कितनी तरह के होते हैं गवर्नमेंट एडवोकेट? जानिए

Update: 2024-11-08 10:36 GMT

गवर्नमेंट एडवोकेट को आम भाषा में सरकारी वकील भी कहा जाता है। ऐसे गवर्नमेंट एडवोकेट अनेक तरह के होते हैं जो अलग अलग अदालतों में शासन की ओर से कार्य करते हैं।

पब्लिक प्रोसिक्यूटर

पब्लिक प्रोसिक्यूटर की परिभाषा बीएनएसएस धारा (2)(फ़) के अंतर्गत प्राप्त होती है। यह बीएनएसएस की परिभाषा वाला खंड है। इस खंड में पब्लिक प्रोसिक्यूटर की केवल परिभाषा दी गई है। इस परिभाषा के अलावा पब्लिक प्रोसिक्यूटर की नियुक्ति भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 18 के अंतर्गत की जाती है।

पहला-जो धारा 24 के अधीन पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त किया जाता है।

दूसरा-वह जो पब्लिक प्रोसिक्यूटर के अधीनस्थ कार्य करें।

पब्लिक प्रोसिक्यूटर की नियुक्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 18 के अंतर्गत की जाती है। इस धारा के अंतर्गत हाई कोर्ट के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार हाई कोर्ट परामर्श के पश्चात केंद्रीय सरकार एवं राज्य सरकार की ओर से हाई कोर्ट में पक्ष रखने हेतु ऐसा पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त करती है। यह पब्लिक प्रोसिक्यूटर अभियोजन, अपील या अन्य कार्यवाही का संचालन करता है।

केंद्रीय एवं राज्य सरकार एक पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त करती है और इसके अतिरिक्त एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर एक से अधिक आवश्यकता के अनुसार हो सकते है। किसी एक जिले के लिए एक पब्लिक प्रोसिक्यूटर भी हो सकता है या एक से अधिक लोक अभियोजन हो सकते है।

जिला मजिस्ट्रेट सेशन जज से परामर्श के बाद एक पैनल तैयार करता है उस जिले के लिए इस पैनल में ऐसे ही पब्लिक प्रोसिक्यूटर एवं एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर चुने जाते है।

पब्लिक प्रोसिक्यूटर होने के लिए व्यक्ति का एडवोकेट होना अत्यंत आवश्यक है। कम से कम 7 वर्ष तक एडवोकेट के रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति ही धारा 18 के अंतर्गत पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त किया जा सकता है।

एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर भी पब्लिक प्रोसिक्यूटर ही होता है तथा दोनों की शक्तियां एक समान होती है। यह दोनों के दायित्व भी एक समान होते है। यह दोनों ही सरकार के मामलों को अदालत में निपटाते है। हाई कोर्ट में सरकार के जिसमें राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों शामिल है इन दोनों के मामलों में अभियोजन का संचालन अपील या कोई अन्य कार्यवाही इत्यादि के काम करते है। अंतर इतना है कि पब्लिक प्रोसिक्यूटर केवल एक होता है लेकिन एडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर एक से अधिक किसी एक जिले के लिए नियुक्त किए जा सकते है।

असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर यह महत्वपूर्ण सरकारी वकील होता है जो राज्य के मजिस्ट्रेट के कोर्ट में अभियोजन का संचालन करने के लिए नियुक्त किया जाता है।

किसी जिले के लिए एक पब्लिक प्रोसिक्यूटर होता है। जो विशेष प्रकरणों का संचालन करता है तथा एक से अधिक सहायक पब्लिक प्रोसिक्यूटर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते है।

कोई भी पुलिस अधिकारी पब्लिक प्रोसिक्यूटर का कार्य नहीं कर सकता है। बीएनएसएस की धारा 19 के अंतर्गत कोई पुलिस अधिकारी इस प्रकार नियुक्त नहीं किया जाएगा कि किसी विशिष्ट मामले में असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर उपलब्ध नहीं है तो किसी पुलिस अधिकारी को असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त कर दिया जाए। किसी भी स्थिति में कोई भी भारसाधक पुलिस अधिकारी असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर नियुक्त नहीं किया जा सकेगा।

डिस्ट्रिक्ट पब्लिक प्रोसिक्यूटर

असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर का कार्यभार देखता है तथा असिस्टेंट पब्लिक प्रोसिक्यूटर का नियंत्रण भी करता है।

राज्य का अटॉर्नी जर्नल

भारत के संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार राज्य सरकार द्वारा राज्य के ऐसे व्यक्ति को जो हाई कोर्ट का जज नियुक्त होने के लिए योग्यता रखता है उस व्यक्ति को राज्य का अटॉर्नी जर्नल नियुक्त किया जा सकता है।

राज्य का अटॉर्नी जर्नल भी सरकारी वकील होता है। अटॉर्नी जर्नल का यह कर्तव्य होता है कि वह राज्य सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देता है और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करता है जो राज्यपाल उसको समय-समय पर निर्देशित करता रहता है।

अटॉर्नी जर्नल ऑफ इंडिया

भारत के संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार भारत का राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त होने की योग्यताएं रखने वाले किसी व्यक्ति को भारत का अटॉर्नी जर्नल ऑफ इंडिया नियुक्त कर सकता है। अटॉर्नी जर्नल ऑफ इंडिया भी सरकारी वकील ही माना जाएगा क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा इस अटॉर्नी जर्नल ऑफ इंडिया को नियुक्त किया जाता है।

अटॉर्नी जर्नल भारत सरकार को लॉ संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देता है। विधिक स्वरुप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करता है जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करता रहता है।

अटॉर्नी जर्नल ऑफ इंडिया समय-समय पर भारत के सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार का भिन्न भिन्न प्रकार के वादों में मत रखता रहता है। स्पष्ट और सरल शब्दों में कहा जाए तो भारत सरकार की तरफ से वह सबसे बड़ा वकील होता है जो सरकार के किसी भी मामले में मत सुप्रीम कोर्ट में रखता है।

अभियोजन निदेशालय-

बीएनएसएस की धारा 20 के अनुसार राज्य सरकार अभियोजन निदेशालय की स्थापना कर सकती है जिसमें एक अभियोजन निदेशक तथा जितने राज्य सरकार ठीक समझे उतने अभियोजन उपनिदेशक हो सकते है।

अभियोजन निदेशालय में अभियोजन निदेशक एवं अभियोजन उपनिदेशक वही व्यक्ति हो सकता है जो कम से कम 10 वर्षों तक के एडवोकेट के रूप में काम करता रहा है।

इस अभियोजन निदेशालय के अधीन सभी पब्लिक प्रोसिक्यूटर ,विशेष पब्लिक प्रोसिक्यूटर,अपर पब्लिक प्रोसिक्यूटर,सहायक पब्लिक प्रोसिक्यूटर होते हैं।

अभियोजन निदेशक के अधीन पब्लिक प्रोसिक्यूटर,विशेष पब्लिक प्रोसिक्यूटर होते हैं वतथा अभियोजन उपनिदेशक के अधीन सहायक पब्लिक प्रोसिक्यूटर होते हैं।

यह अभियोजन निदेशालय पब्लिक प्रोसिक्यूटर,अपर पब्लिक प्रोसिक्यूटर,सहायक पब्लिक प्रोसिक्यूटर को नियंत्रित करने के लिए तथा राज्य के सभी मामलों में ठीक से अभियोजन चलाने,अपील करने व कोई अन्य कार्यवाही करने के लिए एडवोकेट का क्रम बना रहे इस उद्देश्य हेतु की स्थापना की जाती है।

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