जेल में बंद व्यक्तियों की अदालत में पेशी की प्रक्रिया: धारा 301 और 302 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2024-12-09 15:06 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अध्याय 24 में उन प्रावधानों को शामिल किया गया है जो जेलों में बंद या हिरासत (Detention) में लिए गए व्यक्तियों की अदालत में उपस्थिति सुनिश्चित करने से संबंधित हैं। यह प्रावधान धारा 301 और 302 में दिए गए हैं। नीचे इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तारपूर्वक वर्णन और उदाहरण दिया गया है।

धारा 301: प्रमुख परिभाषाएं (Key Definitions)

धारा 301 इस अध्याय में इस्तेमाल होने वाले प्रमुख शब्दों को परिभाषित करती है ताकि उनकी स्पष्टता बनी रहे।

1. "हिरासत" (Detention): यह उन व्यक्तियों को शामिल करता है जो निवारक हिरासत (Preventive Detention) कानूनों के तहत बंद हैं। Preventive Detention का मतलब है कि किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकने के लिए पहले ही हिरासत में लिया गया हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act) के तहत हिरासत में लिया गया है, तो वह "हिरासत" की परिभाषा में आता है।

2. "जेल" (Prison): "जेल" का मतलब सिर्फ पारंपरिक जेल नहीं है, बल्कि यह निम्नलिखित को भी शामिल करता है:

o राज्य सरकार द्वारा "उप-जेल" (Subsidiary Jail) घोषित किए गए स्थान, जैसे कि आपातकालीन स्थिति या त्योहारों के दौरान बनाए गए अस्थायी जेल।

o सुधार गृह (Reformatory), बोर्स्टल संस्थान (Borstal Institution), या इसी प्रकार के अन्य संस्थान। उदाहरण के लिए, अगर किसी नाबालिग अपराधी को सुधार गृह भेजा जाता है, तो उसे "जेल" की परिभाषा में शामिल किया जाएगा।

धारा 302: अदालत के सामने उपस्थिति के लिए कैदियों का उत्पादन (Production of Confined or Detained Persons Before Court)

धारा 302 उन परिस्थितियों का प्रावधान करती है जहां किसी जेल में बंद व्यक्ति को अदालत में पेश करना आवश्यक हो।

उपधारा (1): अदालत के आदेश (Court Orders for Production)

यह उपधारा अदालतों को यह अधिकार देती है कि वे किसी हिरासत में लिए गए या बंद व्यक्ति को निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए पेश करने का आदेश दे सकती हैं:

1. आरोप का उत्तर देने के लिए (Answering a Charge): जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया गया हो और अदालत में उसकी उपस्थिति जरूरी हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी चोरी के मामले में किसी हिरासत में लिए गए व्यक्ति को आरोपी बनाया गया है, तो अदालत उसकी उपस्थिति का आदेश दे सकती है।

2. गवाह के रूप में पूछताछ (Examination as a Witness): जब किसी बंद व्यक्ति की गवाही (Testimony) मामले के लिए जरूरी हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी अपराध के मुख्य चश्मदीद गवाह (Eyewitness) को किसी अन्य मामले में जेल में रखा गया है, तो अदालत उसकी गवाही दर्ज करने के लिए उसे पेश करने का आदेश दे सकती है।

इस प्रक्रिया के लिए अदालत जेल प्रभारी अधिकारी को आदेश देती है।

उपधारा (2): दूसरे वर्ग के मजिस्ट्रेट के आदेशों पर नियंत्रण (Countersignature Requirement for Magistrates of Second Class)

अगर यह आदेश किसी दूसरे वर्ग (Second Class) के मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया गया है, तो इसे तब तक लागू नहीं किया जाएगा जब तक कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate, CJM) इसे अनुमोदित (Countersign) न कर दे। इसका उद्देश्य निम्न स्तर के मजिस्ट्रेट के कार्यों पर निगरानी रखना है।

उदाहरण के लिए, अगर दूसरे वर्ग के मजिस्ट्रेट ने किसी कैदी को किसी छोटे मामले में पेश करने का आदेश दिया है, तो इसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जांच और अनुमोदन के बाद ही लागू किया जाएगा।

उपधारा (3): अनुमोदन के लिए कारण बताना आवश्यक (Statement of Facts for Countersigning)

जब आदेश अनुमोदन के लिए भेजा जाता है, तो मजिस्ट्रेट को यह बताना जरूरी होता है कि वह आदेश क्यों जरूरी है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उस कारण को जांचने के बाद आदेश को स्वीकार (Countersign) या अस्वीकार (Decline) कर सकता है।

उदाहरण के लिए, अगर मजिस्ट्रेट कहता है कि एक बंद व्यक्ति की गवाही सह-आरोपी (Co-accused) के लिए अलिबी (Alibi) साबित करने के लिए जरूरी है, तो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करेगा कि यह वजह पर्याप्त है या नहीं। अगर कारण पर्याप्त नहीं लगता, तो वह अनुमोदन करने से मना कर सकता है।

व्यावहारिक प्रभाव और सुरक्षा उपाय (Practical Implications and Safeguards)

इस अध्याय के प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि न्याय की प्रक्रिया और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के अधिकारों के बीच संतुलन बना रहे।

• न्यायिक निगरानी (Judicial Oversight): दूसरे वर्ग के मजिस्ट्रेट के आदेशों पर अनुमोदन की आवश्यकता अधिकारों के दुरुपयोग को रोकती है।

• पारदर्शिता (Transparency): अनुमोदन के लिए कारण बताने की प्रक्रिया जवाबदेही सुनिश्चित करती है।

• न्याय तक पहुंच (Access to Justice): हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की न्यायिक कार्यवाही में उपस्थिति सुनिश्चित करने से न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत किया जाता है।

अध्याय 24, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, न्यायिक प्रक्रिया में हिरासत और बंद व्यक्तियों को शामिल करने के महत्व को रेखांकित करता है। धारा 301 में दी गई परिभाषाएं और धारा 302 में उल्लिखित प्रक्रियाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि इन मामलों को प्रभावी और सुरक्षित तरीके से संभाला जाए। हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की उपस्थिति न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखने में सहायक है।

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