एक्स पार्टी डिक्री और उसे सेटेसाइट किया जाना

Update: 2024-07-15 04:48 GMT

सिविल प्रोसीजर कोड के अंडर किसी केस में प्रतिवादी को नोटिस भेजे जाने और ऐसे भेजे गए नोटिस के सर्व हो जाने के बाद भी अगर ऐसा प्रतिवादी कोर्ट के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तब कोर्ट ऐसे प्रतिवादी को एक्सपार्टी कर देती है और एक्सपार्टी करके डिक्री जारी कर देती है इसे ही एक्सपार्टी डिक्री कहा जाता है। ऐसी डिक्री को बाद में कोर्ट सेटेसाइट भी कर सकती है लेकिन इसके लिए कुछ बेस होना चाहिए और रीजनेबल कॉज़ होना चाहिए तब ही ऐसी डिक्री को अपास्त किया जाता है।

एक्सपार्टी डिक्री नेचुरल लॉ के विरुद्ध है क्योंकि इस एक्सपार्टी डिक्री या निर्णय में केवल एक ही पक्षकार को सुना जाता है। जिस पक्षकार के विरुद्ध आदेश है निर्णय पारित किया जाता है उस पक्षकार को सुना नहीं जाता है। उसकी अनुपस्थिति में एक्सपार्टी डिक्री पारित कर दी जाती है। एक्सपार्टी डिक्री उसी स्थिति में पारित की जाती है जिस स्थिति में पक्षकार समन द्वारा सूचना प्राप्त होने पर भी कोर्ट में उपस्थित होकर लिखित अभिकथन नहीं करता है। केस में आगे की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है तथा विचारण का भागीदार नहीं बनता है। इस परिस्थिति में पक्षकार वाद से बचने का प्रयास करता है।

दीवानी प्रकरण में एक्सपार्टी डिक्री दिया जाना भी एक आवश्यक कार्य है क्योंकि पक्षकार मुकदमों से बचते है तथा जिन पक्षकारों के अधिकारों का अतिक्रमण हुआ है एवं पक्षकारों को व्यथित किया गया है वह पक्षकार जो किसी व्यक्ति विशेष के कार्यों द्वारा आहत है। यह लोग ऐसी अनुपस्थित रहने वाले पक्षकार के कारण कोर्ट में उपस्थित होकर न्याय प्राप्त नहीं कर पाते है।

न्याय के सिद्धांतों को गतिशील बनाने हेतु एक एक्सपार्टी डिक्री दी जाती है तथा यह न्यायालय की विशेष शक्ति है।

जहां समन सम्यक रूप से तामील किया गया हो और प्रतिवादी उपस्थित नहीं हो वहां न्यायालय एकपक्षीय अग्रसर हो सकेगा। एक्सपार्टी डिक्री पारित कर सकेगा, इसी प्रकार यदि प्रतिवादी समन प्राप्ति के हस्ताक्षर करने से इंकार कर दे तथा रजिस्ट्रीकरण पत्र को भी लेने से मना कर दे तब ऐसे प्रतिवादी के विरुद्ध एकपक्षीय कार्रवाई की जा सकेगी।

एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किया जाना-

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 7 व 13 में एकपक्षीय आज्ञप्ति आदेशों को अपास्त किए जाने के बारे में प्रावधान किया गया है।

यदि सुनवाई एकपक्षीय स्थगित कर दी गई हो तो प्रतिवादी उपसंजात हो सकेगा और उपसंजाति के लिए हेतु संरक्षित कर सकेगा। न्यायालय खर्चा दिलवा कर या अन्यथा सुने जाने और लिखित कथन संस्थित किए जाने का आदेश दे सकेगा।

अगर सुनवाई पूरी गई हो और वाद को निर्णय के लिए रखा गया हो तो ऐसी परिस्थिति में आदेश 9 के नियम 7 के अंतर्गत एकपक्षीय आदेश को अपास्त नहीं किया जाना चाहिए। यह सुनील कुमार बनाम प्रवीणचंद्र के मामले में 2008 राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा कहा गया है।

जहां ऐसा प्रतिवादी जिसके विरुद्ध एक्सपार्टी डिक्री पारित की गई है कोर्ट का समाधान कर देता है-

समन सम्यक रूप से तामील नहीं हुआ था।

उसके उपस्थित नहीं होने का कोई पर्याप्त कारण है, वह ऐसे एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किए जाने के लिए आवेदन कर सकेगा और कोर्ट ऐसे आवेदन पर खर्चा देखकर या अन्यथा शर्त पर एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त करने का आदेश दे सकेगा।

वीके इंडस्ट्रीज बनाम मध्य प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड के मामले में यह उल्लेख किया गया है कि एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किए जाने के लिए जो शर्तें निर्धारित की जाएगी उन शर्तों को युक्तियुक्त होना चाहिए। कोई भी ऐसी शर्त जो युक्तियुक्त नहीं है उसे डिक्री अपास्त किए जाने के लिए कोर्ट द्वारा शर्तों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

कोई भी एक्सपार्टी डिक्री केवल इस आधार पर की समन की तामील में अनियमितता की गई थी अपास्त नहीं की जा सकेगी। समन की तामील में अनियमितता के साथ पक्षकार के पास कोई पर्याप्त युक्तियुक्त हेतु भी होना चाहिए जिसके कारण वह कोर्ट में उपस्थित नहीं हो सका।

किशोर कुमार अग्रवाल बनाम वासुदेव प्रसाद गुटगुटिया एआईआर 1977 पटना 131 के मामले में यह कहा गया है कि यहां कोई मामला एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट को अंतरित कर दिया गया हो लेकिन उसकी सूचना पक्षकारों को नहीं दी गई हो वहां किसी पक्षकार के विरुद्ध पारित एक्सपार्टी डिक्री अपास्त किए जाने योग्य होगी।

ए वी चार्ज बनाम एसएमआर ट्रेडर्स और अन्य एआईआर 1980 केरल 100 के प्रकरण में यह कहा गया है कि जहां कोई तिथि प्रतिवादी के साक्ष्य के लिए नियत हो वह प्रतिवादी नियत तिथि को बीमारी के कारण उपस्थित नहीं हुआ हो एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त कराने वाद की पुनर्स्थापना के लिए प्रस्तुत आवेदन संधारण योग्य होगा।

एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीमारी को भी युक्तियुक्त बीमारी माना गया है। पक्षकार किसी ऐसी बीमारी से पीड़ित हो जिस बीमारी के कारण वह कोर्ट तक आ पाने में असमर्थ हो तो ही इस कारण से डिक्री को अपास्त किए जाने हेतु आवेदन किया जा सकता है।

मैसर्स प्रेस्टिज लाइट्स लिमिटेड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि किसी एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त कराने हेतु प्रस्तुत आवेदन पत्र को इस आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए कि निर्णीत ऋणी द्वारा विषय से संबंधित कोई पूर्व निर्णय पेश नहीं किया गया कोर्ट के लिए भी विधि की अज्ञानता क्षम्य (माफी योग्य) नहीं है।

समय-समय पर भारत के हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किए जाने हेतु आने वाले वादों में कुछ पर्याप्त और अपर्याप्त कारणों का वर्गीकरण किया गया है।

सुनवाई की तिथि के संबंध में सद्भावनापूर्ण भूल।

गाड़ी का विलंब से पहुंचना।

एडवोकेट का बीमार हो जाना।

विरोधी पक्षकार का कपाट।

डायरी में सुनवाई की तारीख गलत अंकित कर दी जाना।

वाद मित्र अथवा संरक्षक की लापरवाही।

पक्षकार के संबंधी की मृत्यु हो जाना।

पक्षकार का कारवासित हो जाना।

विरोधी पक्षकार द्वारा निदेश नहीं मिलना।

सिविल प्रक्रिया संहिता अंतर्गत कोई भी डिक्री किसी भी आवेदन पर तब तक अपास्त नहीं की जाएगी जब तक वाद के विरोधी पक्षकार को उसकी सूचना नहीं दी जाती। वाद के विरोधी पक्षकार को सूचना देने के उपरांत ही एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किया जा सकेगा।

अनुपस्थिति के कारणों की पर्याप्तता का प्रश्न है या प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

चक्रधर चौधरी बनाम पदमालवदास के मामले में हाई ब्लड प्रेशर को अनुपस्थिति का पर्याप्त कारण माना है। यदि कोई पक्षकार हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित है तो इस आधार पर एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त किया जा सकता है ।

दिल्ली विकास प्राधिकरण बनाम शांति देवी के मामले में जो कि एआरआई 1982 दिल्ली 159 का मामला है। इस मामले में एडवोकेट कोर्ट में दिए गए समय से लेट पहुंचे उन्होंने इसके लिए कोर्ट में एक शपथ पत्र भी पेश किया था। जब कोर्ट में पहुंचे तो उन्हें मालूम हुआ कि कोर्ट द्वारा मामले में एक्सपार्टी कार्यवाही करने का आदेश दिया जा चुका है। जब एडवोकेट द्वारा मामले में एक्सपार्टी ऑर्डर को अपास्त किए जाने का आवेदन दिया गया तो इसे पर्याप्त कारण माना गया तथा एक्सपार्टी ऑर्डर को अपास्त कर दिया गया।

मधुबाला बनाम श्रीमती पुष्पा देवी के मामले में ऐसी एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त करने के आवेदन को ग्राह्य माना गया है जो-

विवाह को शून्य एवं अकृत घोषित कराने से संबंधित थी। पति द्वारा कपट के अधीन प्राप्त की गई थी। पत्नी द्वारा एक्सपार्टी डिक्री की जानकारी होने की तारीख से 1 माह के भीतर अपास्त करने हेतु आवेदन कर दिया गया था।

विश्वनाथ सिंह बनाम गोपाल कृष्ण सिंघल का मामला है। इस मामले में प्रतिवादी की बीमारी को अपास्त का एक अच्छा आधार माना गया। खासतौर से वहां जहां वादी ने इसका खंडन नहीं किया हो।

आलोक साबू बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा अभिनिर्धारित किया गया है कि एकपक्षीय आदेश को अपास्त करने के लिए ऋण वसूली अधिकरण द्वारा एक पूर्वोक्त शर्त के तौर पर खर्चा अधिकृत किया जा सकता है लेकिन एक करोड़ रुपए जमा कराने जैसी कठोर शर्त नहीं लगा सकता।

सैयद हसनल्लाह अन्य बनाम अहमद बेग अन्य का मामला-

एक्सपार्टी डिक्री को अपास्त करने के लिए निम्नांकित पर्याप्त आधार माना गया है-

समन का अंग्रेजी में जारी किया जाना जबकि प्रतिवादी अंग्रेजी नहीं जानता हो।

निर्णय का आर्डर शीट पर ही लिखा जाना। अर्थात निर्णय पृथक से विस्तृत नहीं लिखा गया था।

एक्सपार्टी के आदेश के विरुद्ध उपचार-

प्रतिवादी द्वारा अपील धारा 96(2) के अंतर्गत

पुनर्विलोकन धारा 114 आदेश 47 के अंतर्गत

आवेदन आदेश 9 के नियम 13 के अंतर्गत एक्सपार्टी डिक्री पारित करने वाले कोर्ट में आज्ञप्ति पारित होने की तिथि से या समन शामिल होने की अवस्था में उस दिनांक से जबकि आवेदक को डिक्री का ज्ञान हुआ 30 दिन के अंदर प्रतिवादी द्वारा आवेदन किया जाना चाहिए।

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