क्या केवल गिरफ्तारी का कारण बताना पर्याप्त है या लिखित आधार देना ज़रूरी है?

Update: 2025-08-18 11:38 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने Prabir Purkayastha v. State (NCT of Delhi) (2024 INSC 414, दिनांक 15 मई 2024) में एक अहम फैसला दिया। यह निर्णय इस बात पर केंद्रित है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय लिखित रूप (Written Form) में उसके गिरफ्तारी के आधार (Grounds of Arrest) बताना ज़रूरी है। यह मामला Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) के तहत दर्ज हुआ था और इसमें संविधान (Constitution) के अनुच्छेद 20, 21 और 22 तथा Section 43B UAPA की व्याख्या की गई।

अदालत ने साफ कहा कि “Reason for Arrest” और “Grounds of Arrest” दो अलग बातें हैं। अगर गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में नहीं दिए जाते, तो गिरफ्तारी और उसके बाद की Remand (Police Custody Order) दोनों अमान्य हो जाते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

17 अगस्त 2023 को दिल्ली पुलिस ने FIR No. 224/2023 दर्ज की, जिसमें UAPA की धाराएँ (Sections 13, 16, 17, 18 और 22C) और IPC की धाराएँ (Sections 153A, 120B) लगाई गईं। FIR के आधार पर Prabir Purkayastha, जो PPK Newsclick Studio Pvt. Ltd. के Director थे, को 3 अक्टूबर 2023 को गिरफ्तार किया गया।

गिरफ्तारी मेमो (Arrest Memo) कंप्यूटर से तैयार हुआ लेकिन उसमें “Grounds of Arrest” का कोई कॉलम ही नहीं था। 4 अक्टूबर 2023 को सुबह 6 बजे से पहले ही उन्हें Remand Judge के सामने पेश किया गया और सात दिन की पुलिस हिरासत दे दी गई।

दिल्ली हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी को वैध माना, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह प्रश्न उठाया कि क्या गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में न देना Article 22(1) Constitution और Section 43B UAPA का उल्लंघन है?

अपीलकर्ता की दलीलें (Arguments of the Appellant)

Senior Advocate कपिल सिब्बल ने दलील दी कि गिरफ्तारी पूरी तरह असंवैधानिक थी क्योंकि गिरफ्तारी के आधार न तो मौखिक रूप से ठीक से बताए गए और न ही लिखित रूप में दिए गए।

उन्होंने Pankaj Bansal v. Union of India (2023) का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि Section 19(1) PMLA और Section 43B(1) UAPA का भाषा (Wordings) एक जैसी है, और दोनों मामलों में Arrest Grounds लिखित रूप में देना ज़रूरी है।

सिब्बल ने कहा कि आरोपी को सुबह 6 बजे पेश करना और उसके वकील को सूचना न देना एक चालाकी (Clandestine Process) थी। Remand के समय जो “Remand Advocate” मौजूद था, उसे आरोपी ने अधिकृत (Authorize) ही नहीं किया था।

उन्होंने स्पष्ट किया कि Arrest Memo में सिर्फ “Reasons for Arrest” लिखे थे जैसे आगे अपराध रोकना, जांच पूरी करना, साक्ष्य सुरक्षित रखना, लेकिन “Grounds of Arrest” यानी विशेष तथ्यों (Specific Facts) का ज़िक्र नहीं था।

प्रतिवादी की दलीलें (Arguments of the Respondent)

सरकार की ओर से Additional Solicitor General (ASG) ने कहा कि Pankaj Bansal का निर्णय Prospective है, यानी आगे के मामलों पर लागू होगा। यह फैसला 3 अक्टूबर 2023 को सुनाया गया था लेकिन वेबसाइट पर देर रात अपलोड हुआ। इसलिए 4 अक्टूबर 2023 की Remand पर इसका असर नहीं होना चाहिए।

ASG ने यह भी कहा कि Article 22(1) में यह साफ नहीं लिखा है कि Grounds of Arrest लिखित रूप में दिए जाएँ। मौखिक जानकारी भी पर्याप्त है।

इसके अलावा सरकार ने कहा कि वकील को बाद में WhatsApp पर सूचना भेज दी गई थी और आपत्ति (Objection) भी Remand Judge ने नोट की। चूंकि अब चार्जशीट दाखिल हो चुकी है, इसलिए शुरुआती त्रुटि (Irregularity) से कोई फर्क नहीं पड़ता।

प्रासंगिक प्रावधान (Relevant Provisions)

Section 43B(1) UAPA

अधिकारी जिसे किसी को गिरफ्तार करना है, उसे “as soon as may be” गिरफ्तार व्यक्ति को Grounds of Arrest बताने होंगे।

Section 19(1) PMLA

भाषा (Wordings) बिल्कुल एक जैसी है और Arrest Grounds बताना ज़रूरी है।

Section 43C UAPA

UAPA की गिरफ्तारी में Code of Criminal Procedure (CrPC) लागू होगा।

Article 22(1) Constitution

किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को उसके Arrest Grounds बताए जाएँगे और उसे अपनी पसंद का वकील (Legal Practitioner of His Choice) मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Judicial Reasoning)

अदालत ने कहा कि Section 19(1) PMLA और Section 43B(1) UAPA में कोई फर्क नहीं है। इसलिए Pankaj Bansal में दी गई व्याख्या यहाँ भी लागू होगी।

Grounds of Arrest मौखिक रूप से बताना पर्याप्त नहीं है। लिखित रूप (Written Form) में देना ज़रूरी है ताकि बाद में विवाद न हो और आरोपी शांतिपूर्ण तरीके से Bail या Remand पर आपत्ति दर्ज कर सके।

अदालत ने Preventive Detention (अनुच्छेद 22(5)) से जुड़े पुराने फैसले जैसे Harikisan v. State of Maharashtra (1962) और Lallubhai Jogibhai Patel (1981) का हवाला दिया। इनमें भी कहा गया था कि Grounds of Detention लिखित रूप और समझ में आने वाली भाषा में दिए जाएँ।

“Reasons for Arrest” और “Grounds of Arrest” में अंतर (Distinction between Reasons and Grounds of Arrest)

अदालत ने साफ किया कि Reasons for Arrest सामान्य कारण (General Reasons) होते हैं, जैसे – जांच पूरी करना, सबूत सुरक्षित रखना। यह किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी में लिखे जा सकते हैं।

लेकिन Grounds of Arrest व्यक्तिगत तथ्य (Personal Facts) होते हैं, जो बताते हैं कि क्यों इस विशेष व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार किया गया।

उदाहरण (Illustration):

अगर किसी व्यक्ति पर UAPA के तहत विदेशी एजेंट के साथ साज़िश का आरोप है, तो “Reason” होगा कि जांच पूरी करनी है। लेकिन “Ground” यह होगा कि आरोपी ने फलां तारीख को ईमेल भेजा जिसमें देश के खिलाफ साज़िश की बात थी। यही जानकारी आरोपी को उसके बचाव (Defence) के लिए ज़रूरी है।

इस मामले पर लागू करना (Application to the Present Case)

सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि 4 अक्टूबर की सुबह 6 बजे Arrest Grounds लिखित रूप में नहीं दिए गए। WhatsApp पर जो सूचना बाद में भेजी गई, वह Remand Order पास होने के बाद थी और बेकार थी।

Remand Order में कुछ लाइनें बाद में जोड़ी गई लग रही थीं क्योंकि उनकी लिखावट अलग थी और समय (6:00 a.m.) साफ दिखाता है कि आरोपी के वकील को सुने बिना ही आदेश पास हुआ।

परिणाम (Consequences of Violation)

अदालत ने कहा कि चार्जशीट दाखिल होने से पहले की असंवैधानिकता (Unconstitutionality) ठीक नहीं हो सकती। अगर Arrest और Remand ही अवैध (Invalid) हैं तो बाद की Custody भी वैध नहीं मानी जा सकती।

इसलिए गिरफ्तारी और Remand दोनों आदेश रद्द कर दिए गए और आरोपी को जमानत (Bail) पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।

अनुच्छेद 22 और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का महत्व (Importance of Article 22 and Personal Liberty)

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Life and Personal Liberty) सबसे पवित्र (Sacrosanct) अधिकार है। Arrest Grounds लिखित रूप में देना अनिवार्य है।

उदाहरण (Illustration):

मान लीजिए किसी व्यक्ति को आधी रात को उठा लिया जाए और उसे लिखित रूप में यह न बताया जाए कि क्यों गिरफ्तार किया गया है। वह न तो अपने परिवार को बता पाएगा, न वकील से सलाह ले पाएगा, न Bail की अर्जी लगा पाएगा। यही कारण है कि अदालत ने लिखित रूप पर ज़ोर दिया।

Prabir Purkayastha v. State (NCT of Delhi) का फैसला एक बार फिर इस बात की पुष्टि करता है कि Grounds of Arrest लिखित रूप में देना आरोपी का मौलिक और कानूनी अधिकार है। यह अधिकार केवल औपचारिकता नहीं बल्कि आरोपी को अपने बचाव का वास्तविक अवसर देता है।

UAPA जैसे कठोर कानूनों (Stringent Laws) में भी Rule of Law और Fundamental Rights को सर्वोपरि (Supreme) माना गया है। इस निर्णय ने साफ कर दिया कि लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बिना उचित प्रक्रिया (Due Process) के नहीं छीना जा सकता।

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