प्ली बार्गेनिंग से विवाद निपटान के लिए दिशानिर्देश : धारा 291 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2024-12-04 13:06 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय XXIII में प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining) की प्रक्रिया का विस्तृत विवरण दिया गया है। धारा 291 उन नियमों को स्पष्ट करती है जो किसी मामले के आपसी सहमति से निपटान (Mutually Satisfactory Disposition) को सुनिश्चित करते हैं।

यह प्रक्रिया धारा 290(4)(a) में उल्लिखित है, और इस प्रक्रिया को न्यायालय के मार्गदर्शन में स्वैच्छिक और पारदर्शी रूप से संचालित किया जाता है।

पुलिस रिपोर्ट पर आधारित मामलों का निपटान

धारा 291(क) उन मामलों पर लागू होती है, जो पुलिस रिपोर्ट (Police Report) के आधार पर शुरू किए गए हैं। यह तब होता है जब जांच के बाद चार्जशीट दायर की जाती है।

इस प्रावधान के तहत, न्यायालय निम्नलिखित पक्षों को नोटिस जारी करता है ताकि वे बैठक में भाग लेकर मामले का समाधान निकाल सकें:

• पब्लिक प्रॉसिक्यूटर (Public Prosecutor)

• जांच अधिकारी (Investigating Officer)

• आरोपी (Accused)

• पीड़ित (Victim)

इस प्रक्रिया के दौरान, न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि सभी बातचीत और समझौते पूरी तरह से स्वैच्छिक (Voluntary) हों।

यदि आरोपी चाहे तो अपने वकील के साथ इस बैठक में भाग ले सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी आरोपी पर भारतीय दंड संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 379 के तहत गैर-हिंसात्मक चोरी का आरोप है और पीड़ित और आरोपी दोनों मामले का निपटान करने को तैयार हैं, तो न्यायालय इस प्रक्रिया की निगरानी करेगा।

इस प्रावधान के पहले उपबंध (Proviso) में इस बात पर जोर दिया गया है कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक होनी चाहिए। यदि किसी पक्ष पर दबाव या प्रभाव डालने का संदेह है, तो न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करेगा। दूसरा उपबंध आरोपी को यह अधिकार देता है कि वह बैठक के दौरान अपने वकील को साथ ला सके।

पुलिस रिपोर्ट के बिना शुरू किए गए मामलों का निपटान

धारा 291(ख) उन मामलों पर लागू होती है, जो पुलिस रिपोर्ट (Police Report) के बिना शुरू किए गए हैं, जैसे कि पीड़ित या शिकायतकर्ता द्वारा सीधे दायर किए गए मामले। इन मामलों में न्यायालय केवल आरोपी और पीड़ित को नोटिस जारी करता है ताकि वे बैठक में भाग लेकर आपसी सहमति से समाधान निकाल सकें।

यहां भी, न्यायालय का दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से स्वैच्छिक हो। आरोपी और पीड़ित दोनों को अपने वकील को बैठक में शामिल करने की अनुमति है।

उदाहरण के लिए, किसी संपत्ति विवाद के मामले में, जहां शिकायतकर्ता ने निजी शिकायत दर्ज कराई है, न्यायालय आरोपी और शिकायतकर्ता को बुलाकर मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने में सहायता करता है।

मामले की प्रक्रिया में न्यायालय की भूमिका

न्यायालय इस पूरी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चाहे मामला पुलिस रिपोर्ट से संबंधित हो या निजी शिकायत से, न्यायालय का उद्देश्य समान रहता है:

1. यह सुनिश्चित करना कि प्रक्रिया किसी प्रकार के दबाव या जोर-जबर्दस्ती के बिना हो।

2. यह देखना कि भाग लेने वाले पक्ष अपनी इच्छाओं के अनुसार और अपने अधिकारों की समझ के साथ कार्य कर रहे हैं।

3. दोनों पक्षों को कानूनी सहायता का अवसर प्रदान करना ताकि संतुलित संवाद हो सके।

उदाहरण: धारा 291 के तहत एक मामला

मान लें कि किसी व्यक्ति पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 323 (साधारण मारपीट) के तहत आरोप लगाया गया है। मामला पुलिस रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया गया है, और आरोपी ने धारा 290 के तहत प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining) के लिए आवेदन किया है।

न्यायालय तब पब्लिक प्रॉसिक्यूटर, जांच अधिकारी, पीड़ित और आरोपी को बैठक में भाग लेने का निर्देश देता है। पीड़ित आरोपी द्वारा चिकित्सा खर्च के रूप में मुआवजा प्राप्त करने के बाद मामला सुलझाने के लिए तैयार हो जाता है। आरोपी अपने वकील के साथ सहमति देता है। न्यायालय इस समझौते की निगरानी करता है और इसे रिकॉर्ड पर ले लेता है।

पहले की धाराओं का संदर्भ

धारा 291 का सीधा संबंध धारा 289 और 290 से है।

• धारा 289 प्ली बार्गेनिंग की परिभाषा और इसके दायरे को समझाती है। यह यह भी बताती है कि कौन से मामले और अपराध इस प्रक्रिया के लिए योग्य हैं।

• धारा 290 आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया और न्यायालय द्वारा इसके सत्यापन की प्रक्रिया को परिभाषित करती है।

• धारा 291 इन प्रावधानों को आगे बढ़ाते हुए बताती है कि कैसे पक्षों के बीच आपसी सहमति से समाधान निकाला जाए और इसे न्यायालय की निगरानी में निष्पादित किया जाए।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 291 यह सुनिश्चित करती है कि प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया संरचित और नैतिक तरीके से संचालित हो।

यह प्रावधान मामलों को त्वरित और सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का अवसर प्रदान करता है, लेकिन इसके साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि कोई पक्ष जबरदस्ती या प्रभाव में आकर कार्य न करे। धारा 289, 290 और 291 मिलकर न्यायिक देरी को कम करने और आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती हैं।

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