भारतीय संसद ने भी समय-समय पर दहेज विरोधी कानून बनाती रही है तथा समाज में दहेज समर्थक विचारों का अंत करने का प्रयास किया जाता रहा है। घरेलू हिंसा अधिनियम,दहेज प्रतिषेध अधिनियम इत्यादि अधिनियम को बनाकर भारत की संसद में दहेज जैसे अभिशाप से महिलाओं के संरक्षण के संपूर्ण प्रयास किए है। इस ही प्रकार भारतीय न्याय संहिता की धारा 80 के अंतर्गत दहेज़ मृत्यु से संबंधित भी कड़े कानून बनाये गए हैं।
दहेज संबंधी अपराधों में दहेज मृत्यु सबसे जघन्य अपराध है। दहेज मृत्यु दहेज की मांग के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती है। भारतीय समाज के लिए यह एक विकराल समस्या है इस विकराल समस्या से निपटने हेतु भारतीय न्याय संहिता के अधीन संपूर्ण प्रावधान किए गए है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 80 दहेज मृत्यु से संबंधित है।
भारतीय न्याय संहिता की धारा 80 के अनुसार दहेज मृत्यु की परिभाषा-
'जहां किसी स्त्री की मृत्यु किस दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के 7 वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा हो जाती है और यह दर्शित किया जाता है कि उसकी मृत्यु के ठीक पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने दहेज की किसी मांग के लिए उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता की थी या उसे तंग किया था वहां ऐसी मृत्यु को दहेज मृत्यु कहा जाएगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जाएगा'
इस धारा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह धारा हत्या नहीं अपितु मृत्यु के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा किसी ऐसी स्त्री को संरक्षण प्रदान कर रही है जिसकी मृत्यु विवाह की दिनांक से 7 वर्ष की अवधि के भीतर किसी शारीरिक दाह या क्षति के माध्यम से हो जाती है।
दहेज मृत्यु के लिए आवश्यक बातें-
धारा 80 के अंतर्गत दहेज मृत्यु के अपराध के गठन के लिए मुख्य रूप से दो बातें आवश्यक होती हैं।
दहेज की मांग का किया जाना
ऐसी मांग को लेकर स्त्री की मृत्यु से ठीक पूर्व उसे यातना दिया जाना
किसी भी अभियुक्त के संदर्भ में जब यह दोनों बातें साबित हो जाती है तो दहेज मृत्यु के अपराध के लिए दोष सिद्ध मान लिया जाता है। इन दोनों बातों के साबित होने के आधार पर ही दहेज मृत्यु जैसे जघन्य अपराध के अंतर्गत अभियुक्त को दंडित किया जाता है।
यदि किसी मामले में दहेज की मांग के बारे में कोई साक्ष्य नहीं है तो भी उसको धारा 80 के अंतर्गत घोषित नहीं किया जा सकता। यह बात स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश बनाम महेश चंद्र पांडे के मामले में कही गयी है।
बकसीसराम बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एआईआर 2013 एस सी 1484 के मामले में दहेज मृत्यु के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निम्न तथ्य आवश्यक माने है-
अप्राकृतिक मृत्यु की साक्ष्य।
मृत्यु से ठीक पूर्व दहेज की मांग को लेकर परेशान किए जाने की साक्ष्य।
कश्मीर कौर बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दहेज मृत्यु के निर्माण की आवश्यक बातें बताई गई।
दहेज की मांग को लेकर मृत्यु से ठीक पूर्व मृतका को परेशान किया जाना।
मृतका की मृत्यु जलने से या किसी शारीरिक क्षति से अप्राकृतिक परिस्थितियों में होना।
ऐसी मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर होना।
मृतका को कष्ट उसके साथ क्रूरता का व्यवहार अथवा परेशान स्वयं उसके पति या पत्नी के नातेदार और द्वारा किया जाना।
यह सब कुछ दहेज की मांग को लेकर किया जाना।
मृत्यु से ठीक पूर्व यातना दिया जाना अथवा परेशान किया जाना।
एक बार फिर याद दिलाया जा रहा है,हत्या के विषय में चर्चा नहीं हो रही है अपितु यहां पर दहेज मृत्यु के विषय में चर्चा हो रही है।ऐसी मृत्यु जो ऊपर वर्णित निम्न परिस्थितियों में होती है तो ही 80 का अपराध घटित होगा।
जहां तक मृत्यु से ठीक पूर्व का प्रश्न है, क्रूरता का आचरण मृत्यु के बीच सीधा संबंध होना तथा दोनों के बीच में अधिक अंतराल नहीं होना है। क्रूरता और मृत्यु के बीच में इतना युक्तियुक्त अंतराल होना चाहिए कि यह माना जा सके की मृत्यु क्रूरता के परिणाम स्वरूप ही हुई है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा यही मत मुस्तफा शहादल शेख़ बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में दिया गया है।
दहेज का मतलब
भारतीय दंड संहिता की धारा 80 के अंतर्गत दहेज की परिभाषा नहीं दी गई है परंतु भारतीय दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 में जो दहेज की परिभाषा दी गई है वही दहेज इस धारा के अंतर्गत माना जाएगा। यह बात स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश बनाम राजगोपाल आसावा के मामले में कही गई है।
मृत्यु से पूर्व
दहेज मृत्यु से पूर्व घटने वाली घटनाओं पर चिंतन के बाद ही इस तरह के अपराध पर चिंतन किया जा सकता है। एम श्रीनिवासुलू बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि किसी मामले को धारा 80 की परिधि में मानने के लिए दहेज की मांग मृत्यु के बीच संबंध होना आवश्यक था।वमृत्यु दहेज़ की मांग के परिणामस्वरूप होना अपेक्षित है।
घटना के कुछ दिनों पूर्व पत्नी को यातना देना भी धारा 80 की परिधि में आता है।
श्रीमती शांति और अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में यह अभिनिर्धारित हुआ है कि अभियुक्तगण का मृतक के पिता तथा भाई से दहेज की मांग करना तथा पत्नी के साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करना,मृतक का विवाह के 7 साल के भीतर मर जाना, मृतक के माता-पिता को सूचना दिए बिना जल्दी बाजी में मृतक का दाह संस्कार कर देना,यह सब अप्राकृतिक मृत्यु के संकेत है। धारा 80 के अंतर्गत अपराध का गठन करते है।
रामबदन शर्मा बनाम बिहार राज्य इस विषय पर एक अच्छा उदाहरण है। मामला यह है कि अभियुक्त द्वारा मृतका से निरंतर दहेज की मांग की जाती रही। दहेज को लेकर मृतक को परेशान किया जाता रहा। उसके साथ आमानवीय व्यवहार भी किया जाता रहा। समय-समय पर उसे पीटा जाता रहा। अंत में उसे विश दिया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा का मामला। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि दहेज मृत्यु के मामले में दहेज के लिए करार का होना आवश्यक नहीं है।मृतक और उसके पिता से निरंतर टीवी और स्कूटर की मांग करते रहना दहेज़ की परिधि में आता है।
दहेज की मांग के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। ऐसी परिस्थिति में मामला खारिज भी किया जा सकता है। धीरज कुमारी बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में धारा 80 के अंतर्गत की गई दोष सिद्धि को इसलिए अपास्त किया गया क्योंकि मृत्यु से ठीक पूर्व दहेज की मांग को लेकर मृतका को यातना देने अथवा परेशान करने वाले साक्ष्य का अभाव था।
ध्यान देने योग्य है की दहेज की मांग का साक्ष्य इस मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम निक्कूराम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 80 बी के आवश्यक तत्व पर प्रकाश डाला है। उसमें एक मृतक रोशनी के पति राम उसकी माता तथा बहन कमला देवी पर रोशनी की मृत्यु दहेज मृत्यु का आरोप था।
यह कहा गया कि दहेज की मांग को लेकर रोशनी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था।उसे दरांती से चोट पहुंचाई गई। अनंत रोशनी ने विषपान कर मृत्यु कारित कर ली।
सुप्रीम कोर्ट ने धारा 80 की परिधि में आने वाला अपराध नहीं माना क्योंकि ना तो रोशनी के शरीर पर से चोट पाई गई जो मृत्यु पारित करने वाली हो और ना ही दहेज के कारण निर्दयता पूर्वक व्यवहार करने की कोई साक्ष्य थी।
सरोजिनी बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश एक महत्वपूर्ण मामला है। उसमें मृतक का शव उसके सुसराल के मकान के स्टोर रूम में पूर्ण रूप से जली हुई अवस्था में पाया गया। उसकी जीभ और आंखें बाहर निकल आयी थी और मुंह से खून रिस रहा था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मेडिकल रिपोर्ट तथा अन्य प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हत्या का मामला माना कि आत्महत्या का।
इसी प्रकार हरबंस लाल बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में पति और सास ने बहू को एक 9 माह के शिशु के साथ इसलिए जलाकर मार डाला के दहेज में पर्याप्त संपत्ति ना मिलने से व्यथित थे। सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी हत्या का मामला माना।
के प्रेमा एस राव बनाम माई श्रीनिवास राव के मामले में यह कहा गया कि जहां पिता द्वारा अपनी पुत्री को विवाह के समय कुछ भूमि दी गई हो वहां अभियुक्त द्वारा पत्नी से भूमि को अपने नाम अंतरित कराने के लिए कहा जाना दहेज की मांग नहीं है। ऐसे मामलों में भी धारा 80 के अंतर्गत नहीं किया जा सकता।
धारा 80 के अंतर्गत सज़ा
धारा 80 के अंतर्गत न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास और आजीवन कारावास तक का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ जुर्माने की व्यवस्था रखी गई है। यह संज्ञेय अपराध है और गैर जमानती अपराध है जिसे सत्र न्यायालय द्वारा विचारण किया जाता है।