क्या राज्यपाल दया याचिका पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है या उन्हें राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी?

सुप्रीम कोर्ट ने ए.जी. पेरारिवालन बनाम तमिलनाडु राज्य (2022) केस में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक (Constitutional) मुद्दे पर फैसला सुनाया। यह मामला इस सवाल पर केंद्रित था कि क्या राज्यपाल (Governor) को राज्य मंत्रिमंडल (State Cabinet) की सलाह माननी होती है या वे राष्ट्रपति (President) को अंतिम निर्णय के लिए मामला भेज सकते हैं।
इस फैसले ने दया याचिका (Remission) देने की प्रक्रिया को स्पष्ट किया और यह सुनिश्चित किया कि कोई भी संवैधानिक (Constitutional) पदाधिकारी अपनी शक्तियों का अनुचित उपयोग न करे।
संविधान में दया याचिका की शक्ति (Constitutional Provisions Governing Remission)
भारतीय संविधान में दो महत्वपूर्ण अनुच्छेद (Articles) इस शक्ति को परिभाषित करते हैं:
1. अनुच्छेद 72 (Article 72): यह राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वे किसी ऐसे व्यक्ति को दया दे सकते हैं, जिसे संसद (Parliament) द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत सजा मिली हो या जो केंद्र सरकार (Central Government) के कार्यक्षेत्र में आता हो।
2. अनुच्छेद 161 (Article 161): यह राज्यपाल को यह शक्ति देता है कि वे किसी ऐसे व्यक्ति की सजा माफ कर सकते हैं, जिसे राज्य सरकार (State Government) के कार्यक्षेत्र में आने वाले अपराधों के लिए दंडित किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि जब तमिलनाडु राज्य सरकार ने पेरारिवालन की रिहाई (Release) की सिफारिश की थी, तब क्या राज्यपाल को इस पर निर्णय लेना चाहिए था या वे इसे राष्ट्रपति को भेज सकते थे।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कार्यकारी शक्ति की व्याख्या (Supreme Court's Interpretation of Executive Power)
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि राज्यपाल के पास स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
उन्हें राज्य मंत्रिमंडल की सलाह को मानना ही होगा। इस फैसले ने पहले के कई महत्वपूर्ण मामलों की पुष्टि की:
1. राज्यपाल की भूमिका (Governor's Role in a Parliamentary System): शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य (1974) और मारू राम बनाम भारत संघ (1981) मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि भारत में संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) लागू है, जिसमें राज्यपाल सिर्फ एक औपचारिक प्रमुख (Formal Head) होते हैं और वास्तविक कार्यकारी शक्ति (Real Executive Power) मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) के पास होती है।
2. राज्यपाल केवल राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं (Governor as a Representative of the State Government): राय साहिब राम जवाईया कपूर बनाम पंजाब राज्य (1955) में कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की अनुमति नहीं है और वे राज्य सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।
3. राज्यपाल के विवेक की सीमाएँ (Limits of Governor's Discretion): नाबाम रेबिया बनाम अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष (2016) में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि जब तक संविधान में स्पष्ट रूप से किसी मामले में राज्यपाल को विशेष विवेकाधिकार (Discretionary Power) नहीं दिया गया है, तब तक उन्हें मंत्रिमंडल की सलाह पर ही कार्य करना होगा।
संघीय संरचना और राज्यपाल का निर्णय (Federal Structure and the Governor's Decision)
सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि चूंकि यह मामला पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से जुड़ा था, इसलिए यह राष्ट्रीय महत्व (National Importance) का विषय था और इसे केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाना चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम श्रीहरन (2016) का हवाला देते हुए कहा कि जिस सरकार के क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) में अपराध आता है, वही "उचित सरकार" (Appropriate Government) होती है और उसे ही दया याचिका पर निर्णय लेने का अधिकार होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सिफारिश को राष्ट्रपति को भेजने का कोई संवैधानिक (Constitutional) अधिकार नहीं था। ऐसा करना संघीय ढांचे (Federal Structure) के खिलाफ होगा।
दया शक्ति पर न्यायिक समीक्षा (Judicial Review of Clemency Powers)
हालांकि अनुच्छेद 72 और 161 के तहत दया शक्ति (Clemency Power) एक कार्यकारी (Executive) निर्णय है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा यह माना है कि यह शक्ति पूरी तरह से मनमानी (Arbitrary) नहीं हो सकती।
एपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (2006) में कोर्ट ने कहा था कि यदि दया याचिका पर निर्णय मनमाना, अवैध या अनुचित कारणों पर आधारित होगा, तो इसे चुनौती दी जा सकती है।
पेरारिवालन केस में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि राज्यपाल ने इस मुद्दे पर दो साल से अधिक समय तक कोई निर्णय नहीं लिया था, जो कि न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के तहत गलत माना गया। कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार (Article 142) का उपयोग कर पेरारिवालन की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
एम.पी. स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट केस से अंतर (Distinction from the M.P. Special Police Establishment Case)
सरकार ने यह दलील दी कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सिफारिश को खारिज करने का अधिकार था, जैसा कि एम.पी. स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2004) मामले में हुआ था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने दोनों मामलों में अंतर बताया।
एम.पी. केस में, राज्य मंत्रिमंडल ने लोकायुक्त (Lokayukta) की रिपोर्ट को नजरअंदाज किया था, जबकि पेरारिवालन मामले में राज्य सरकार ने संवैधानिक प्रक्रिया (Constitutional Process) का पालन किया था। इसलिए, यह तुलना गलत थी।
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप (Exercise of Supreme Court's Powers under Article 142)
इस फैसले में एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 (Article 142) का उपयोग किया, जो उसे पूर्ण न्याय (Complete Justice) करने की विशेष शक्ति देता है।
पेरारिवालन पहले ही 32 साल जेल में बिता चुका था, जिसमें से 16 साल मौत की सजा (Death Row) के तहत और 29 साल एकांत कारावास (Solitary Confinement) में रहा था।
कोर्ट ने पाया कि वह पढ़ाई कर चुका था, उसका आचरण अच्छा था, और वह गंभीर बीमारियों से पीड़ित था। इन परिस्थितियों में, कोर्ट ने राज्यपाल के पास मामला वापस भेजने के बजाय सीधे उसकी रिहाई का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल भारतीय संविधान में राज्यपाल की भूमिका को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि दया याचिकाओं (Remission Petitions) पर निर्णय लेते समय कोई अनुचित देरी न हो।
इस फैसले ने यह स्थापित किया कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिशों (Cabinet Recommendations) को नजरअंदाज नहीं कर सकते और न ही उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। इसने संघीय ढांचे (Federal Structure) की सुरक्षा की और संवैधानिक प्रक्रिया (Constitutional Process) के महत्व को दोहराया।
यह फैसला आने वाले वर्षों में उन मामलों में एक मिसाल (Precedent) बनेगा, जहां राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों की सीमा लांघने की कोशिश कर सकते हैं। इस फैसले ने यह भी दिखाया कि सुप्रीम कोर्ट न केवल विधि का शासन (Rule of Law) बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि व्यक्तिगत अधिकारों (Individual Rights) की भी रक्षा करता है।