दोष-स्वीकृति से बचाव तक: धारा 264, 265 और 266 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में वॉरंट मामलों की ट्रायल प्रक्रिया

Update: 2024-11-16 13:30 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) वॉरंट मामलों (Warrant Cases) की ट्रायल प्रक्रिया को स्पष्ट और व्यवस्थित तरीके से समझाती है।

धारा 264, 265 और 266 आरोपी की दोष-स्वीकृति (Plea of Guilt) से लेकर बचाव प्रस्तुत करने (Defense Evidence) तक के सभी चरणों को विस्तार से बताती हैं। यह प्रावधान पहले की धाराओं 261, 262 और 263 से जुड़े हुए हैं, जो ट्रायल की नींव रखते हैं। यहां इन धाराओं को सरल हिंदी में समझाया गया है।

धारा 264: दोष-स्वीकृति और दोषसिद्धि (Plea of Guilt and Conviction)

धारा 264 के अनुसार, यदि आरोपी दोष स्वीकार करता है (Plead Guilty), तो मजिस्ट्रेट को उस दोष-स्वीकृति को रिकॉर्ड करना होगा। मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने विवेक (Discretion) से आरोपी को दोषी ठहराए।

उदाहरण (Example):

मान लीजिए एक व्यक्ति पर छोटी चोरी (Petty Theft) का आरोप है। अगर वह अदालत में अपराध स्वीकार कर लेता है, तो मजिस्ट्रेट इस दोष-स्वीकृति को रिकॉर्ड करेंगे। इसके बाद, मजिस्ट्रेट अपराध की गंभीरता को देखते हुए दोषसिद्धि का निर्णय कर सकते हैं।

यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि जब आरोपी स्वेच्छा से अपराध स्वीकार करे, तो ट्रायल को लंबा खींचने से बचा जा सके। लेकिन मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होगा कि दोष-स्वीकृति दबाव या धमकी के तहत न हो।

धारा 265: दोष-स्वीकृति से इनकार और अभियोजन के साक्ष्य (Refusal to Plead and Prosecution Evidence)

धारा 265 उन स्थितियों को कवर करती है, जब आरोपी दोष स्वीकार करने से इनकार करता है, कोई जवाब नहीं देता, या मुकदमा लड़ने की मांग करता है। यह स्थिति तब भी लागू होती है, जब मजिस्ट्रेट धारा 264 के तहत आरोपी को दोषी नहीं ठहराते।

ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट अभियोजन (Prosecution) के गवाहों (Witnesses) की जांच के लिए एक तारीख तय करते हैं। इससे पहले, मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करते हैं कि आरोपी को पुलिस द्वारा जांच के दौरान दर्ज किए गए गवाहों के बयान (Statements of Witnesses) पहले से उपलब्ध करा दिए गए हैं।

अभियोजन की मांग पर, मजिस्ट्रेट गवाहों को बुलाने (Summon) या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के निर्देश दे सकते हैं। तय तारीख पर मजिस्ट्रेट अभियोजन द्वारा प्रस्तुत सभी साक्ष्यों (Evidence) को रिकॉर्ड करते हैं।

गवाहों की जिरह (Cross-Examination) को स्थगित करने की अनुमति दी जा सकती है, और गवाहों को पुनः बुलाया जा सकता है। साथ ही, गवाहों की जांच ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means) से भी की जा सकती है।

उदाहरण (Example):

एक धोखाधड़ी (Fraud) मामले में, आरोपी अपराध से इनकार करता है। अभियोजन मजिस्ट्रेट से एक प्रमुख गवाह को बुलाने की अनुमति मांगता है, जो वित्तीय दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है।

मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित करते हैं कि आरोपी को सभी गवाहों के बयान पहले से मिलें और गवाह की गवाही सुनते हैं।

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि साक्ष्य व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत किए जाएं और ट्रायल प्रक्रिया पारदर्शी रहे।

धारा 266: बचाव और गवाहों की मांग (Defense and Summoning of Witnesses)

धारा 266 बचाव पक्ष (Defense) पर केंद्रित है। इसमें आरोपी को अपने बचाव के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने और गवाह बुलाने का अधिकार दिया गया है। आरोपी एक लिखित बयान (Written Statement) जमा कर सकता है, जिसे मजिस्ट्रेट रिकॉर्ड का हिस्सा बनाएंगे।

अगर आरोपी किसी गवाह को बुलाने या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए आवेदन करता है, तो मजिस्ट्रेट इसे मंजूरी देंगे, जब तक कि इसे परेशान करने (Vexation), देरी करने, या न्याय को बाधित करने के उद्देश्य से न माना जाए। अगर ऐसा पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट आवेदन को अस्वीकार करते हैं और इसका कारण लिखित रूप में दर्ज करते हैं।

गवाहों को फिर से बुलाने की अनुमति तभी दी जाएगी, जब मजिस्ट्रेट इसे न्याय के हित में आवश्यक समझें। गवाहों की जांच ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी की जा सकती है। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट गवाह की यात्रा के लिए खर्च का भुगतान अदालत में जमा करवाने की मांग कर सकते हैं।

उदाहरण (Example):

एक हमले (Assault) के मामले में, आरोपी दावा करता है कि वह अपराध स्थल पर मौजूद नहीं था। अपने बचाव के लिए, वह मजिस्ट्रेट से एक पड़ोसी गवाह को बुलाने का अनुरोध करता है, जो उसकी गैर-मौजूदगी की पुष्टि कर सकता है। मजिस्ट्रेट गवाह को बुलाने की अनुमति देते हैं।

लेकिन अगर आरोपी पहले ही अभियोजन के गवाह की जिरह कर चुका है, तो उसे बिना ठोस कारण के फिर से बुलाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह प्रावधान आरोपी को न्यायोचित बचाव करने का अधिकार देता है, लेकिन साथ ही प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय भी प्रदान करता है।

पिछली धाराओं से संबंध (Connection with Previous Sections)

धारा 264, 265 और 266 पहले की धाराओं 261, 262 और 263 की नींव पर आधारित हैं-

• धारा 261 यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी को सभी आवश्यक दस्तावेज़ दिए जाएं।

• धारा 262 आरोपी को आरोपमुक्ति के लिए आवेदन करने का अवसर देती है।

• धारा 263 यह तय करती है कि पर्याप्त साक्ष्य होने पर आरोप तय किए जाएं।

इन प्रावधानों के बाद धारा 264, 265 और 266 ट्रायल की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं और न्याय के सिद्धांतों को सुनिश्चित करते हैं।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएं 264, 265 और 266 वॉरंट मामलों में न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी, सुव्यवस्थित और संतुलित बनाती हैं। दोष-स्वीकृति से लेकर बचाव पक्ष की प्रस्तुति तक, ये प्रावधान न्यायिक संतुलन बनाए रखते हैं।

ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम और समयसीमा के प्रावधान आधुनिक न्यायिक प्रक्रियाओं को गति देते हैं। यह संहिता आरोपी और अभियोजन दोनों के अधिकारों की रक्षा करते हुए न्याय के सिद्धांतों को सुदृढ़ करती है।

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