साक्ष्य अधिनियम : जानिए विशेषज्ञ (Expert) कौन होता और क्या होता है उसका प्रमुख कार्य?
साक्ष्य कानून का सामान्य सिद्धांत यह है कि प्रत्येक गवाह तथ्य का साक्षी होता है, राय का नहीं। इसका मतलब यह है कि एक व्यक्ति, जो किसी अदालत के समक्ष गवाह के रूप में पेश होता है, वह न्यायालय को केवल उन तथ्यों के बारे में बताने का हकदार है, जिन तथ्यों के बारे में उसके पास उसका व्यक्तिगत ज्ञान है, न कि यह बताने का कि उन तथ्यों के बारे में उसकी राय क्या है।
यदि हम भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की बात करें तो इसके अंतर्गत भी सामान्य नियम यह है कि एक गवाह को यह अनुमति अवश्य दी गयी है कि वह या तो किसी मुद्दे से संबंधित सुसंगित तथ्य (Relevant Fact) या विवाद्यक तथ्य (Fact-in-Issue) के बारे में बता सकता है, लेकिन उस तथ्य से जुडी उसकी राय क्या है, इसपर न ही अदालत ध्यान देती है न ही साधारतः इसे बारे में गवाह को बोलने की अनुमति होती है।
गौरतलब है कि साक्ष्य अधिनियम का यह सिद्धांत आपराधिक और सिविल, दोनों मामलों में लागू होता है। जाहिर है, किसी मामले में एक न्यायाधीश के अलावा, जिसके द्वारा उस मामले में अंतिम निर्णय सुनाया जाना है, किसी भी व्यक्ति की राय को, एक नियम के रूप में, उस मामले के निर्णय के लिए अप्रासंगिक माना जाता है। हालांकि, इस सिद्धांत के अपवाद भी हैं, जिन्हें हम इस लेख में आगे समझेंगे।
आम तौर पर, जब किसी व्यक्ति को गवाह के रूप में गवाही देने के लिए अदालत में बुलाया जाता है, तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह केवल तथ्यों को बताए और अपनी राय न दे। मामले में एक राय बनाना अदालत का काम है। इसके अलावा, अगर किसी व्यक्ति को अपनी गवाही देने के लिए कहा जाता है, तो यह उम्मीद की जाती है कि व्यक्ति उस मामले से संबंधित होना चाहिए, न कि वह कोई तीसरा पक्ष होना चाहिए।
हालाँकि, कुछ ऐसे मामले भी होते हैं जहाँ अदालत कोई राय बनाने या किसी निर्णय पर पहुँचने में खुदको असमर्थ पाती है। ये वो मामले होते हैं, जहाँ अदालत या न्यायाधीश को किसी विषय पर राय बनाने के लिए किसी विशिष्ट प्रकार के ज्ञान अथवा कौशल की आवश्यकता महसूस होती है, जोकि, जाहिर है कि उसके पास मौजूद नहीं होता है।
चलिए इसे एक उदाहरण से समझते हैं, मान लीजिये किसी मामले में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। अब एक न्यायाधीश द्वारा यह स्वतंत्र रूप से तय नहीं किया जा सकता है कि आखिर उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण क्या था। ऐसे मामलों में अदालत को किसी विशेषज्ञ की राय का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है।
ऐसी आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि ऐसे मामले में किसी विशेषज्ञ के विशिष्ट अनुभव, ज्ञान, कौशल एवं रिसर्च की आवश्यकता होगी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि आखिर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण क्या था। जाहिर है कि एक डॉक्टर या ऑटोप्सी या पोस्टमार्टम एक्सपर्ट यह बेहतर तरह से बता सकता है कि आखिर किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण क्या है। और इसलिए, अदालत द्वारा ऐसे व्यक्ति की मदद ली जाती है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण क्या था।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45 के अंतर्गत ऐसे व्यक्तियों/विशेषज्ञों की राय को सुसंगत माना जा सकता है, जो विदेशी विधि की, या विज्ञान की, या कला की, किसी हस्तलेख की पहचान या अंगुली चिन्हों के क्षेत्र में विशेष कुशलता रखते हों (और जहाँ अदालत को इन सभी विषयों से सम्बंधित कोई राय बनानी हो)। धारा 45 कहती है:-
45. विशेषज्ञों की राय – जब कि न्यायालय को विदेशी विधि की या विज्ञान की या कला की किसी बात पर या हस्तलेख या अंगुली चिन्हों की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि, विज्ञान या कला में या हस्तलेख या अंगुली चिन्हों की अनन्यता विषयक प्रश्नों में, विशेष कुशल व्यक्तियों की राय सुसंगत तथ्य है। ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते हैंं।
गौरतलब है कि केवल उपर्युक्त क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले किसी व्यक्ति की राय को विशेषज्ञ की राय माना जाता है (धारा 45 के अनुसार)। ये विषय हैं, विदेशी कानून, विज्ञान और कला, हस्तलेख एवं अंगुली चिन्हों की अनन्यता।
इसके अलावा, धारा 45क के अंतर्गत इलेक्ट्रोनिक साक्ष्य के परीक्षक की राय को भी सुसंगत माना जाता है और ऐसे परीक्षक को एक्सपर्ट या विशेषज्ञ कहा जाता है, धारा 45 क यह कहती है:-
45 क़ - जब न्यायालय को किसी कार्यवाही में किसी कम्प्युटर साधन या किसी अन्य इलेक्ट्रोनिक या अंकीय रूप में पारेषित या भंडारित किसी सूचना से संबंधित किसी विषय पर कोई राय बनानी होती है तब सूचना प्रौधोगिकी अधिनियम, 2000 (2000 क 21) की धारा 79 क में निर्दिष्ट इलेक्ट्रोनिक साक्ष्य के परीक्षक की राय सुसंगत तथ्य है।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि धारा 45 (एवं धारा 45-क़), एक विशेषज्ञ गवाह की सुनसंगतता एवं उपयोगिता को रेखांकित करती है। राम दास एवं अन्य बनाम राज्य सचिव एवं अन्य AIR 1930 All 587 के मामले में यह साफ़ किया गया था कि "विशेषज्ञ" शब्द का एक विशेष महत्व है, और किसी भी गवाह को अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है जब तक कि वह धारा 45, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अंतर्गत "विशेषज्ञ" न हो, या कुछ विशेष मामलों में, किसी विशेष कानून द्वारा उसे ऐसी राय व्यक्त करने की अनुमति न दी गई हो।
साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 एवं धारा 45क के अंतर्गत, विशेषज्ञों की राय स्वीकार्य तब बनती है, जब अदालत को विदेशी कानून, या विज्ञान, या कला, या हस्तलिपि या अंगुली चिन्हों की अनन्यता या इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के बारे में राय बनानी होती है, हालाँकि ऐसी राय अदालत द्वारा चूँकि स्वयं से नहीं बनायीं जा सकती है, क्योंकि यह सभी विषय एक विशिष्ट कौशल एवं पर्याप्त ज्ञान की मांग रखते हैं, इसलिए अदालत द्वारा किसी विशेषज्ञ की मदद ली जाती है।
यह विशेषज्ञ कौन होगा, इसके लिए इसी धारा में आगे प्रावधान किया गया है कि ऐसा विशेषज्ञ, विदेशी कानून, विज्ञान या कला, या हस्तलिपि, या अंगुली की अनन्यता एवं इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (धारा 45क के अनुसार) विषयक प्रश्नों का जवाब देने के लिए विशेष रूप से कुशल होना चाहिए। और यदि वो ऐसी कुशलता रखता है और जब वह इन विषयों के बारे में अपनी राय देता है, तो यह राय के बिंदु सुसंगत तथ्य होते हैं।
हालाँकि, जैसा कि हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम जय लाल एवं अन्य (1999) 7 SCC 280 के मामले में कहा गया है, एक गवाह के सबूत को एक विशेषज्ञ के रूप में स्वीकारने के लिए यह दिखाना आवश्यक होता है, कि ऐसे व्यक्ति ने उस विषय का, जिसपर वो राय दे रहा है, एक विशेष अध्ययन किया है या उस विषय में उसने एक विशेष अनुभव प्राप्त किया है।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस धारा के अंतर्गत ऐसा कोई पैमाना नहीं तय किया गया है कि किस प्रकार के लोग विशेषज्ञ हो सकते हैं, इसलिए इस लेख में बताये गए तमाम निर्णयों की मदद से हम यह तय कर सकते हैं कि आखिर एक विशेषज्ञ कौन कहलायेगा। चलिए इसके बारे में और गहराई से समझते हैं।
विशेषज्ञ कौन कहलायेगा?
किसी भी विज्ञान, कला या व्यापार के क्षेत्र में एक विशेषज्ञ वह है, जो अपने अभ्यास और अवलोकन से अनुभवी है। एक विशेषज्ञ का अर्थ वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति से है जो अपने प्रशिक्षण या अनुभव के कारण एक राय व्यक्त करने के लिए योग्य बना है, जबकि एक सामान्य गवाह ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं होता है।
कानूनी अर्थ में, एक विशेषज्ञ गवाह वह है जिसने उस विषय को लेकर, जिसके बारे में वह गवाही दे रहा है, विशेष अध्ययन, अभ्यास या अवलोकन किया है। यह जरुरी है कि ऐसे व्यक्ति को उस विषय का विशेष ज्ञान होना चाहिए।
इसलिए एक गवाह के सबूत को एक विशेषज्ञ के सबूत के रूप में लाने के लिए, यह दिखाना होगा कि उस व्यक्ति ने उस विषय का एक विशेष अध्ययन किया है, या उसमें एक विशेष अनुभव हासिल किया है या दूसरे शब्दों में कि वह उस विषय को लेकर उचित कौशल एवं पर्याप्त जानकारी रखता है।
गौरतलब है कि एक विशेषज्ञ के रूप में एक गवाह को योग्य बनाने के लिए कोई औपचारिक योग्यता आवश्यक नहीं है (धारा 45 एवं धारा 45क इस ओर कोई इशारा भी नहीं करती है)। उदाहरण के लिए, मैसूर हाईकोर्ट के अब्दुल रहमान बनाम मैसूर राज्य (1972) Cr। LJ 407 के फैसले में एक पेशेवर सुनार की राय को, सोने की शुद्धता जांचने हेतु एक विशेषज्ञ की राय के रूप में प्रासंगिक माना गया था, हालांकि उस सुनार के पास कोई औपचारिक योग्यता नहीं थी, उसकी एकमात्र योग्यता उसका अनुभव था।
एक और मामले में, विकलांगता को प्रमाणित करने के उद्देश्य से एक बहरे और गूंगे लोगों के स्कूल के प्रिंसिपल को एक विशेषज्ञ के रूप में स्वीकार्य किया गया था – किशन सिंह बनाम एन. सिंह AIR 1953 P&H 373।
विशेषज्ञ की विशेषता
रमेश चंद्र अग्रवाल बनाम रीजेंसी अस्पताल लिमिटेड एवं अन्य (2009) 9 एससीसी 709) के मामले में अदालत ने यह अवलोकन किया था कि एक विशेषज्ञ गवाह एवं उसके साक्ष्य की विशेषता यह है कि वह अदालत के लिए अनजान एक विषय में उचित कौशल रखता है। यही बात उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व निर्णय, हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम जय लाल एवं अन्य (1999) 7 SCC 280 के मामले में भी रेखांकित की गयी थी।
धारा 45 एवं धारा 45क की भाषा के मद्देनजर, यह आवश्यक है कि इससे पहले कि किसी व्यक्ति को एक विशेषज्ञ के रूप में चित्रित किया जा सके, यह आवश्यक है कि रिकॉर्ड पर कुछ सामग्री होनी चाहिए जो यह दिखा सके कि वह उस क्षेत्र का एक विशेषज्ञ है, और जिसे उस विशष्ट क्षेत्र में उचित कुशलता प्राप्त है, और वह उस विषय में उम्दा ज्ञान से युक्त है। ऐसे व्यक्ति द्वारा उस विषय का विशेष अध्ययन किया गया होगा या उसमें विशेष अनुभव प्राप्त किया गया होगा।
इस प्रकार एक विशेषज्ञ गवाह की गवाही स्वीकार्य होने से पहले, एक विशेषज्ञ के रूप में उसकी योग्यता दर्शायी जानी चाहिए, यह दिखाते हुए कि वह उस विषय में आवश्यक योग्यता रखता है या उसने अपने अनुभव द्वारा उस क्षेत्र में विशेष कौशल हासिल किया है।
विशेषज्ञ का कार्य एवं कर्त्तव्य
अंत में, जैसा कि हमने इस लेख में जाना, एक विशेषज्ञ, तथ्य का गवाह नहीं होता है। उसके गवाही/राय का चरित्र वास्तव में एक सलाहकार का है। विशेषज्ञ गवाह का प्रमुख कर्तव्य, किसी मामले में निष्कर्ष की सटीकता का परीक्षण करने के लिए आवश्यक वैज्ञानिक मानदंड के साथ न्यायाधीश की मदद करने का है, ताकि उस मामले में साक्ष्य द्वारा साबित किए गए तथ्यों को इस मापदंड के अनुसार न्यायाधीश को अपना स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम बनाया जा सके – सफी मोहम्मद बनाम राजस्थान राज्य AIR 2013 SC 2519।
इस तरह के गवाह की विश्वसनीयता उसके निष्कर्षों के समर्थन में बताए गए कारणों, आंकड़ों और सामग्रियों पर निर्भर करती है, जो उसके निष्कर्ष का आधार बनते हैं। एक विशेषज्ञ को न्यायाधीश या जूरी के रूप में कार्य नहीं करना होता है।
इसी प्रकार, टिटली बनाम अल्फ्रेड रॉबर्ट जोन्स के मामले में यह तय किया गया था कि एक विशेषज्ञ का वास्तविक कार्य, उन सभी सामग्रियों को अदालत के समक्ष रखना है, साथ में उन कारणों को भी, जिसके जरिये वह विशेषज्ञ किसी निष्कर्ष पर आने के लिए प्रेरित हुआ है, ताकि अदालत, जोकि एक विशेषज्ञ नहीं है, उन सामग्रियों के अवलोकन के द्वारा अपना स्वतंत्र निर्णय ले सके।