समन मामलों में सुनवाई की प्रक्रिया: सेक्शन 274 और 275 BNSS, 2023 के तहत छोटे अपराधों के लिए सरल न्याय

Update: 2024-11-22 11:40 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो अब भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) का स्थान ले चुकी है, में समन मामलों (Summons Cases) की सुनवाई के लिए सरल और प्रभावी प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इस लेख में हम अध्याय 21 के तहत दिए गए सेक्शन 274 और 275 को सरल हिंदी में समझाएंगे ताकि आम जनता इसे आसानी से समझ सके।

समन मामला क्या है? (What is a Summons Case?)

समन मामले (Summons Case) और वारंट मामले (Warrant Case) के बीच का अंतर समझना जरूरी है।

1. समन मामला (Section 2(x)): यह वे मामलें होते हैं जिनमें अपराध कम गंभीर होता है। इसमें वे अपराध शामिल होते हैं जिनमें सजा मौत, आजीवन कारावास (Life Imprisonment), या दो साल से अधिक की जेल नहीं है।

o उदाहरण: हल्की चोरी, सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance), या मामूली ट्रैफिक उल्लंघन।

2. वारंट मामला (Section 2(z)): इसमें गंभीर अपराध शामिल होते हैं जैसे हत्या, बलात्कार, या ऐसे अपराध जिनकी सजा दो साल से अधिक है।

समन मामलों में आमतौर पर छोटे-मोटे अपराध आते हैं और इन्हें त्वरित तरीके से निपटाया जाता है।

जब आरोपी अदालत में पेश हो (Section 274 - Procedure When Accused Appears)

जब समन मामले का आरोपी मजिस्ट्रेट (Magistrate) के सामने पेश होता है, तो सुनवाई की प्रक्रिया सरल और कम औपचारिक (Formal) होती है।

1. आरोप की जानकारी देना (Informing the Accused): मजिस्ट्रेट आरोपी को उस अपराध के बारे में बताता है जिसके लिए उसे बुलाया गया है। इसे मौखिक रूप से (Verbally) समझाया जाता है ताकि आरोपी को स्पष्ट रूप से पता चले कि आरोप क्या है।

o उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति पर सार्वजनिक उपद्रव का आरोप है, तो मजिस्ट्रेट उसे बताएगा कि उसने किस प्रकार का कार्य कानून का उल्लंघन किया है।

2. आरोपी का जवाब (Plea from the Accused): आरोप समझाने के बाद, मजिस्ट्रेट आरोपी से पूछता है कि वह दोषी मानता है या बचाव (Defense) करना चाहता है।

o अगर आरोपी दोषी होने की बात स्वीकार कर लेता है, तो मामला सजा की ओर बढ़ता है।

o अगर वह आरोप से इनकार करता है, तो मामला आगे जांच के लिए बढ़ता है।

3. आरोप पत्र (Formal Charge) की आवश्यकता नहीं: समन मामलों में औपचारिक आरोप पत्र (Chargesheet) की जरूरत नहीं होती। मजिस्ट्रेट का मौखिक विवरण (Oral Explanation) ही पर्याप्त है। इससे समय और प्रक्रिया दोनों सरल हो जाते हैं।

4. आरोपी का डिस्चार्ज (Discharge of the Accused): अगर मजिस्ट्रेट को लगता है कि आरोप बेबुनियाद (Groundless) हैं, तो वह आरोपी को रिहा (Release) कर सकता है। इस रिहाई को कानूनी तौर पर मामला खत्म (Closure) माना जाता है, और मजिस्ट्रेट इसके कारण लिखित में दर्ज करता है।

o उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति पर अतिक्रमण (Trespassing) का झूठा आरोप लगाया गया हो, लेकिन उसके पास जमीन के मालिकाना हक (Ownership) के सबूत हों, तो मजिस्ट्रेट उसे तुरंत रिहा कर सकता है।

दोषी मानने पर सजा (Conviction on Plea of Guilt - Section 275)

अगर आरोपी खुद को दोषी (Guilty) मानता है, तो मजिस्ट्रेट उसे दोषी ठहराने (Convict) का अधिकार रखता है।

इसके लिए मजिस्ट्रेट कुछ कदम उठाते हैं:

1. स्वीकारोक्ति दर्ज करना (Recording the Plea): मजिस्ट्रेट आरोपी के दोष स्वीकार करने (Plea of Guilt) को उसके शब्दों में दर्ज करता है।

o उदाहरण: अगर आरोपी कहता है, “हां, मैंने पैसे बिना अनुमति लिए,” तो मजिस्ट्रेट इस बयान को उसी तरह दर्ज करेगा।

2. दोषी ठहराने का विवेकाधिकार (Discretion to Convict): आरोपी द्वारा दोषी माने जाने के बाद भी, मजिस्ट्रेट को तुरंत सजा सुनाने की बाध्यता नहीं होती। वह परिस्थितियों (Circumstances) का आकलन (Assessment) करता है।

o उदाहरण: अगर किसी ने सार्वजनिक संपत्ति (Public Property) को नुकसान पहुंचाने की बात स्वीकार की लेकिन बताया कि यह गलती से हुआ, तो मजिस्ट्रेट दया दिखाकर मामूली जुर्माना (Fine) लगा सकता है।

यह प्रावधान क्यों महत्वपूर्ण हैं? (Why Are These Provisions Important?)

सेक्शन 274 और 275 के तहत दी गई प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि छोटे अपराधों की सुनवाई सरल और त्वरित हो। औपचारिकता को कम कर, सीधे आरोपी से बात कर, और मजिस्ट्रेट को निर्णय लेने का विवेकाधिकार देकर यह प्रावधान न्याय (Justice) को अधिक सुलभ (Accessible) बनाते हैं। साथ ही, आरोपी को अनुचित उत्पीड़न (Unjust Harassment) से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा (Safeguards) प्रदान करते हैं।

छोटे अपराधों के लिए सरल न्याय (Simplified Justice for Minor Offences)

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, में समन मामलों की सुनवाई का उद्देश्य है न्याय प्रक्रिया को त्वरित, प्रभावी, और न्यायसंगत (Fair) बनाना। सेक्शन 274 और 275 में प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, आरोपी के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाती है। छोटे अपराधों के लिए यह प्रक्रिया कानून को आम आदमी के लिए अधिक सुलभ बनाती है।

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