हिमाचल प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम 2023 धारा 22 और धारा 23 : किराए की जमा करने की समय-सीमा, गलत जानकारी के परिणाम और जब्ती की प्रक्रिया

हिमाचल प्रदेश Rent Control Act, 2023 एक ऐसा कानून है जो किरायेदारों (Tenants) और मकान मालिकों (Landlords) के अधिकारों की रक्षा करता है। यह किराए, बेदखली (Eviction), और किराए से जुड़े अन्य विवादों को नियंत्रित करता है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य मकान मालिक और किरायेदार के बीच संतुलन बनाए रखना है ताकि दोनों को न्याय मिल सके।
इस कानून का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि अगर किसी मकान मालिक द्वारा किराया लेने से इनकार कर दिया जाता है या किराए की रसीद (Receipt) नहीं दी जाती है, तो किरायेदार Rent Controller के पास किराया जमा कर सकता है। यह व्यवस्था धारा 21 में दी गई है। हालांकि, सिर्फ किराया जमा कर देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
धारा 22 और धारा 23 में यह स्पष्ट किया गया है कि किराए की राशि कब और कैसे जमा की जानी चाहिए, अगर किरायेदार गलत जानकारी देता है तो उसके क्या परिणाम होंगे, और अगर मकान मालिक किराया नहीं निकालता है तो उस पैसे का क्या होगा।
इस लेख में इन दोनों धाराओं (धारा s) को सरल भाषा में समझाया गया है ताकि आम लोग भी इसे आसानी से समझ सकें।
किराए की जमा करने की समय-सीमा और गलत जानकारी के परिणाम (धारा 22 - Time Limit for Making Deposit and Consequences of Incorrect Particulars)
किराया जमा करने की समय-सीमा (Time Limit for Deposit)
धारा 22(1) के अनुसार, अगर किरायेदार धारा 21 के तहत Rent Controller के पास किराया जमा कर रहा है, तो यह केवल तभी वैध (Valid) माना जाएगा जब यह राशि 21 दिनों के भीतर जमा की गई हो। यह 21 दिन उस समय से गिने जाएंगे जब धारा 20 के अनुसार किराया भुगतान किया जाना था।
धारा 20 के अनुसार, अगर मकान मालिक और किरायेदार के बीच कोई लिखित अनुबंध (Written Agreement) नहीं है, तो हर महीने के 15वें दिन तक पिछले महीने का किराया देना जरूरी होता है। अगर मकान मालिक किराया लेने से मना कर दे, तो किरायेदार को 5 अगस्त तक (15 जुलाई + 21 दिन) Rent Controller के पास किराया जमा करना होगा।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि किरायेदार को जुलाई माह का किराया 15 जुलाई तक देना था, लेकिन मकान मालिक किराया लेने से इनकार कर देता है। अब, किरायेदार के पास 21 दिनों की समय सीमा होगी यानी 5 अगस्त तक वह Rent Controller के पास किराया जमा कर सकता है। अगर किरायेदार 10 अगस्त को किराया जमा करने की कोशिश करता है, तो यह अमान्य (Invalid) माना जाएगा, और मकान मालिक उसे किराया न देने के आधार पर घर खाली करने के लिए कह सकता है।
गलत जानकारी देने के परिणाम (Consequences of False Information)
धारा 22(2) कहता है कि यदि किरायेदार किराया जमा करने के लिए आवेदन (Application) में कोई झूठी जानकारी (False Information) देता है, तो यह जमा अमान्य माना जाएगा। हालांकि, यदि मकान मालिक ने किराया पहले ही निकाल लिया हो, तो यह जमा वैध (Valid) रहेगा।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि असल किराया ₹7,000 प्रति माह है, लेकिन किरायेदार अपने आवेदन में इसे ₹5,000 दिखाकर Rent Controller के पास जमा कर देता है। यदि मकान मालिक किराया नहीं निकालता और बाद में इस झूठ को उजागर करता है, तो यह जमा अमान्य हो जाएगा। लेकिन अगर मकान मालिक पहले ही जमा की गई राशि निकाल चुका है, तो यह मान्य रहेगा और किरायेदार को इसका लाभ मिलेगा।
इस नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किरायेदार Rent Deposit System का दुरुपयोग न करें और सही जानकारी दें।
वैध जमा का प्रभाव (Effect of a Valid Deposit)
धारा 22(3) के अनुसार, यदि किरायेदार ने सही समय पर किराया जमा किया है और उसने आवेदन में कोई झूठी जानकारी नहीं दी है, तो इसे ऐसा माना जाएगा जैसे उसने किराया सीधा मकान मालिक को दे दिया हो। इससे मकान मालिक किराया न देने का बहाना बनाकर किरायेदार को बेदखल नहीं कर सकता।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि किसी किरायेदार का मासिक किराया ₹10,000 है, और वह 1 अगस्त को सही जानकारी के साथ Rent Controller के पास यह जमा कर देता है। अब, भले ही मकान मालिक इसे लेने से इनकार करे, लेकिन यह कानूनी रूप से मान्य (Legally Valid) होगा और मकान मालिक किराया न मिलने के आधार पर किरायेदार को निकालने की कोशिश नहीं कर सकता।
किराए की स्वीकार्यता और जब्त करने के नियम (धारा 23 - Savings to Acceptance of Rent and Forfeiture of Rent in Deposit)
किराया निकालने का प्रभाव (No Admission by Withdrawal)
धारा 23(1) के अनुसार, यदि मकान मालिक किराए की जमा राशि निकाल लेता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह किराए की दर (Rate of Rent), बकाया राशि (Amount Due), या किरायेदार के आवेदन में दी गई किसी भी अन्य जानकारी से सहमत है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि किरायेदार ₹8,000 जमा करता है और दावा करता है कि यह दो महीने का किराया है, लेकिन असल में मकान मालिक का किराया ₹5,000 प्रति माह है। यदि मकान मालिक वह राशि निकालता है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि वह इस बात से सहमत है कि कुल किराया ₹4,000 प्रति माह ही होना चाहिए।
किराए की जब्ती (Forfeiture of Rent in Deposit)
धारा 23(2) के अनुसार, यदि मकान मालिक 5 साल तक जमा किया गया किराया नहीं निकालता है, तो यह राशि सरकार (Government) के खाते में चली जाएगी।
उदाहरण (Illustration)
यदि किरायेदार ने 1 जनवरी 2025 को Rent Controller के पास किराया जमा किया और मकान मालिक ने इसे 1 जनवरी 2030 तक नहीं निकाला, तो यह राशि सरकार द्वारा जब्त कर ली जाएगी और मकान मालिक इसे कभी भी वापस नहीं ले पाएगा।
जब्ती से पहले प्रक्रिया (Procedure for Forfeiture)
धारा 23(3) के अनुसार, जब्ती आदेश (Forfeiture Order) पास करने से पहले, Rent Controller को:
1. मकान मालिक को पंजीकृत डाक (Registered Post) के जरिए नोटिस भेजना होगा।
2. अपने कार्यालय (Office) में सार्वजनिक सूचना (Public Notice) लगानी होगी।
3. स्थानीय समाचार पत्र (Local Newspaper) में नोटिस प्रकाशित करना होगा।
धारा 22 और धारा 23 यह सुनिश्चित करते हैं कि किरायेदार और मकान मालिक दोनों के अधिकार सुरक्षित रहें। किरायेदार को यह अधिकार है कि यदि मकान मालिक किराया लेने से इनकार करे तो वह Rent Controller के पास किराया जमा कर सकता है। लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं, जैसे कि 21 दिनों के भीतर जमा करना और सही जानकारी देना।
इसी तरह, मकान मालिक को यह सुरक्षा दी गई है कि अगर किरायेदार गलत जानकारी देता है, तो जमा राशि अवैध मानी जाएगी। साथ ही, यदि मकान मालिक लंबे समय तक किराया नहीं निकालता, तो सरकार उस पैसे को जब्त कर सकती है।
इस तरह, यह कानून दोनों पक्षों के लिए निष्पक्षता (Fairness) और पारदर्शिता (Transparency) सुनिश्चित करता है।