निर्भया मामला: जानिए क्यों बदली गई दोषियों को फांसी दिए जाने की तारीख?

Update: 2020-01-18 08:35 GMT

जैसा कि हम सब जानते हैं कि निर्भया बलात्कार-हत्या के मामले में चारों दोषियों को फांसी देने की तारीख में बदलाव किया गया है। अब चारों दोषियों को 1 फरवरी, 2020 को फांसी दी जाएगी।

इससे पहले दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार (7 जनवरी, 2020) को इस मामले में 4 दोषियों को फांसी की सजा के लिए 22 जनवरी को सुबह 7 बजे का वक़्त मुक़र्रर करते हुए डेथ वारंट जारी किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बीते 14 जनवरी को मामले में दोषी, मुकेश और विनय की क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज कर दिया था। उसी दिन, मुकेश ने दिल्ली के उपराज्यपाल और राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी, जिसे शुक्रवार (17 जनवरी, 2020) को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया।

हालाँकि बुधवार (15 जनवरी, 2020) को ही दिल्ली सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह सूचित कर दिया था कि इस मामले में मौत की सजा के दोषियों को 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकेगी, क्योंकि उनमें से एक (मुकेश) द्वारा दया याचिका दायर की गई है।

दिल्ली सरकार और जेल अधिकारियों ने अदालत में यह कहा था कि नियमों के तहत, दोषियों को फांसी देने से पहले, राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर फैसले का इंतजार करना होगा। उसके पश्च्यात जैसे ही राष्ट्रपति ने कल (17 जनवरी) को मुकेश की दया याचिका ख़ारिज की, दिल्ली की तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने दोषियों के खिलाफ नए डेथ वारंट जारी करने की मांग की।

ताजा मृत्यु वारंट जारी करने के लिए एक आवेदन को आगे बढ़ाते हुए, लोक अभियोजक इरफान अहमद ने अदालत को यह सूचित किया कि राष्ट्रपति ने मुकेश की दया याचिका को खारिज कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि तिहाड़ अधिकारियों ने मुकेश को इस तथ्य के बारे में सूचित किया है कि उसकी दया याचिका खारिज कर दी गई है।

इसी के फलस्वरूप पटियाला हाउस कोर्ट्स के सत्र न्यायाधीश सतीश अरोड़ा ने शुक्रवार (17 जनवरी) को ही निर्भया बलात्कार मामले में चारों दोषियों को फांसी की सजा के लिए नए सिरे से डेथ वारंट जारी कर दिया। नए डेथ वारंट में सज़ा के निष्पादन की निर्धारित नई तिथि 1 फरवरी 2020, सुबह 6 बजे दी गयी है।

क्यों किया गया तारीख में बदलाव?

जैसा कि हम जानते हैं कि मृत्यु वारंट, एक अदालत द्वारा जारी किए गए नोटिस का एक प्रकार है, जो एक दोषी, जिसे मौत की सजा दी गई है, की फांसी के समय और सजा के स्थान की घोषणा करता है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि अदालत के द्वारा जारी किया गया एक डेथ वारंट, जेल प्रशासन को संबोधित करते हुए जारी किया जाता है। दोषी पाए गए कैदी को फांसी दिए जाने के बाद, कैदी की मौत से जुड़े सर्टिफिकेट वापस कोर्ट में भेजे जाते हैं। इन डॉक्यूमेंट्स के साथ कैदी का डेथ वारंट भी वापस कर दिया जाता है।

अब सवाल यह उठता है की यदि राष्ट्रपति ने मुकेश की दया याचिका को, उसको फांसी दिए जाने की तय तारीख (22 जनवरी) से पहले ही ख़ारिज कर दिया है तो आखिर क्यों चारों दोषियों को तय तारीख 22 जनवरी को फांसी नहीं दी जा सकती है?

दरअसल शत्रुघ्न चौहान बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2014) 3 SCC) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह दिशा-निर्देश दिए थे कि मौत की सजा पाने वाले कैदी को फांसी के लिए मानसिक रूप से तैयार होने के लिए न्यूनतम 14 दिनों का नोटिस दिया जाना चाहिए। यह 14 दिन तबसे जोड़े जायेंगे जबसे उसने अपने सारे कानूनी उपचारों का इस्तेमाल कर लिया हो। इसीलिए जैसे ही राष्ट्रपति के समक्ष मुकेश की दया यचिका खारिज हुई, वैसे ही नए डेथ वारंट की मांग जेल अधिकारीयों द्वारा अदालत से की गयी।

इसके अलावा दिल्ली जेल नियम, 2018 के अनुसार भी व्यवहारिक रूप से मौत की सजा पाए इन दोषियों को 22 जनवरी की तारीख को फांसी नहीं दी जा सकती है।

दिल्ली जेल नियम (नियम नंबर 858) यह कहता है कि, चूँकि दया याचिका की अस्वीकृति के संचार और फांसी की निर्धारित तिथि के बीच, सुप्रीम कोर्ट द्वारा (शत्रुघ्न चौहान मामला) 14 दिनों की न्यूनतम अवधि तय की गई थी इसलिए इसका पालन किया जाना होगा। यह 14 दिन दोषी को इसलिए दिए जाने आवश्यक हैं कि वह स्वयं को फांसी के लिए तैयार कर सके और अपने सभी मामलों को निपटाने और अपने परिवार के सदस्यों से एक अंतिम बार मिलने के लिए या किसी भी न्यायिक उपाय का लाभ उठाने में सक्षम हो सके।

इसलिए, कैदी को खुद को तैयार करने और अपने मामलों को सुलझाने/निपटाने और अपने परिवार के सदस्यों से एक आखिरी बार मिलने या किसी भी न्यायिक उपाय का लाभ उठाने के लिए मौत की सजा के लिए एक स्पष्ट 14 दिन प्रदान किया जाता है और यही दिल्ली जेल नियम में लिखा गया है।

आदर्श रूप से, एक कैदी द्वारा उसके पास मौजूद सभी कानूनी उपचारों को समाप्त कर लेने के बाद ही इस वारंट की कार्यवाही होनी चाहिए। फिर भी कानून में इसकी प्रक्रिया को लेकर बहुत कम स्पष्टता मौजूद है, और फलस्वरूप, राज्य सरकारों के कार्यों में इसको लेकर कोई स्पष्टता नहीं दिखती कि आखिर कब डेथ वारंट की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा सकता है।

बाकी तीनों को क्यों नहीं दी सकती 22 जनवरी को फांसी?

जैसा कि हमने जाना कि केवल मुकेश ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी तो उसे 14 दिन का समय दिया जाना उचित मालूम पड़ता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर बाकी तीनों को नियत समय पर फांसी क्यों नहीं दी जा सकती है?

इसका जवाब बीते 15 जनवरी को दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल अधिकारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में जस्टिस मनमोहन और जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की पीठ को बताया, दरअसल जेल नियमों के तहत अगर किसी मामले में एक से अधिक व्यक्तियों को मौत की सजा दी गई है और अगर उनमें से एक ने दया याचिका दाखिल की है, तो फांसी की सजा को अन्य दोषियों के लिए भी तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए जब तक कि दया याचिका पर फैसला नहीं हो जाता है।

गौरतलब है कि बीते 15 जनवरी को मामले में दोषी मुकेश ने वकील वृंदा ग्रोवर के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमे 7 जनवरी के मृत्यु-वारंट के आदेश पर रोक लगाने की गुहार लगायी गई थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि 14 जनवरी, 2020 को उसने दिल्ली के उपराज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिकाएं भी दायर की हैं। 

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