डिमासा स्टूडेंट्स यूनियन (State of Meghalaya v. All Dimasa Students Union)

कोर्ट ने कहा कि NGT को पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने अधिकारों का उपयोग करना चाहिए।

मुख्य निष्कर्ष (Key Findings of the Court)

सुप्रीम कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि NGT स्वत: संज्ञान का प्रयोग कर सकता है, बशर्ते यह NGT अधिनियम के दायरे में रहे।

• NGT की शक्तियों को इसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए व्याख्यायित किया जाना चाहिए।

• NGT की भूमिका केवल विवाद निपटान तक सीमित नहीं है; इसमें रोकथाम और सुधारात्मक कार्य भी शामिल हैं।

• स्वत: संज्ञान पर्यावरणीय सिद्धांतों के साथ मेल खाता है।

फैसले का प्रभाव (Implications of the Judgment)

पर्यावरण न्याय को मजबूत करना (Strengthening Environmental Justice)

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से NGT को पर्यावरणीय मामलों में तेजी से और प्रभावी कार्रवाई करने की शक्ति मिलती है।

जवाबदेही सुनिश्चित करना (Ensuring Accountability)

फैसले से प्रदूषकों और सरकारी निकायों की जवाबदेही बढ़ती है, जिससे पर्यावरणीय क्षति को बिना कार्रवाई के नहीं छोड़ा जा सकता।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के साथ तालमेल (Aligning with International Commitments)

यह फैसला भारत की अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के साथ तालमेल बैठाता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा NGT के स्वत: संज्ञान अधिकार को मान्यता देना भारत के पर्यावरण न्याय में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह फैसला NGT की भूमिका को एक सक्रिय रक्षक (Proactive Guardian) के रूप में मजबूत करता है, जो संवैधानिक अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए काम करता है।

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