जानिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के संदर्भ में विशेष बातें
The National Security Act of 1980 is an act of the Indian Parliament promulgated on 23 September, 1980.
मानव अधिकारों के अधीन किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए किसी अपराध के अधीन ही बंदी बनाया जा सकता है, परंतु भारत में कुछ निवारक विधियां ऐसी हैं, जिनके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को अपराध करने के पूर्व ही या अपराध करने से रोकने के उद्देश्य से बंदी बनाया जा सकता है और एक निश्चित अवधि तक निरुद्ध रखा जा सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 भी ऐसी ही एक निवारक विधि है, जो केंद्रीय और राज्य सरकार को तथा उसके अधीन रहने वाले अधिकारियों को असीमित शक्तियां प्रदान करती है। राज्य एवं केंद्र सरकार किसी भी व्यक्ति को राज्य और देश की सुरक्षा बनाए रखने के लिए निरुद्ध कर सकती है।
अनेक बार इस अधिनियम की आलोचना की गई है, क्योंकि यह अधिनियम एक प्रकार से नागरिकों के विरुद्ध तथा नागरिकों से हटकर समस्त धरती के मनुष्य के विरुद्ध किसी भी राज्य के सरकार को असीमित शक्तियां प्रदान करता है।
ए के राय बनाम भारत संघ ए आर आई 1982 उच्चतम न्यायालय 710 के मामले में इस अधिनियम को संविधान के संगत बताया गया है और यह निर्देश दिए गए हैं कि सरकारें इस अधिनियम को सावधानी से उपयोग में लाएं और बड़े ऐतिहासिक अपराधियों के लिए ही इस कानून का उपयोग करें।
इस प्रकार का कानून शोषणकारी हो सकता है, यदि उस कानून को उसके गलत अर्थों में उपयोग किया जाए। इस लेख के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के कुछ विशेष प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।
केंद्रीय और राज्य दोनों को शक्तियां
इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को निरुद्ध करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों को शक्तियां दी गई हैं। केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के अधीन रहने वाले पदाधिकारी इस अधिनियम के अंतर्गत उचित आधार पाए जाने पर व्यक्तियों को निरुद्ध कर सकते हैं।
निरुद्ध करने के आधार
निरूद्ध करने के आदेश अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत दिए गए हैं।
केंद्र एवं राज्य सरकार किसी भी नागरिक को एवं विदेशी व्यक्ति को इस अधिनियम के अंतर्गत विरुद्ध कर सकती हैं।
कोई भी ऐसा कार्य जिससे देश की सुरक्षा को ख़तरा हो, ऐसा कोई कार्य कोई विदेशी कर रहा हो या भारत में निरंतर रहने वाला कोई विदेशी किसी घटना को अंजाम देने के बाद भारत से भागने का निरंतर प्रयास कर रहा है।
केंद्र सरकार या राज्य सरकार को यदि किसी व्यक्ति के संदर्भ में जब संतुष्टि हो जाती हैं कि वह व्यक्ति लोक व्यवस्था को बनाए रखने वाले कार्यों में बाधा डाल रहा है तथा वह व्यक्ति समाज के भीतर आवश्यक सेवा एवं वस्तुओं की पूर्ति में बाधा डाल रहा है, ऐसी आवश्यक सेवा और वस्तुओं को समाज में दिया जाना नितांत आवश्यक है और वह व्यक्ति इसकी पूर्ति में बाधा डालता है तो भी उसे निरुद्ध करने का आदेश दिया जा सकता है।
राज्य सरकार किसी ऐसे स्थान पर किसी जिला दंडाधिकारी एवं पुलिस कमिश्नर को इस प्रकार से आदेश जारी करने के लिए निर्देश दे सकती है।
सरकार यदि संतुष्ट है कि ऐसा आदेश दिया जाना चाहिए तो ऐसा आदेश दिए जाने के लिए निर्देश देती है, परंतु इस धारा के अंतर्गत यदि निर्देश दिया जाता है तो ऐसा निर्देश प्रथम बार 3 माह की अवधि से ज्यादा का नहीं होगा अर्थात जिस व्यक्ति को निरुद्ध करने का निर्देश जिला दंडाधिकारी एवं पुलिस कमिश्नर को राज्य सरकार ने दिया है तथा यह कहा है कि ऐसा आदेश तो ऐसे आदेश में किसी भी व्यक्ति को प्रथम बार तीन माह के लिए निरुद्ध किया जाएगा।
अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 3 के अंतर्गत यदि आदेश जारी किया जाता है तो पुलिस अधिकारी,जिला दंडाधिकारी को सरकार को रिपोर्ट भेजनी होगी एवं 12 दिन के भीतर ऐसी रिपोर्ट भेजनी ही होगी। यदि 12 दिन के भीतर ऐसी रिपोर्ट नहीं भेजी जाती है तो सरकार द्वारा दिया गया निर्देश प्रभावहीन हो जाएगा।
निरूद्ध किए गए व्यक्ति को निरूद्ध किये जाने के आधार बताना
निरूद्ध किए गए व्यक्ति को जिस दिनांक को निरूद्ध किया जाता है उस दिन से 5 दिन के भीतर निरूद्ध के आधार बताया जाए। यदि कोई युक्तियुक्त कारण है ऐसी परिस्थिति में 15 दिन के भीतर निरूद्ध किए गए व्यक्ति को निरुद्ध करने के आधार बताए जाएंगे तथा उसको उचित कार्यवाही करने के परामर्श दिए जाए।
सलाहकार बोर्ड
अधिनियम की धारा 9 के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार सलाहकार बोर्ड का गठन करती है। सलाहकार बोर्ड में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या फिर ऐसे न्यायाधीश होने की पात्रता रखने वाले व्यक्ति सदस्य होते हैं। अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग सलाहकार बोर्ड होते हैं। कोई राज्य एक से अधिक सलाहकार बोर्ड भी बना सकता है।
इस अधिनियम के अंतर्गत सलाहकार बोर्ड की महत्वपूर्ण भूमिका है। राज्य सरकार सलाहकार बोर्ड को नियुक्त किए गए व्यक्तियों की रिपोर्ट प्रेषित करता है। सलाहकार बोर्ड के समक्ष ऐसी रिपोर्ट 3 सप्ताह के भीतर सरकारों को पेश करनी होती है। सलाहकार बोर्ड ऐसी रिपोर्ट के ऊपर अपनी जांच बैठाता है तथा उस पर अपना निर्णय भी देता है।
इस अधिनियम के अंतर्गत सलाहकार बोर्ड धारा 12 के अनुसार किसी निरुद्ध किए गए व्यक्ति पर अपना निर्णय देते हुए एक निश्चित अवधि के लिए उस व्यक्ति को विरुद्ध किए जाने का आदेश देता है या फिर अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (2) के अनुसार यदि लाए गए व्यक्ति के संदर्भ में सलाहकार बोर्ड यह पाता है कि लाए गए व्यक्ति को निरूद्ध किया जाना उचित नहीं है तो वह ऐसे व्यक्ति को छोड़ देता है।
सलाहकार बोर्ड के समक्ष किसी निरूद्ध व्यक्ति की ओर से अधिवक्ता द्वारा पैरवी किए जाने का का प्रावधान इस अधिनियम में नहीं रखा गया है।
निरुद्ध के जाने की अधिकतम अवधि
अधिनियम की धारा 13 के अनुसार किसी भी निरूद्ध किए गए व्यक्ति को निरूद्ध किए जाने के आदेश देने से 12 महीने तक के लिए निरूद्ध रखे जाने का आदेश दिया जा सकता है। समुचित सरकार किसी भी समय अपने द्वारा दिए गए किसी भी आदेश को वापस भी ले सकती है या पुनः नवीन कोई आदेश दे सकती है।
समुचित सरकार द्वारा दिए गए कोई आदेश को चुनौती
इस अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध समुचित सरकार धारा 3 के अंतर्गत कोई आदेश जारी करती है तो वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध आदेश जारी किया गया है वह सलाहकार बोर्ड के दिए निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है। रिट याचिका के माध्यम से धारा 3 के अंतर्गत जारी किए गए आदेश को भी चुनौती दे सकता है या फिर दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 482 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में आदेश को चुनौती दे सकता है।