प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया और दाखिल करने की समय-सीमा: धारा 290 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय XXIII में प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining) की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से समझाया गया है। इसका उद्देश्य न्यायालयों के बोझ को कम करना और मुकदमों (Trials) के निपटान को तेज करना है। धारा 290 में यह प्रक्रिया विस्तृत की गई है, जो धारा 289 पर आधारित है।
धारा 289 उन अपराधों को परिभाषित करती है जिनमें प्ली बार्गेनिंग लागू हो सकती है और उनके अपवादों (Exceptions) को भी स्पष्ट करती है।
प्ली बार्गेनिंग दाखिल करने की समय-सीमा
धारा 290(1) के अनुसार, कोई भी आरोपी (Accused) आरोप तय होने (Framing of Charge) के 30 दिनों के भीतर प्ली बार्गेनिंग उस न्यायालय में दाखिल कर सकता है जहां उसका मामला विचाराधीन है। इस समय-सीमा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दोषस्वीकृति प्रक्रिया जल्दी की जाए और अनावश्यक विलंब (Delay) से बचा जा सके।
उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी के खिलाफ 1 दिसंबर को आरोप तय किए जाते हैं, तो उसे 31 दिसंबर तक याचिका दाखिल करनी होगी।
याचिका और शपथपत्र (Affidavit) की आवश्यकताएँ
धारा 290(2) के तहत, याचिका में उस मामले का संक्षिप्त विवरण (Brief Description) होना चाहिए जिससे याचिका संबंधित है। इसमें अपराध (Offence) के विवरण भी शामिल होंगे। याचिका के साथ आरोपी को एक शपथपत्र भी जमा करना होगा।
इस शपथपत्र में यह स्पष्ट किया जाएगा कि याचिका स्वेच्छा (Voluntarily) से दाखिल की गई है, अपराध के लिए कानून में दी गई सजा को समझने के बाद दाखिल की गई है, और यह भी कि आरोपी को उसी अपराध में पहले कभी दोषी (Convicted) नहीं ठहराया गया है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी पर धारा 379 (चोरी) के तहत आरोप है, तो उसे यह शपथ पत्र देना होगा कि उसने अपनी मर्जी से और बिना किसी दबाव के याचिका दाखिल की है।
पक्षकारों (Parties) को नोटिस जारी करना
धारा 290(3) के अनुसार, याचिका प्राप्त होने के बाद, न्यायालय को लोक अभियोजक (Public Prosecutor), शिकायतकर्ता (Complainant), और आरोपी को नोटिस जारी करना होगा। यह सुनिश्चित करता है कि सभी पक्षकारों को इस प्रक्रिया की जानकारी हो और वे नियत तिथि (Scheduled Date) पर अदालत में उपस्थित हो सकें।
उदाहरण के लिए, यदि किसी मामले में धारा 323 (साधारण हमला) के तहत आरोप हैं, तो अदालत अभियोजक, शिकायतकर्ता और आरोपी को दोषस्वीकृति प्रक्रिया में भाग लेने के लिए नोटिस देगी।
आरोपी की निजी जांच (In-Camera Examination)
धारा 290(4) के तहत, अदालत आरोपी की निजी जांच (In-Camera Proceedings) करती है। इस प्रक्रिया में मामला संबंधित कोई अन्य पक्ष उपस्थित नहीं होता। अदालत यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी ने याचिका स्वेच्छा से दाखिल की है और वह किसी दबाव में नहीं है।
उदाहरण के लिए, यदि आरोपी सुनवाई के दौरान झिझक दिखाता है, तो अदालत उससे पूछताछ कर सकती है ताकि उसकी मंशा (Intention) स्पष्ट हो सके।
यदि अदालत इस बात से संतुष्ट होती है कि याचिका स्वेच्छा से दाखिल की गई है, तो वह अभियोजक या शिकायतकर्ता और आरोपी को 60 दिनों की अवधि तक आपसी समझौता (Mutual Agreement) करने का समय देती है।
यह समझौता पीड़ित को मुआवजा (Compensation) या मुकदमे के दौरान होने वाले खर्च की भरपाई भी शामिल कर सकता है। अदालत फिर अगली सुनवाई के लिए तारीख तय करती है।
स्वेच्छा की कमी पर याचिका का अस्वीकृत होना
यदि अदालत यह पाती है कि याचिका स्वेच्छा से दाखिल नहीं की गई है, या आरोपी को उसी अपराध में पहले दोषी ठहराया जा चुका है, तो याचिका खारिज कर दी जाती है।
ऐसे मामलों में, अदालत मुकदमे की प्रक्रिया वहीं से शुरू करती है जहां से याचिका दाखिल की गई थी। उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी को धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत पहले दोषी ठहराया गया है और वह प्ली बार्गेनिंग दाखिल करता है, तो अदालत उसकी याचिका खारिज कर मुकदमे को जारी रखेगी।
धारा 289 का संदर्भ
धारा 290 का सीधा संबंध धारा 289 से है, जो प्ली बार्गेनिंग के दायरे को परिभाषित करती है। जहां धारा 289 यह निर्धारित करती है कि किन अपराधों में प्ली बार्गेनिंग दाखिल हो सकती है, धारा 290 इसकी प्रक्रिया को लागू करने का ढांचा प्रदान करती है।
उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी पर आर्थिक अपराध (Socio-Economic Offence) जैसे मनी लॉन्ड्रिंग (Money Laundering) का आरोप है (जो धारा 289 के तहत अयोग्य है), तो अदालत धारा 290 के तहत उसकी याचिका को तुरंत अस्वीकार कर देगी।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 290 प्ली बार्गेनिंग प्रक्रिया के लिए एक विस्तृत और संगठित दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह प्रक्रिया स्वेच्छा, पारदर्शिता (Transparency), और निष्पक्षता (Fairness) को प्राथमिकता देती है।
समय पर याचिका दाखिल करना और प्रक्रिया के स्पष्ट चरणों का पालन करना, न्याय की बेहतर उपलब्धि में योगदान देता है। चाहे वह पीड़ित को मुआवजा देने के माध्यम से हो या मामलों के शीघ्र निपटान से, धारा 290 के तहत दोषस्वीकृति न्यायिक प्रणाली का एक महत्वपूर्ण उपकरण साबित होता है।