गर्भधारण पूर्व निदान कारक तकनीक, भ्रूण लिंग चयन विशेष निषेध पी० एन० डी० पी० टी० अधिनियम 1994 है।
स्त्री दमन हेतु समाज में लिंग चयन की तकनीक विकसित हो गई तथा लिंग का चयन करने के पश्चात पुत्री मालूम होने पर गर्भपात कर दिया जाता था। यह तकनीक मनुष्यता पर संकट के रूप में सामने आ गई है। रूढ़िवादी भारतीय सोच में पुरुष संतान का मोह तथा कन्या के लिए उपेक्षापूर्ण लिंग भेद का प्रचलन अत्यंत पुराना है। कन्याओं को पैदा होने के बाद भी मार दिया जाता था।
वैज्ञानिक तकनीक ऐसी आई जिसने पैदा होने के पूर्व मारने के तरीके विकसित करें। पहले जन्म के बाद मारा जाता था अब जन्म के पहले ही मार देने की तकनीक विकसित हो। गर्भ में कन्या भ्रूण को ही समाप्त करने का चलन बढ़ गया था। यह बुराई खतरनाक हो गई थी। विधि निर्माता, समाज सुधारक और अन्य संगठनों द्वारा वैज्ञानिक तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण परीक्षण हेतु न किया जा सके ऐसी मांग उठने लगी।
इस मांग के परिणाम स्वरूप जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक दुरुपयोग का निषेध एवं विनियमन विधेयक 1991 लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।
संशोधनों के बाद यह अधिनियम गर्भधारण पूर्व एवं पूर्व निदान कारक तकनीक (भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994) के नाम से जाना गया। इस अधिनियम के अंतर्गत कुल 34 धाराएं और 8 अध्याय शामिल किए गए।
इस अधिनियम का उद्देश्य गर्भधारण से पूर्व या पश्चात लिंग का चयन निषेध करना तथा जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग अनुवंशिक प्रदोष या गुणसूत्र समानता व्यक्ति पर कतिपय गर्भस्थ दोषपूर्ण विकास संतान, दोष संबंधी समस्याओं हेतु किए जाने पर इसका विनियमन करना और इस तकनीक का दुरुपयोग लिंग चयन हेतु करके कन्या भ्रूण हत्या करने अन्य संबंधित कार्यों यह विषय हेतु किए जाने पर निषेध लगाना है।
उल्लेखनीय है कि यदि जन्म पूर्व निदान तकनीक का प्रयोग अनुमन्य उद्देश्य जिनमें अनुवांशिक असमानता, गुणसूत्र असमानता, गर्भस्थ दोषपूर्ण विकास, लिंग संबंध दोष का पता लगाना और उपचार करना है के लिए किया जाता है तो यह विधि सम्मत और अनुमन्य है। परंतु इस तकनीक का दुरुपयोग गर्भस्थ भ्रूण या गर्व का लिंग चयन लिंग निर्धारण हेतु किया जाए जिसका परिणाम कन्या भ्रूण हत्या हो सकता है तो ऐसे लिंग चयन हेतु वह गर्भ से पूर्व या पश्चात विरुद्ध है।
गर्भधारण पूर्व और पश्चात जन्म पूर्व निदान तकनीक भ्रूण लिंग चयन निषेध अधिनियम 1994 के उद्देश्य निम्नलिखित है-
गर्भधारण के पूर्व केवल जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण के लिंग परीक्षण पर निषेध लगाना।
अनुवांशिक परामर्श केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला में तथा अनुवांशिक क्लिनिक्स द्वारा गर्भधारण पूर्व और जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का दुरुपयोग निषेध तथा ऐसे संस्थानों का पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत किया जाना अनिवार्य है।
अल्ट्रासाउंड मशीन इत्यादि की बिक्री पर रोक
जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक विनियमन
जन्म पूर्व निदान कारक तकनीकी उपयोग हेतु शर्तें
गर्भधारण महिला को उपरोक्त तकनीक के प्रयोग से होने वाले संभावित दुष्परिणामों की जानकारी देने और सहमति प्राप्त करने की बाध्यता का अनुपालन करने के उपरांत ही तकनीक का प्रयोग किया जाना।
किसी भी अनुवांशिक परामर्श केंद्र, अनुवांशिक प्रयोगशाला, अनुवांशिक क्लीनिक द्वारा जन्म पूर्व एवं गर्भधारण पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग भ्रूण के लिंग की पहचान करने के लिए नहीं किया जाएगा। किसी भी व्यक्ति को गर्भधारण से पूर्व या पश्चात लिंग चयन का विकल्प चयन करने का अधिकार नहीं है। इसका उल्लेख इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत किया गया है।
गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध-
अधिनियम के अंतर्गत वर्णित निषेध की अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान जिसका उल्लेख इस अधिनियम की धारा 27 और 28 में किया गया है।
गर्भ पूर्व जन्म पूर्व निदान तकनीक का प्रयोग गर्भ पूर्व जन्म पूर्व लिंग चयन हेतु किसी भी व्यक्ति चिकित्सक स्त्री रोग विशेषज्ञ बाल रोग विशेषज्ञ अथवा अनुवांशिक सलाह केंद्र या अनुवांशिक प्रयोगशालाओं द्वारा किए जाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। उपरोक्त तकनीक के प्रयोग का विनियमितीकरण अधिनियम के प्रावधान के अनुरूप ही किए जाने का प्रावधान है।
इस अधिनियम की धारा 3 बी के अनुसार अल्ट्रासाउंड मशीन का प्रयोग गर्भ पूर्व एवं जन्म पूर्व लिंग चयन हेतु किया जा सकता है अतः मशीन के दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से संशोधन के माध्यम से नवीन धारा तीन भी जोड़ी गई। इस धारा द्वारा किसी अल्ट्रासाउंड यंत्र या भ्रूण के लिंग की पहचान करने वाले किसी उपकरण की बिक्री ऐसे अनुवांशिक सलाह केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला अनुवांशिक चिकित्सालय या अन्य व्यक्ति को नहीं की जाएगी जो कि अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत नहीं है।
इस अधिनियम की धारा 3 संशोधनों के उपरांत समावेशित नवीन धारा 3(1) के माध्यम से किसी महिला या पुरुष पर दोनों पर लिंग चयन परीक्षण या संबंधित विषय जैसे भ्रूणतरल या शुक्राणु और अंडाणु या युग्मक का एक दूसरे से पृथक्करण निषेध है।
इस अधिनियम की धारा 4 की उपधारा 3 के अनुसार जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक का प्रयोग उक्त तकनीक का प्रयोग करने हेतु योग्य व्यक्ति द्वारा तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि जिन कारणों से इस तकनीक का उपयोग यह प्रयोग किया जाना है। उन्हें लेखबद्ध न किया जाए और ऐसा करने हेतु वह व्यक्ति संतुष्ट न हो उपरोक्त परिस्थितियों में कुछ शर्तों का पालन करना होता है जो निम्नलिखित हैं-
गर्भधारण महिला की आयु 35 वर्ष से अधिक है।
गर्भधारण महिला का 2 बार लगातार गर्भपात हो चुका है।
गर्भधारण महिला शक्ति निर्योग्यता कारक पदार्थ जैसे विकिरण संक्रमण या रसायन से अनावृत हो।
गर्भधारण महिला या उसका पति पारिवारिक इतिहास रहा हो कि वह मंदबुद्धि या शारीरिक निर्योग्यता जैसे मानसिक मंदता या अन्य अनुवांशिक रोग से ग्रस्त हो।
अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफी किए जाने पर उसका विवरण रखना-
इस अधिनियम की धारा 5 के अनुसार जन्म पूर्व निदान प्रक्रिया का प्रयोग तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक-
सभी प्रमुख प्रभाव एवं पश्चातवृत्ति प्रभाव जो कि जन्म पूर्व निदान प्रक्रिया का प्रयोग किए जाने के कारण हो सकते हैं कि सूचना गर्भधारण महिला जिस पर प्रक्रिया प्रयोग की जाती है को दी जानी चाहिए और समझा दी जानी चाहिए।
इस प्रक्रिया से गुजरने की उसकी लिखित सहमति जो कि उसके द्वारा समझी जाने वाली भाषा में समझाने के बाद प्राप्त की गई है आवश्यक है।
उसके द्वारा प्रदत्त लिखित सहमति की एक प्रति का उस गर्भधारक महिला को प्रदान किया जाना।
वह व्यक्ति जो अल्ट्रासोनोग्राफी प्रक्रिया का प्रयोग गर्भधारक महिला पर करेगा उसे चिकित्सालय से ऐसे प्रक्रिया का पूरा विवरण उस रीति में रखना होगा जैसा कि विहित किया जाए। इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि धारा 5 के प्रावधानों के उल्लंघन के तुल्य होगी।
इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत भ्रूण लिंग के बारे में सूचना देना निषिद्ध है। इसी प्रकार भ्रूण के लिंग का चयन भी निषिद्ध है। भ्रूण के लिंग के बारे में शब्दों इशारों या किसी भी अन्य प्रकार से गर्भधारक महिलाएं या उसके रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों को सूचना देना निषिद्ध है।
धारा 6 किसी भी अनुवांशिक परामर्श केंद्र अनुवांशिक प्रयोगशाला अनुवांशिक चिकित्सालय यह किसी व्यक्ति द्वारा जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक जिसमें अल्ट्रासोनोग्राफी सम्मिलित है के प्रयोग द्वारा भ्रूण के लिंग की जानकारी देने पर रोक लगाती है। किसी भी व्यक्ति को अधिकार नहीं है कि वह भ्रूण से जन्म से पूर्व गर्भ के उपरांत लिंग का चयन करें। कोई भी व्यक्ति जिस में गर्भधारक महिला के रिश्तेदार तथा पति भी शामिल है जन्म पूर्व निदान कारक तकनीक के प्रयोग को विधि द्वारा अनुमन्य उद्देश्यों के अतिरिक्त अन्य उद्देश्य के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा।
गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण या लिंग चयन तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध।
इस अधिनियम की धारा 22 के द्वारा गर्भधारण से पूर्व तथा जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण या लिंग चयन तकनीक के उपयोग के प्रचार पर निषेध का प्रावधान है। उपरोक्त प्रावधान की अवहेलना 3 वर्ष तक के कारावास व अर्थदंड जिसकी सीमा ₹10,000/- तक की हो सकेगी के साथ या बिना भी हो सकता है दंडनीय है।
यदि अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया जाता है, प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध कारित होते समय कंपनी का भारसाधक हो यह कंपनी के व्यापार के प्रति उत्तरदाई हो तथा कंपनी के लाभ हानि का जिम्मेदार हो दोषी माना जाएगा तथा इस अपराध के लिए अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप दंडित किया जाएगा। परंतु ऐसा व्यक्ति दंड का पात्र नहीं होगा जिसने यह सिद्ध कर दिया हो कि अपराध उसके ज्ञान के बिना हुआ था या उसने सभी संभावित विधियों द्वारा उपरोक्त अपराध को घटित न होने देने का प्रयास किया।