संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 12 : संविदा का पालन कैसे किया जाता है? जानिए विशेष बातें (Performance of Contracts)
अब तक के आलेखों में हमने संविदा क्या होती है और संविदा का सृजन कैसे किया जाता है इसके संबंध में संपूर्ण जानकारियों को साझा किया है तथा समझाने का प्रयास किया है कि एक वैध संविदा का सृजन कैसे होता है। एक वैध संविदा जब अस्तित्व में आ जाती है तब इस संविदा के लिए सबसे सर्वोत्तम तो होगा की संविदा का पालन किया जाए इसलिए संविदा अधिनियम की धारा 37 अध्याय 4 के अंतर्गत यह स्पष्ट संविदा के पक्षकारों को कहा गया है कि वह अपने वचनों का पालन करें। धारा 37 के अंतर्गत एक प्रकार से नैतिक रूप से भी यह इशारा किया गया है कि संविदा के पक्षकारों को संविदा का पालन करना चाहिए। धारा 37 संविदा के पालन के विषय अध्याय 4 की प्रथम धारा है। इस धारा के अनुसार किसी संविदा के पक्षकारों को अपनी क्रमागत प्रतिज्ञाओं का पालन जब तक कि ऐसा पालन इस अधिनियम के या किसी अन्य विधि के अधीन माफी योग्य नहीं है या तो करना चाहिए या करने की पेशकश करनी चाहिए।
इस अधिनियम की धारा 37 में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि पालन की पेशकश को पालन के समतुल्य रखा गया है। इस नियम का कारण क्या है कि यदि कोई पक्षकार पालन की पेशकश करता है परंतु दूसरा पक्षकार उसे स्वीकार नहीं करता है या उसे पालन नहीं करने देता है तो पालन की पेशकश करने वाला पक्षकार संविदा के अधीन अपने उत्तरदायित्व से उन्मुक्त हो जाएगा परंतु इसके लिए धारा 38 में वर्णित शर्तों का पूरा करना आवश्यक होता है। धारा 38 के अनुसार जबकि किसी प्रतिज्ञाकर्ता ने किसी प्रतिज्ञाग्रहिता से पालन की पेशकश की है और वह पेशकश प्रतिग्रहीत नहीं की गई है तो प्रतिज्ञाकर्ता पालन न करने के लिए उत्तरदायी नहीं है और न ही वह संविदा के अधीन अपने अधिकारों को एतद् द्वारा खो देता है।
धारा 38 के अंतर्गत संविदाओं के पालन के लिए पालन के पेशकश के लिए जो शर्त बतलायी गई है उनके अधीन ऐसी पेशकश बगैर किसी शर्त के होना चाहिए और वह उचित समय और स्थान पर तथा ऐसी परिस्थितियों के अधीन की जानी चाहिए कि उस व्यक्ति को जिस से वह की गई है यह निश्चित करने का युक्तियुक्त अवसर हो कि वह व्यक्ति जिसके द्वारा वह की गई है वहीं और उसी समय पर उस बात को जिसे कि वह अपनी प्रतिज्ञा करने को बाध्य है पूर्णता करने को समर्थ रजामंद है।
संविदा अधिनियम की धारा 38 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है-
ख को उसके भंडारगार में एक विशिष्ट क्वालिटी की रूई की सौ गांठें 1873 की मार्च की 1 तारीख को परिदान करने की संविदा क करता है।
इस उद्देश्य से की पालन की ऐसी प्रस्थापना की जाए जिसका प्रभाव वह हो जो इस धारा में कथित है। क को वह रूई नियत दिन को ख के भंडारगर में ऐसी परिस्थितियों के अधीन लानी होगी की ख को अपना यह समाधान कर लेने का युक्तियुक्त अवसर मिल जाए कि परिदत चीज उच्च क्वालिटी की रुई है जिसकी संविदा की गई थी और यह वह सौ गाँठे ही है।
धारा 38 के अर्थ को यदि सामान्य रूप से समझा जाए तो जब संविदा का एक पक्षकार संविदा का पालन नहीं करता है जबकि ऐसा करने के लिए विधि द्वारा बाध्य है तो ऐसी स्थिति में दूसरा पक्षकार भी उस संविदा के पालन के दायित्व से मुक्त हो जाता है और वह उसे जो संविदा भंग के कारण हानि हुई है उनकी वसूली संविदा भंग करने वाले पक्षकार से कर सकता है अर्थात हानि होने वाले पक्षकार द्वारा संविदा भंग करने वाले पक्षकार से प्रतिकर वसूला जा सकता है। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 38 का विश्लेषण करने पर हम यह पाते हैं कि जब किसी वचनदाता ने वचनग्रहिता से किसी संविदा का पालन करने हेतु प्रस्थापना की है किंतु वह यह प्रस्थापना प्रतिग्रहीत न हुई हो तो वचनदाता का दायित्व पालन के संदर्भ में न होगा और न ही उसके द्वारा वह अपने अधिकारों को ही संविदा के अधीन खो देता है।
जब एक पक्षकार संविदा का पालन करने से इंकार कर दे (धारा- 39)
जब किसी संविदा का कोई एक पक्षकार अपने वचन का पूर्ण रुप से पालन करने से इंकार कर देता है या पालन करने से अपने आप को असमर्थ कर लेता है या पालन करने के अयोग्य बना लेता है तब वचनग्रहिता संविदा समाप्त करने का अधिकारी हो जाता है पर यदि वह शब्दों या आचरण से संविदा को जारी रखने की हामी देता है तो वह संविदा का अंत नहीं कर सकता है।
इस के संदर्भ में भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 39 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जिसको अनुसार-
एक गीतकार थिएटर के मैनेजर से 2 महीने की अवधि में सप्ताह में दो रातों को उसके थिएटर में गाने की संविदा करता है तथा उसे प्रति रात हेतु ₹100 देने का वचन दिया जाता है। छठी रात को गाने वाला जानबूझकर थिएटर में अनुपस्थित रहता है अब यहां पर गाने वाले से संविदा करने वाला थिएटर का मैनेजर संविदा को समाप्त कर सकता है पर यदि गाने वाला सातवी रात को आता है तो उसे गाना गाने दिया जाता है ऐसी परिस्थिति में संविदा समाप्त नहीं होती यदि संविदा को समाप्त करना है उस सातवीं रात को गाने वाले को गाने से रोकना होगा। छठी रात की क्षतिपूर्ति थिएटर का मैनेजर गाने वाले से प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
हरीहरा अय्यर बनाम मेश्यू जॉर्ज एआईआर 1965 केरल 187 के प्रकरण में कहा गया है कि वह पक्षकार जिसको संविदा के परिणामस्वरुप हानि होती है वह क्षतिपूर्ति पाने का हकदार होता है।
क्षतिग्रस्त पक्षकार को कोई सूचना देना अपेक्षित नहीं है क्योंकि पूर्व कालिक भंग की सूचना दी जाए वह संविदा को प्रवर्तन होने हेतु प्रतीक्षा करेगा भले ही उसका भंगीकरण होने के पश्चात उसको हानि क्यों न सहन करना पड़ी हो।
धारा के संबंध में रॉक वेल्ड इलेक्ट्रोड इंडिया लिमिटेड बनाम केसी बिजीगम 1979 एमएलजे (494) एक प्रकरण उल्लेखनीय है। इस प्रकरण में यह कहा गया था कि यदि कोई नियोजित व्यक्ति किसी कर्मचारी को निलंबित करता है फुल से ड्यूटी पर रिपोर्टिंग करने से रोकता है तो संविदा के किसी शर्त के अभाव में नियोजित कर्मचारी के विषय में यह माना जाएगा कि उक्त मामले में संविदा का भंग हुआ है जोकि नियोजक के पक्ष में है और नियोजित व्यक्ति क्षतिपूर्ति पाने के लिए अधिकृत होगा।
संविदा अधिनियम की धारा 39 का प्रयोग अचल संपत्ति के विक्रय में भी किया जाता है। इस धारा के अंतर्गत किया गया सिद्धांत अचल संपत्ति के विभिन्न मामलों में लागू किया गया है जहां विक्रय की किसी संविदा में एक प्लाट विक्रेता द्वारा त्वरित रूप में कब्जे का परिदान किए जाने के संबंध में था किंतु ऐसा कब्जा दिलवाने में वह असमर्थ था तब खरीददार संविदा का विखंडन करने के लिए अधिकृत माना गया है।
संविदा का पालन कौन करेगा
संविदा का पालन कौन करेगा इसके संबंध में संविदा अधिनियम की धारा 40 उल्लेखनीय है। इस धारा के अनुसार यदि किसी संविदा की बाबत मामले की प्रकृति से ही यह बात स्पष्ट होती है कि किसी संविदा के पक्षकारों का यह आशय था कि उसमें निहित किसी वचन का पालन स्वयं वचनदाता द्वारा किया जाना चाहिए तो ऐसी स्थिति में धारा 40 यह कहती है कि उक्त वचन का पालन वचनदाता को ही करना चाहिए जबकि अन्य स्थिति में वचनदाता के प्रतिनिधि भी उसका पालन कर सकेंगे।
संविदा का स्वयं वचनदाता द्वारा पालन किया जा सकता है या उसके अभिकर्ता द्वारा यह व्यक्ति जो किसी दूसरे के माध्यम से कोई कृति संपादित करता है तो यह उसके द्वारा किया हुआ माना जाएगा।
40 के अंतर्गत कुछ विशेष परिस्थितियों के सिवाय कोई व्यक्ति कोई संपदा खरीदने का करार करता है वहां वह स्वयं उसे खरीदने के लिए बाध्य नहीं है वह इसे अन्य व्यक्ति द्वारा खरीद सकता है।
इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कि जैसे किसी व्यक्ति ने कोई निर्णय लिया है तथा व्यक्ति मर गया तो अब उसकी संतानों से इस ऋण को वसूला जा सकता है। उसकी संतान उस ऋण को देने के लिए उत्तरदायी है क्योंकि उसकी संतान उसकी उत्तराधिकारी होती है। अंत कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें संविदा का पालन उसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा वचन दिया गया था।
जैसे कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई चित्र बनाने की संविदा करता है और इसके लिए वचन देता है और वो व्यक्ति मर जाता है तो अब ऐसी स्थिति में उसकी संतान को चित्र बनाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता कि इसकी क्षतिपूर्ति उसकी संतान से प्राप्त नहीं की जा सकती क्योंकि चित्र बनाना एक नैसर्गिक गुण हैं तथा उसके उत्तराधिकारियों में भी यह कला होगी इसकी कोई गारंटी नहीं है।
संयुक्त रूप से वचन देने वाले वचनदाताओं के वचन का पालन
जब कभी किसी संविदा में एक से अधिक प्रतिज्ञाकर्ता रहते हैं तो ऐसी परिस्थिति में संविदा का पालन भी एक से अधिक लोग करने के लिए बाध्य होते हैं। वह सभी व्यक्ति संयुक्त रूप से उस वचन को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होंगे और यदि उन वचनदाताओं में से किसी की मृत्यु हो जाती है ऐसी स्थिति में प्रथम वचनदाता का प्रतिनिधि उत्तरजीवी वचनदाता का वचनदाताओं के साथ संयुक्त रूप से अंतिम उत्तरजीवी वचन दाता की मृत्यु के बाद सभी वचनदाताओ के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से वचन को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होंगे। प्रतिनिधियों का दायित्व वहीं तक सीमित नहीं होता है जहां तक व मृतक पक्षकार की संपत्ति प्राप्त करते हैं।
संविदा अधिनियम की धारा 43 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है इस धारा कुछ इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि यदि कोई वचन 3 लोग मिल कर देते हैं तो ऐसी परिस्थिति में इस संविदा का वचनग्रहिता इन तीनों में से किसी से भी वचन का पालन करवा सकता है।
जैसे किन तीन लोगों ने कोई ऋण उधार लिया है तो दो लोग दिवालिया हो जाने के कारण किसी एक से भी उस ऋण की वसूली की जा सकती है यह आवश्यक नहीं है कि सभी को समान रूप से समान अनुपात में कर्ज़ चुकाना होगा।