भारतीय दंड संहिता में अमानत में खयानत करने के अपराध को विशेष स्थान दिया गया था और इस अपराध में अजीवन कारावास तक की सज़ा दिए जाने के प्रावधान किए गए थे। इस ही तरह भारतीय न्याय संहिता में भी अमानत में खयानत को धारा 316 में क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के लिए जगह रखी गयी है।
आपराधिक न्यास भंग-
इसे अंग्रेजी भाषा में 'क्रिमिनल ब्रीच आफ ट्रस्ट' कहते है। न्यास सार्वजनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है, अपने दैनिक जीवन में भिन्नतापूर्ण व्यवहार अथवा विश्वास के संबंधों के नाते में एक दूसरे की देखभाल अथवा व्यवस्था करने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है आज भी या एक सामान्य बात है।
जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को जिसमें कि वह विश्वास करता है अपनी संपत्ति की देखरेख अथवा प्रबंध के लिए सौंपता है तो दूसरा व्यक्ति पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से अपने कर्तव्य और दायित्व का निर्वाह करता है। उसे करना भी चाहिए लेकिन कभी-कभी इसके ऊपर बात भी हो सकती है और होती आयी है। जब ऐसा व्यक्ति कर्तव्य निष्ठा ईमानदारी से परे होकर विश्वास भंग करता है अर्थात उस न्यास संपत्ति का दुर्विनियोग करता है तो यह अपराध करता है।
ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति को अवश्य दंडित किया जाना चाहिए। इस दंड के संबंध में ही भारतीय न्याय संहिता में अपराधिक न्यास भंग को अपराध के रूप में पेश करके रखा गया है।
भारतीय न्याय संहिता में आपराधिक न्यास भंग की परिभाषा धारा 316 में दी गई है जिसके अनुसार-
कोई व्यक्ति जिसे कोई संपत्ति का स्वामित्व किसी भी प्रकार सौंपा गया हो यदि बेईमानी से उस न्यास के निर्वहन के लिए विधि के विरुद्ध या उस न्यास से संबंधित अभिव्यक्ति या उपलक्षित करार के विरुद्ध संपत्ति का दुर्विनियोग करता है या अपने स्वयं के उपयोग के लिए उसका संपरिवर्तन करता है या उपयोग करता है या परिवर्तन करता है अथवा स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा करने देता है तो अपराधिक न्याय भंग करता है।
सामान्य शब्दों में आपराधिक न्यास भंग को अमानत में खयानत भी कहा जाता है अर्थात विश्वास में रहकर किसी व्यक्ति ने यदि किसी अन्य के पास कोई अमानत रखी है और अगर वह अधिपत्य रखने वाला व्यक्ति अमानत में खयानत करता है तो वह आपराधिक न्याय भंग का दोषी होगा।
समय-समय पर कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के आधार पर और भारतीय न्याय संहिता की धारा 316 के अंतर्गत दी गई आपराधिक न्यास भंग की परिभाषा के अधीन इसके तत्व निकल कर आते है जो कि निम्न है-
अभियुक्त में संपत्ति का न्यस्त किया जाना आवश्यक है-
सी ए नारायण बनाम स्टेट एआईआर 1953 एससी 478 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि किसी भी आपराधिक न्याय भंग के मुकदमे में जो व्यक्ति अभियुक्त है उसे संपत्ति का परिदान किया जाना आवश्यक है अर्थात अभियुक्त के पास वह संपत्ति होना चाहिए जिस संपत्ति का दुर्विनियोग करके आपराधिक न्यास भंग का अपराध कार्य किया गया है।
जसवंत लाल एआईआर 1968 एसी 700 के मामले में यह कहा गया है कि संपत्ति का न्यस्त होना तब कहा जाता है जबकि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी संपत्ति का परिदान इसलिए करता है कि वह उसे अपनी अभिरक्षा में रखें तथा उसका प्रबंध करें और ऐसा विश्वास का संबंध हो जिसके अंतर्गत यह किया गया है।
विनोद कुमार सेठी बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एआईआर 1982 पंजाब हाईकोर्ट 372 के मामले में यह भी निर्धारित हुआ है कि विवाह के प्रतिफल स्वरूप दी गई संपत्ति इस धारा के अधीन न्यस्त शब्द की परिभाषा में नहीं आती है।
अभियुक्त द्वारा संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग किया जाना अथवा संपत्ति को अपने उपयोग में लाना-
आपराधिक न्यास भंग के मुकदमे के लिए यह आवश्यक होता है कि जो अभियुक्त है उसने संपत्ति का बेमानी से दुर्विनियोग किया हो या फिर वाह कपट या बेईमानी से उस न्यस्त की गई संपत्ति को उपयोग में ला रहा है,यह आपराधिक न्यास भंग का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है।
सीए नारायण बनाम स्टेट ए आई आर 1958 एस सी 478 के मामले में कहा गया है कि यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि संपत्ति का बेमानीपूर्वक दुर्विनियोग अथवा बेमानीपूर्ण आशय इस अपराध का सार है।
किसी व्यक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रति वारित करना मात्र या अपराध घटित नहीं कर देता जब तक कि उसका आशय दुर्विनियोग करने का नहीं रहा हो।
फिर न्यस्त संपत्ति को अपने स्वयं के लिए उपयोग करना भी आपराधिक न्यास भंग है।
स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति को संपत्ति का उपयोग करने दिया जाना-
यदि अभियुक्त व्यक्ति किसी न्यस्त संपत्ति को अपनी जानकारी में होते हुए किसी अन्य व्यक्ति को उस संपत्ति का उपयोग करने दे रहा है तथा ऐसा उपयोग करने का अधिकार अभियुक्त व्यक्ति ने यदि अपनी स्वेच्छा से दिया है तो यह आपराधिक न्यास भंग का अपराध बनता है। यह आपराधिक न्यास भंग के अपराध का तीसरा प्रमुख तत्व है।
स्त्री धन के संबंध में भी आपराधिक न्यास भंग का मामला सिद्ध करने का अधिकार दिया जा सकता है।
संपत्ति-
अपराधिक न्यास भंग की परिभाषा में संपत्ति शब्द का प्रयोग किया गया है। इस संपत्ति से अभिप्राय सभी प्रकार की चल व अचल संपत्तियों से है। संपत्ति में ऐसी कोई संपत्ति सम्मिलित है जो इस धारा के अंतर्गत अपराध गठित करने के लिए योग्य हो।
संपत्ति की योग्यता का अर्थ है संपत्ति की कोई कीमत होनी चाहिए उसका कोई मूल्य होना चाहिए कोई ऐसा सारवान मूल्य होना चाहिए जो संपत्ति के महत्व को बढ़ाता है।
आपराधिक न्यास भंग के लिए दंड-
धारा 316-यह धारा साधारण रूप से साधरण लोगो द्वारा आपराधिक न्यास भंग का अपराध कारित करने वालो के संदर्भ में है। इस धारा के अंतर्गत आपराधिक न्यास भंग के लिए तीन वर्ष का कारावास रखा गया है।
भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आपराधिक न्यास भंग के लिए धारा 407 408 409 में विशेष लोगो के लिए दंड रखा गया था।
धारा 407-
इस धारा के अंदर वाहक, घटवाल द्वारा आपराधिक न्यास भंग किए जाने पर दंड का प्रावधान रखा गया है। वाहक उसे कहा जाता है जो किसी एक संपत्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाता है,ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करने वाले इस धारा की जद में आते है। इस धारा के अंतर्गत स्टॉकिस्ट भी आते हैं जो किसी संपत्ति को कुछ नियत की गई अवधि के लिए अपने पास न्यस्त रखते है।
यदि इन लोगों द्वारा इस प्रकार का अपराध किया जाता है तो इस धारा के अंतर्गत 7 वर्ष की अवधि का कारावास एवं जुर्माने दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 408-
भारतीय दंड संहिता की धारा 408 लिपिक एवं सेवक द्वारा आपराधिक न्यास भंग का अपराध कारित किए जाने पर दंड का उल्लेख करती है तथा यह धारा बताती है कि लिपिक और सेवक द्वारा आपराधिक न्याय भंग का अपराध कारित किया जाता है तो 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना,दोनों में से किसी भी भांति के कारावास से दंडित किया जा सकेगा।
धारा 409-
या धारा अपराधिक न्यास भंग के अपराध में अत्यंत भारी धारा है तथा इस धारा के अंतर्गत आजीवन कारावास तक का दंड रखा गया है।
इस धारा के अंतर्गत लोक सेवक,बैंकर व्यापारी या अभिकर्ता द्वारा आपराधिक न्यास भंग किए जाने पर दंड का प्रावधान रखा गया है। धारा के अंतर्गत आजीवन कारावास और जुर्माना दोनों प्रकार का दंड रखा गया है। लोक सेवक, बैंकर या व्यापारी या एजेंट है तो ऐसा अपराध चिन्हित अपराध की श्रेणी में रखा गया।
स्टेट आफ उड़ीसा बनाम नकुल साहू के मामले में अभियुक्त ने सप्लायर से घटिया दर्जे के वास बेसिंग स्वीकार कर प्रथम दर्जे के माल के भुगतान का आदेश पारित कर दिया तथा उनके भौतिक सत्यापन का झूठा प्रमाण पत्र दे दिया। यह धारण किया गया है कि अभियुक्त इस धारा के अंतर्गत दोषी था क्योंकि वे लोक सेवक था।
जनेश्वर दास अग्रवाल बनाम स्टेट ऑफ यूपी एआईआर 1981 एस सी 1946 इस मामले में सुप्रीम द्वारा यह भी अभिनिर्धारित किया गया है की धारा 409 के अंतर्गत दोषसिद्धि के लिए अभियोजन पक्ष को दो बातें साबित करना चाहिए।
1 किसी संपत्ति का न्यस्त किया जाना।
2 ऐसी न्यस्त की गई संपत्ति का आपराधिक दुर्विनियोग किया जाना।
शिव नारायण लक्ष्मी नारायण जोशी बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र एआईआर 1980 एससी 439 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि धारा 409 के अंतर्गत कारित अपराध के लिए अभियोजन चलाने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के अंतर्गत पूर्व स्वीकृति लिया जाना आवश्यक नहीं है।
चोरी और आपराधिक न्याय विभाग में अंतर-
चोरी और आपराधिक न्यास भंग में अंतर होता है परंतु अनेक बार अंतर समझना थोड़ा मुश्किल होता है।
चोरी के अपराध में अपराध कारित किए जाने के समय संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति के अधिपत्य से प्राप्त किया जाता है जबकि आपराधिक न्यास भंग में संपत्ति अभियुक्त के अधिपत्य में ही रहती है।
चोरी में संपत्ति का हस्तांतरण स्वामी की सम्मति के बिना होता है परंतु आपराधिक न्यास भंग में संपत्ति का हस्तांतरण अभियुक्त एवं स्वामी की सम्मति से होता है।
चोरी केवल चल संपत्ति की जा सकती है पर आपराधिक न्यास भंग का अपराध चल व अचल दोनों संपत्ति के लिए हो सकता है।