च्युइंग-गम और पान-मसाला बैन: जानिए खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक को लेकर क्या है कानून?
COVID-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए हाल ही में चंडीगढ़ प्रशासन ने एहतियात के तौर पर, चंडीगढ़ में च्युइंग-गम, बबल-गम, पान-मसाला और अन्य संबद्ध उत्पादों की बिक्री और इनके थूकने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़ में प्रधान गृह सचिव, अरुण गुप्ता, जो इस केंद्र शासित प्रदेश के खाद्य सुरक्षा आयुक्त का प्रभार भी संभालते हैं, ने 6 अप्रैल (सोमवार) को ये आदेश जारी किए।
उनके मुताबिक, ऐसा इसलिए किया गया कि चूँकि यह वायरस मनुष्य के लार (सैलाइवा) में मौजूद हो सकता है, और च्यूइंग-गम और अन्य संबद्ध उत्पादों के थूके जाने से फैल सकता है, इसलिए बेहतर यह होगा कि न ही इन उत्पादों की बिक्री की जाये और न ही इनका उपभोग करके इन्हें थूका जाए।
इसी प्रकार, इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बीते 25 मार्च को देश भर में लगाए गए 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान, पान मसाला के उत्पादन, वितरण और बिक्री पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी।
इसी क्रम में हाल ही में हरियाणा में भी 30 जून, 2020 तक राज्य में च्युइंग-गम और बबल गम की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया था। यह आदेश बीते 2 अप्रैल से प्रभावी हुआ था। गौरतलब है कि यह सभी आदेश, राज्यों के खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा जारी किये गए हैं।
आखिर क्यों इन उत्पादों की बिक्री, उपयोग एवं थूकने पर लगायी गयी है रोक?
दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, COVID-19 बूंदों (ड्रापलेट्स) के माध्यम से फैलता है। इसलिए चबाने वाले उत्पादों, खासकर च्युइंग-गम, बबल-गम और पान-मसाला की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का उद्देश्य, एहतियातन, इसे खाकर थूकने की संभावना को कम करते हुए कोरोनावायरस के प्रसार को रोकना है।
हालाँकि, च्युइंग-गम निर्माताओं का यह कहना है कि COVID-19, च्युइंग-गम को थूकने के माध्यम से फैलता है, इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है और वे सभी हरयाणा सरकार के आदेश (राज्य में च्युइंग-गम और बबल गम की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने) का विरोध कर रहे हैं।
गौरतलब है कि चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा दिए गए आदेश में, खुले में थूकने को अलग से प्रतिबंधित नहीं किया गया है, बल्कि केवल इन उत्पादों की बिक्री पर रोक लगायी गयी है और इन वस्तुओं का उपोग करके थूकने पर रोक लगायी गयी है।
हालाँकि, चंडीगढ़ प्रशासन में प्रधान गृह सचिव, अरुण गुप्ता ने यह अवश्य कहा है कि, "आदर्श रूप से लोगों को खुले में नहीं थूकना चाहिए। लोग थूकते समय मुंह ढंकने के लिए नैपकिन, टिश्यू पेपर या हैंकी का उपयोग कर सकते हैं।"
किस कानून के अंतर्गत लगायी गयी है इन उत्पादों की बिक्री पर रोक?
हमे यह ध्यान में रखना चाहिए कि लोक स्वास्थ्य (public health) के हित में, किसी भी खाद्य सामग्री की बिक्री पर प्रतिबन्ध, राज्य सरकार द्वारा - खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FOOD SAFETY AND STANDARDS ACT, 2006) के तहत लगाया जा सकता है।
यही नहीं, राज्य सरकार द्वारा, इसी कानून के अंतर्गत किसी भी खाद्य वस्तु के विनिर्माण (manufacture), भण्डारण (storage), या वितरण (distribution) को भी प्रतिषिद्ध (prohibit) किया जा सकता है।
राज्यों को ऐसा करने में सक्षम बनाने के लिए वर्ष 2006 में यह कानून, अर्थात खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FOOD SAFETY AND STANDARDS ACT) अस्तित्व में लाया गया था।
इस कानून को खाद्य पदार्थों से संबंधित काननों को समेकित करने और खाद्य पदार्थों के लिए विज्ञान-आधारित मानक अधिकथित करने तथा उनके विनिर्माण, भंडारण, वितरण, विक्रय और आयात को विनियमित करने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की स्थापना करने, मानव उपभोग के लिए सुरक्षित तथा स्वास्थ्यप्रद खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियमित किया गया था।
उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबन्ध को लेकर इस कानून में मौजूद प्रावधान
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 30 की उप-धारा (2) के खंड (क़) के अनुसार किसी भी राज्य का खाद्य सुरक्षा आयुक्त (The Commissioner of Food Safety), लोक स्वास्थ्य के हित में किसी खाद्य वस्तु के सम्पूर्ण राज्य में या उसके किसी क्षेत्र या भाग में ऐसी अवधि के लिए, जो एक वर्ष से अधिक की नहीं होगी, जो राजपत्र में इस निमित्त अधिसूचित आदेश में निर्दिष्ट किया जाए, विनिर्माण, भण्डारण, वितरण या विक्रय को प्रतिषिद्ध करना - धारा 30 की उप-धारा (2) का खंड (क़)।
दूसरे शब्दों में, किसी भी राज्य का खाद्य सुरक्षा आयुक्त (The Commissioner of Food Safety), यदि उसको लोक स्वास्थ्य (public health) के हित में ऐसा करना आवश्यक लगे, तो वह किसी भी खाद्य वस्तु के विनिर्माण (manufacture), भण्डारण (storage), वितरण (distribution) या विक्रय/बिक्री (sale) को प्रतिषिद्ध (prohibit) कर सकता है।
हालाँकि, वह ऐसा केवल तभी कर सकता है जब उसके द्वारा, इस सम्बन्ध में एक आदेश, राजपत्र (Official Gazette) में इस निमित्त अधिसूचित आदेश में निर्दिष्ट कर दिया जाए। ऐसा आदेश, सम्पूर्ण राज्य में या उसके किसी क्षेत्र या भाग में 1 वर्ष तक की अवधि के लिए लागू किया जा सकता ह, यानी ऐसे आदेश की अवधि 1 वर्ष से अधिक की नहीं हो सकती है।
राज्य के खाद्य सुरक्षा आयुक्त (Commissioner of Food Safety) की नियुक्ति
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 3 की उप-धारा (1) के खंड (ड) के अनुसार, किसी राज्य के "खाद्य सुरक्षा आयुक्त" से, अधिनियम की धारा 30 के अधीन नियुक्त सुरक्षा आयुक्त अभिप्रेत है।
वहीँ, अधिनियम की धारा 30 (1) के अनुसार, खाद्य सुरक्षा आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यह धारा यह कहती है कि,
राज्य सरकार, खाद्य सुरक्षा और मानकों तथा इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के अधीन अधिकथित अन्य अपेक्षाओं के दक्ष कार्यान्वयन के लिए राज्य के लिए खाद्य सुरक्षा आयुक्त नियुक्त करेगी।
प्रतिबंधित वस्तुओं की बिक्री होने के परिणाम
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 30 (1) (a) के अंतर्गत जारी आदेश के अनुसार, यदि किसी वस्तु के विनिर्माण (manufacture), भण्डारण (storage), वितरण (distribution) या विक्रय/बिक्री (sale) को प्रतिषिद्ध (prohibit) किया जाता है, और उसके बावजूद, किसी दुकान या विभाग के स्टोर और अन्य स्थानों से ऐसे किसी भी उत्पाद की बिक्री की जाती है तो उसे जब्त किया जा सकता है और उसके पश्च्यात कानूनी कार्यवाही की जाती है।
दरअसल, अधिनियम की धारा 38 के अंतर्गत, खाद्य सुरक्षा आयुक्त को यह अधिकार प्राप्त हैं कि वह किसी ऐसे खाद्य या अन्य पदार्थ का नमूना ले सके, जो उसे मानव उपभोग के लिए आशयित प्रतीत होती है या जिसका विक्रय किया गया है, और जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी इस अधिनियम के किसी उपबंध या उसके अधीन बनाये गए विनियमों या किये गए आदेशों [(जैसे कि धारा 30 (1) (a) के अंतर्गत जारी किया गया एक आदेश)] के अधीन की गयी कार्यवाहियों में साक्ष्य के रूप में आवश्यकता पड़ सकती है। और बिक्री के लिए खतरनाक है।
इसके अलावा, धारा 38 के ही अनुसार, खाद्य सुरक्षा आयुक्त जब्त किये गए उत्पादों की एक रसीद दुकानदार को देगा। तत्पश्च्यात, आगे की कानूनी कार्यवाही के लिए संबंधित न्यायालयों में एक विस्तृत रिपोर्ट/चालान पेश किया जाएगा। स्थानीय अदालत इन आदेशों के उल्लंघन करने वाले के खिलाफ कारावास के साथ जुर्माना भी लगा सकती हैं।