निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 4 : विनिमय पत्र क्या होता है

Update: 2021-09-08 05:13 GMT

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) जैसा कि तीन प्रकार के लिखत का उल्लेख कर रहा है वचन पत्र, विनिमय पत्र, और चेक। पिछले आलेख में वचन पत्र के संबंध में उल्लेख किया गया था। इस आलेख के अंतर्गत विनिमय पत्र का उल्लेख किया जा रहा है।

विनिमय पत्र भी इस अधिनियम का महत्वपूर्ण भाग है तथा उससे संबंधित नियमों को भी इस आलेख में प्रस्तुत किया गया है। विनिमय पत्र की परिभाषा और उसका परिचय इस आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है साथ ही उससे संबंधित न्याय निर्णय भी प्रस्तुत है।

यह विनिमय पत्र का सामान्य प्रारूप है। कोई विशेष प्रारूप अपेक्षित नहीं है। केवल यह अपेक्षित है कि इसे धारा 5 के अपेक्षाओं को पूरा किया जाना चाहिए। एक विनिमयपत्र सदैव लेनदार द्वारा अपने देनदार (ऋणी) पर एक निश्चित धनराशि के भुगतान के लिये लिखा जाता है। विनिमय पत्र सदैव वचनपत्र के विपरीतता एक निश्चित धनराशि के भुगतान करने का आदेश अन्तर्निहित करता है।

इंग्लिश विधि के विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 की धारा 3 में इसे परिभाषित किया गया है :-

विनिमय पत्र एक लेखबद्ध लिखत है जिसमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि उस लिखत के वाहक को या किसी व्यक्ति या उसके आदेशानुसार किसी व्यक्ति से माँग पर या निश्चित अवधि के पश्चात् या भविष्य में किसी निश्चित तिथि पर अशर्त भुगतान करने का आदेश होता है।

विनिमय पत्र एक लिखत है जिसके द्वारा एक निश्चित व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि अशर्त भुगतान करने का आदेश होता है।

विनिमय पत्र के पक्षकार- एक विनिमय पत्र के निम्नलिखित तीन पक्षकार होते हैं :-

1)- लेखीवाल- जो विनिमय पत्र लिखता है और अपने ऋणों को एक निश्चित धनराशि बिना शर्त भुगतान करने का आदेश देता है।

2)- ऊपरवाल- जो प्रतिग्रहीता होता है जिसे भुगतान करने का आदेश होता है।

3)- आदाता – वह व्यक्ति जिसे लिखत के अधीन भुगतान प्राप्त होता है।

विनिमय पत्र के आवश्यक लक्षण-

1)- एक लेखबद्ध लिखत- इसे लेखबद्ध होना चाहिए।

2)- संदाय करने का आदेश- एक विनिमयपत्र में संदाय करने का आदेश होता है। संदाय करने का आदेश निवेदन के रूप में भी हो सकता है, परन्तु इसे आज्ञासूचक होना चाहिए। रफ बनाम वेब के मामले में वादी रफ प्रतिवादी वेब का नौकर था प्रतिवादी ने उसे नौकरी से निकाल दिया और उसकी मजदूरी के लिये निम्नलिखित शब्दों में एक ड्राफ्ट दिया।

" श्री नेल्सन श्री वेब को उसके लेखे पर रफ को आदेशानुसार संदाय करके अत्यधिक बाध्य करेंगे।"

इस मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रपत्र विनिमय पत्र था, यह एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को वादी को या उसके आदेशानुसार धन का संदाय करने का आदेश था। यह पूर्णतया प्रकट है कि प्ररूप की भाषा बहुत नम्र थी, किन्तु यह कहा गया है कि कृतज्ञता के निबन्धनों की प्रस्ताव में संदाय करने के वचन (आदेश) को नष्ट नहीं करता है।

जो अपेक्षित है वह यह है कि प्ररूप की भाषा को संदाय करने के आदेश को दर्शित करना चाहिए। यदि भाषा संदाय करने के आदेश को दर्शित नहीं करती है, तो प्ररूप विनिमय पत्र नहीं होगा।

लिटल बनाम स्लैकफोर्ड में वादी ने एक ड्राफ्ट वादी को निम्नलिखित शब्दों में जारी किया :-

"यदि मेरे नाम पर आप इस पत्र के पेश करने वाले कोई £7 दे दें तो आप अपने नम्र कर्मचारी स्लैकफोर्ड को बहुत आभारी करेंगे।" न्यायालय ने यह धारित किया कि यहाँ पेपर एक माँग को स्पष्ट नहीं करता है जिससे दूसरे पर संदाय करने का मांग करने का अधिकार हो। इसका ऋजु अर्थ केवल यह है कि यदि आप संदाय करें तो आभारी रहेंगे। आदेश ऐसा हो जिससे दूसरे को हर हालत में मुद्रा संदाय करना अपेक्षित हो केवल संदाय प्रदान करने का प्राधिकारी पर्याप्त नहीं है।

हेमिल्टन बनाम स्पाटिसवुड के वाद में लिखत था "सेवा में, एलेकजेण्डर स्पाटिसवुड, महोदय, हम आपको प्राधिकार देते हैं कि आप हमारे नाम से विलियम जेन्टिल के आदेश पर 6 हजार पौण्ड संदाय करें।

न्यायालय ने यह धारित किया कि पत्र आत्यन्तिक आशय यह नहीं रखता है कि प्रत्येक दशा में मुद्रा का भुगतान किया जाय, बल्कि प्रतिवादी को भुगतान के लिए प्राधिकृत करता है। अतः यह विनिमय पत्र नहीं है।

यदि पत्र शिष्ट भाषा के बावजूद भुगतान करने का आदेश स्पष्ट करता है तो लिखत विनिमय पत्र होगा।

3)- बिना शर्त आदेश- तीसरा यह कि संदाय करने का आदेश बिना किसी शर्त के होना चाहिए। वचनपत्र में अशर्त" शब्द को स्पष्ट किया जा चुका है। जहाँ नोट या बिल में संदाय किसी विशेष निधि से करने के लिए है, वहाँ आदेश सशर्त होगा। इस प्रकार किसी गृह के विक्रय की धनराशि में से 5000 रु० संदाय का आदेश, सशर्त आदेश है, अतः विनिमय पत्र नहीं है।

वचनपत्र के असमान एक विनिमय पत्र में लेनदार की ओर से देनदार को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित अवधि के पश्चात् किसी निश्चित व्यक्ति को संदाय करने का आदेश निहित करता है।

4)- केवल मुद्रा- चौथा यह है कि आदेश केवल मुद्रा और मुद्रा ही संदाय करने का होना चाहिए इसे वचनपत्र में स्पष्ट किया जा चुका है।

5)- पक्षकारों का निश्चित होना- एक विनिमय पत्र तीन पक्षकारों को अपेक्षित करता है, अर्थात् लेखीवाल ऊपरवाल एवं आदाता युक्तियुक्त निश्चितता के साथ उक्त दोनों पक्षकारों का नाम अथवा अन्यथा रूप में इंगित होना चाहिए। कभी-कभी लेखीवाल एवं आदाता एक ही व्यक्ति होते हैं। अतः जहाँ विनिमय पत्र में यह लिखा है कि "मुझे या आदेशितों को भुगतान करे" ऐसी दशा में वहाँ केवल दो ही पक्षकार होते है. अतः विनिमय पत्र नहीं होगा।

ऊपरवाल का निश्चित होना व्यक्ति जिसे विनिमय पत्र लिखा गया है "ऊपरवाल" कहलाता है और इसे अवश्य विनिमय पत्र में नामित अथवा इंगित युक्तियुक्त निश्चितता के साथ किया जाना चाहिए जिससे आदाता यह जान सके कि वह किसको लिखत पर प्रतिग्रहण एवं संदाय के लिये प्रस्तुत कर सके। ऐसा ऊपरवाल संविदा करने के लिए सक्षम होना चाहिए अन्यथा विनिमय पत्र अनादृत माना जाएगा।

पाने वाला (आदाता) का निश्चित होना- आदाता वह व्यक्ति होता है जिसे लिखत के अधीन संदाय प्राप्त होता है। इसे एक निश्चित व्यक्ति होना चाहिए। काल्पनिक एवं अस्तित्वहीन आदाता भारतीय विधि में इस बिन्दु पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, परन्तु आंग्ल विधि में काल्पनिक एवं अस्तित्वहीन आदाता के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान है कि ऐसी दशा में विनिमय पत्र वाहक को देय माना जाएगा। बैंक ऑफ इंग्लैण्ड बनाम वगिलियानों में यह निर्णीत किया गया था कि काल्पनिक आदाता की दशा में विनिमयपत्र वाहक को देय माना जाएगा।

6)- विनिमय पत्र को लेखीवाल द्वारा आवश्यक रूप में हस्ताक्षरित होना चाहिए। हस्ताक्षर का प्रमाणन आवश्यक नहीं।

7)- स्टाम्पित होना चाहिए - वचनपत्र के समान एक विनिमयपत्र को भी स्टाम्पित होना चाहिए। जो विनिमय पत्र सेवर्ग में है उनके विषय में विनिमय पत्रों का संवर्ग (धारा 132) विनिमय पत्र" ऐसी मूल प्रतियों में लिखे जा सकेंगे जिनमें से हर एक संख्यांकित हो और यह उपबन्ध अन्तर्विष्ट रखता हो कि वह केवल उसी समय तक देय बना रहेगा जब तक कि अन्य असंदन रहते हैं। सभी मूल प्रतियाँ मिलकर एक संवर्ग गठित करती हैं, किन्तु पूरे संवर्ग से केवल एक विनिमय पत्र गठित होता है और वह तब निर्वापित हो जाता है जब उन प्रतियों में से कोई भी एक पृथक विनिमय पत्र होती है निर्वापित हो जाता।

अपवाद जबकि कोई व्यक्ति विनिमयपत्र को विभिन्न मूल प्रतियों को विभिन्न व्यक्तियों के पक्ष में प्रतिगृहांत करता या पृष्ठांकित करता है और तब वह और हर एक मूल प्रति का पश्चात्वर्ती पृष्ठांकन ऐसी मूल प्रति पर ऐसे दायी होते तो मानो वह पृथक् विनिमय पत्र हो।

प्रथम अर्जित मूल प्रति का धारक सबका हकदार होता है (धारा 133) ही संवर्ग की विभिन्न मूल प्रतियों के सम्यक्-अनुक्रम-धारकों के बीच का जहाँ तक संबंध है, उनमें से वह, जिसने अपनी मूल प्रति का हक सबसे पहले अर्जित किया, अन्य मूल प्रतियों का और विनिमय पत्र के धन का हकदार होता।

विनिमय पत्र की पाँच निश्चितताएं- प्रत्येक विनिमय पत्र निम्नलिखित पाँच निश्चितताओं को अन्तर्निहित करता है-

1. लेखीवाल का निश्चित होना।

2. ऊपरवाल का निश्चित होना।

3. आदाता का निश्चित होना।

4. आदेश का निश्चित होना अर्थात् बिना किसी शर्त के होना।

5. धनराशि का निश्चित होना।

वचनपत्र एवं विनिमय पत्र में अन्तर-

वचनपत्र एवं विनिमयपत्र में समानता है, अर्थात् लेखबद्ध होना, मुद्रा का संदाय, निश्चित धनराशि, स्टाम्पित होना, दोनों को परक्राम्यता एवं दोनों में प्रतिफल की उपधारणा, परन्तु दोनों में निम्नलिखित मौलिक अन्तर होता है:-

(1) पक्षकारों के सम्बन्ध में वचनपत्र में केवल दो पक्षकार, लेखक आदाता होते हैं, जबकि विनिमय पत्र में लेखीवाल, आदाता एवं ऊपरवाल तीन पक्षकार होते हैं। वचनपत्र की दशा में लेखक एवं विनिमयपत्र की दशा में लेखीवाल कहा जाता है।

(2) दायित्व के सम्बन्ध में- वचनपत्र में मेकर (लेखक) की आबद्धता प्राथमिक होती है, जबकि विनिमय पत्र में लेखीवाल की आबद्धता गौड़ होती है, जबकि ऊपरवाल की आबद्धता प्राथमिक होती है।

(3) आदेश के सम्बन्ध में- वचनपत्र में संदाय करने का अशर्त वचन एवं आबद्धता होता है, जबकि विनिमय पत्र में बिना शर्त संदाय करने का आदेश होता है।

(4) प्रतिग्रहण के सम्बन्ध में विनिमय पत्र में ऊपरवाल के प्रतिग्रहण अपेक्षित होता है और प्रतिग्रहण के बिना पक्षकारों के बीच संविदात्मक सम्बन्ध उत्पन्न नहीं होता है। वचनपत्र में प्रतिग्रहण की आवश्यकता नहीं होती है।

(5) अधिनियम के प्रावधान की प्रयोज्यता- अधिनियम के निम्नलिखित प्रावधान केवल विनिमय पत्र पर ही प्रयोज्य होते हैं:-

(1) प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापन।

(2) प्रतिग्रहण।

(3) आदरार्थ प्रतिग्रहण।

(4) ऊपरवाल एवं जीकरीवाल।

(5) बिलों का संवर्ग में लिखा जाना।

(6) पक्षकारों के सम्बन्ध से सम्बन्धित वचनपत्र में आदाता का प्रत्यक्ष सम्बन्ध लेखक से होता है। जबकि विनिमयपत्र की दशा में आदाता का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रतिग्रहीता से न कि लेखीवाल से होता है।

(7) अनादर की दशा में -

(i) एक वचनपत्र केवल असंदत्त की दशा में अनादृत होता है, जबकि विनिमय पत्र असंदत्त एवं अप्रतिग्रहण दोनों दशा में अनादूत होता है।

(ii) वचनपत्र के अनादर की दशा में अन्य पक्षकारों को सूचित करना अपेक्षित नहीं होता है, जबकि विनिमय पत्र के अनादर की दशा में अन्य पक्षकारों को सूचित करना आवश्यक होता है।

(8) देनदार एवं लेनदार का सम्बन्ध - वचनपत्र की दशा में लेखक एवं आदाता का सम्बन्ध देनदार एवं लेनदार का होता है, जबकि विनिमय पत्र में देनदार एवं लेनदार का सम्बन्ध ऊपरवाल एवं लेखीवाल के बीच होता है।

(9) प्रसाक्ष्य के सम्बन्ध में - वचनपत्र के अनादर की दशा में प्रसाक्ष्य अपेक्षित नहीं होता है, जबकि विनिमयपत्र के अनादर में प्रसाक्ष्य आवश्यक होता है।

(10) विनिमय पत्र वचनपत्र के रूप में धारा 17 के अनुसार जहाँ किसी लिखत को या तो वचनपत्र या तो विनिमय पत्र के रूप में अर्थान्वयन हो, वहाँ धारक अपने विवेकानुसार उसे विनिमय पत्र या वचनपत्र के रूप में मान सकता है, तत्पश्चात् लिखत वैसा ही माना जाएगा।

(11) लिखत की निर्मुक्ति–जब वचनपत्र का लेखक सम्यक् अनुक्रम में भुगतान कर देता है, वचनपत्र उन्मुक्त हो जाता है। जबकि विनिमय पत्र की दशा में प्रतिग्रहीता (ऊपरवाल) के द्वारा सम्यक् अनुक्रम की दशा में विनिमय पत्र उन्मुक्त हो जाता है।

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