हालांकि किताबें तो सिर्फ किताबें होतीं हैं लेकिन कानून की किताबों के मामलों में थोड़ी डिफरेंट टर्मिनोलॉजी रहती है। आमतौर पर यह किताबे किसी अदालत, किसी लॉ कॉलेज लाइब्रेरी और वकीलों के दफ्तरों में नज़र आती हैं। इन किताबों में अनेक तरह की किताबें होती हैं जैसे लॉ जर्नल्स, ऑल इंडिया रेकॉर्ड, कमेंट्री, बेयरेक्ट इत्यादि।
बेयर एक्ट
बेयर एक्ट उस किताब को कहा जाता है जिसमे केवल संसद द्वारा बनाया गया अधिनियम होता है। कानून मुख्य रूप से संसद और राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाया जाता है। किसी भी कानून को मुख्य रूप से अधिनियम से बनाया जाता है। अधिनियम ही कानून होता है। संसद के दोनों सदनों से पास होकर आने वाले बिल को जब राष्ट्रपति की अनुमति मिल जाती है तब वह अधिनियम बन जाता है। जैसे इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872, कंज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 1986, भारतीय न्याय संहिता, 2023, एडवोकेट एक्ट, 1961 इत्यादि।
अधिनियम को आवश्यकता के अनुरूप भिन्न भिन्न धाराओं में बांटा जाता है। एक अधिनियम में अनेक धाराएं होती है। केवल धाराएं ही नहीं अपितु इसमे अन्य सामग्री भी होती है। जैसे उपधारा, खंड, और अनुसूची।
इस ही तरह अधिनियम को अलग अलग अध्याय में बांट दिया जाता है जिससे उसे पढ़ने में सहायता रहे और किसी भी तरह का भ्रम पैदा नहीं हो। यही अधिनियम सारे कानून का स्त्रोत होता है। देश और राज्य का सभी कानून इन अधिनियमों में से ही निकल कर आता है। अधिनियम को अंग्रेजी में एक्ट कहा जाता है।
जब संसद अपना अधिनियम अधिनियमित कर देती है तब अलग अलग पब्लिकेशन हाउस ऐसे अधिनियम की एक किताब प्रकाशित कर देते है। इस किताब को बेयर एक्ट कहा जाता है। ऐसे बेयर एक्ट में केवल संसद द्वारा दिए गए शब्द होते है और उसके अलावा कुछ नहीं होता है। जैसा अधिनियम संसद द्वारा बनाया जाता है बिल्कुल वैसा ही बेयर एक्ट में प्रस्तुत कर दिया जाता है। ऐसे बेयर एक्ट पढ़ना काफी मुश्किल भी होते है, विशेषकर नए लॉ स्टूडेंट्स ऐसे बेयर एक्ट मुश्किल से पढ़ पाते हैं क्योंकि संसद के पेश किए शब्द अत्यंत विस्तृत अर्थ वाले होते हैं और उनका गहरा अर्थ होता है। ऐसा कहा जाता है कि संसद अपने शब्दों को व्यर्थ नहीं करती है। एक ही शब्द में काफी बड़ी बात कह दी जाती है।
टेक्स्ट बुक
छात्रों के लिए बेयर एक्ट पढ़ना मुश्किल होता है। केवल छात्र ही नहीं बल्कि आम आदमी भी ऐसे बेयर एक्ट ठीक से पढ़ नहीं पाता है। इसलिए ऐसे बेयर एक्ट से एक टेक्स्ट बुक को बनाया जाता है। ऐसी टेक्स्ट बुक विधिशास्त्री अपने ज्ञान के आधार पर गढ़ते है। वह सारे अधिनियम का अध्ययन करते है। सभी धाराओं को पढ़ने के बाद उनका अर्थ प्रस्तुत करते है। साथ ही हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी इसमे कोट किये जाते हैं।
ऐसी टेक्स्ट बुक आसान शब्दों में लिखी जाती है जिससे पढ़ने वाले को सहायता रहे। कम से कम शब्दों में धारा में कही गई बात को समझा दिया जाता है। हालांकि ऐसी किताब में बहुत अधिक न्याय निर्णय नहीं होते है लेकिन फिर भी जितने आवश्यक होते है उतने तो न्यायलयों के निर्णय ऐसी टेक्स्ट बुक में डाल ही दिए जाते हैं जिससे अधिनियम में कही गई बात स्पष्ट हो जाती है।
भारत का संविधान, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता, सिविल प्रक्रिया सहिंता, भारतीय संविदा अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण विषयों की अनेक टेक्स्ट बुक बाजार में अलग अलग पब्लिकेशन की सरलता से उपलब्ध होती है। इससे उन्हें कानून की प्रारंभिक जानकारी सरलता से उपलब्ध हो जाती है।
कॉमेंट्री बुक
कानून को सीखने और याद करने में यह सबसे अंतिम और मजबूत कड़ी है। कॉमेंट्री बुक विधिशास्त्री, न्यायमूर्ति, अधिवक्ता इत्यादि द्वारा लिखी जाती है। यह पुस्तक उनके जीवन के अनुभव और अपने विशद कानून के ज्ञान के आधार पर लिखी जाती है। ऐसी पुस्तक लिखना जीवन के घोर परिश्रम के बाद ही संभव हो पाता है।
कॉमेंट्री बुक में किसी भी अधिनियम की एक एक धारा, उपधारा, अनुसूची पर अत्यंत विशद टिप्पणी लेखक द्वारा प्रस्तुत की जाती है। किसी भी धारा को छोड़ा नहीं जाता है। सबसे पहले धारा का क्षेत्र लिखा जाता है, जिसमे लेखक धारा में क्या कहा गया है इस बात को अपने शब्दों में उतारता है। फिर उस धारा से संबंधित सभी न्याय निर्णय जो हाई कोर्ट द्वारा और भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए हैं उन्हें प्रस्तुत किया जाता है। अगर उस धारा में कोई सिद्धांत है तब उस सिद्धांत पर भी विस्तृत चर्चा की जाती है। कानून का स्त्रोत भी अलग अलग सिद्धांत है। किसी अधिनियम में कोई धारा यदि किसी सिद्धांत से प्रभावित होकर आयी है तब लेखक उस सिद्धांत के जनक और उसके तत्व तथा उसकी आवश्यकता पर चर्चा करता है।
कॉमेंट्री बुक महंगी होती है और इन पुस्तकों को प्रोफेशनल लोग ही पढ़ते है जैसे जज, वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, पुलिस अफसर इत्यादि। इन पुस्तकों से वह किसी भी धारा में समस्त दृष्टिकोण को समझ लेते है, जिससे उनके काम में आसानी होती है।
लॉ जर्नल्स और ऑल इंडिया रेकॉर्ड
यह किताबें साइटेशन के लिए होती हैं। इन किताबों में अलग अलग हाई कोर्ट और सुप्रीम के फैसले पूर्ण रूप से दिए होते हैं। ऊपरी अदालतों के फैसले नज़ीर होते हैं उन्हें अदालतों में बतौर नज़ीर के पेश किया जाता है। इन किताबों को अधिकांश वकीलों और जजेस द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।