भारतीय समाज के लिए दहेज एक अभिशाप है। दहेज ने स्त्रियों के जीवन को दूभर कर दिया है। दहेज की प्रथा के खिलाफ संपूर्ण भारतवर्ष में समय-समय पर आंदोलन होते रहे हैं। नवाचार की क्रांति के माध्यम से दहेज का उन्मूलन करने तथा समाज से दहेज के समूल को नष्ट करने के प्रयास किए जाते रहे हैं। दहेज की मांग, दहेज संबंधित कई अपराधों को जन्म देती है।
भारतीय संसद ने भी समय-समय पर दहेज के खिलाफ विधि विधान का निर्माण किया है तथा समाज में दहेज समर्थक विचारों का अंत करने का प्रयास किया है। आवश्यक रूप से दहेज दिए जाने की प्रथा को नष्ट करने के अपने सारे प्रयास किए हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम, दहेज प्रतिषेध अधिनियम इत्यादि अधिनियम बनाकर भारत की संसद में दहेज जैसे अभिशाप से महिलाओं के संरक्षण के संपूर्ण प्रयास किए हैं।
दहेज मृत्यु
दहेज संबंधी अपराधों में दहेज मृत्यु सबसे जघन्य अपराध है। दहेज मृत्यु दहेज की मांग के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होती है। भारतीय समाज के लिए यह एक विकराल समस्या है। इस विकराल समस्या से निपटने हेतु भारतीय दंड संहिता के अधीन संपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी दहेज मृत्यु से संबंधित है।
आगे इस लेख के माध्यम से दहेज मृत्यु के अपराध के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के अनुसार दहेज मृत्यु की परिभाषा
'जहां किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है या उसके विवाह के 7 वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों से अन्यथा उसकी मौत हो जाती है और यह दर्शाया जाता है कि उसकी मृत्यु के ठीक पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने दहेज की किसी मांग के लिए उसके संबंध में उसके साथ क्रूरता की थी या उसे तंग किया था, वहां ऐसी मृत्यु को दहेज मृत्यु कहा जाएगा और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्यु कारित करने वाला समझा जाएगा।'
इस धारा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह धारा हत्या नहीं अपितु मृत्यु के संबंध में उल्लेख कर रही है। यह धारा किसी ऐसी स्त्री को संरक्षण प्रदान कर रही है, जिसकी मृत्यु विवाह के दिनांक से 7 वर्ष की अवधि के भीतर किसी शारीरिक दाह या क्षति के कारण हो जाती है।
दहेज की मांग के परिणाम स्वरूप ऐसी स्त्रियां सूली चढ़ा दी जाती हैं, जो दहेज लोभी को दहेज दे पाने में असमर्थ होती हैं। कई स्त्रियां बीमारियों से घिरकर मर जाती हैं या फिर आत्मदाह कर लेती हैं। स्त्रियों के संबंध में इस तरह की घटना घटती ही रहती हैं। इस धारा के माध्यम से ऐसे ही परिणामों पर अंकुश लगाने का प्रयास किया गया है।
दहेज मृत्यु के लिए आवश्यक बातें
धारा 304 बी के अंतर्गत दहेज मृत्यु के अपराध के गठन के लिए मुख्य रूप से दो बातें आवश्यक होती हैं।
1 दहेज की मांग का किया जाना
2 इसी मांग को लेकर स्त्री की मृत्यु से ठीक पूर्व उसे यातना दिये जाना
किसी भी अभियुक्त के संदर्भ में जब यह दोनों बातें साबित हो जाती हैं तो दहेज मृत्यु के अपराध के लिए दोष सिद्ध मान लिया जाता है। इन दोनों बातों के साबित होने के आधार पर ही दहेज मृत्यु जैसे जघन्य अपराध के अंतर्गत अभियुक्त को दंडित किया जाता है।
यदि किसी मामले में दहेज की मांग के बारे में कोई साक्ष्य नहीं है तो भी उसको धारा 304 बी के अंतर्गत घोषित नहीं किया जा सकता। यह बात स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश बनाम महेश चंद्र पांडे ए आई आर 2000 एस सी 3631 के मामले में कही गयी है।
बकसीसराम बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एआईआर 2013 एस सी 1484 के मामले में दहेज मृत्यु के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा निम्न तथ्य आवश्यक माने हैं।
1अप्राकृतिक मृत्यु का साक्ष्य
2 मृत्यु से ठीक पूर्व दहेज की मांग को लेकर परेशान किए जाने का साक्ष्य
कश्मीर कौर बनाम स्टेट ऑफ़ पंजाब एआईआर 2013 एसी 1039 के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दहेज मृत्यु के निर्माण की आवश्यक बातें बताई गई हैं।
1 दहेज की मांग को लेकर मृत्यु से ठीक पूर्व मृतका को परेशान किया जाना।
2 मृतका की मृत्यु जलने से या किसी शारीरिक क्षति से अप्राकृतिक परिस्थितियों में होना।
3 ऐसी मृत्यु विवाह के 7 वर्ष के भीतर होना।
4 मृतका को कष्ट उसके साथ क्रूरता का व्यवहार अथवा परेशान स्वयं उसके पति या पत्नी के नातेदार और द्वारा किया जाना।
5 यह सब कुछ दहेज की मांग को लेकर किया जाना।
6 मृत्यु से ठीक पूर्व यातना दिया जाना अथवा परेशान किया जाना।
एक बार फिर याद दिलाया जा रहा है, हत्या के विषय में चर्चा नहीं हो रही है, अपितु यहां पर दहेज मृत्यु के विषय में चर्चा हो रही है। ऐसी मृत्यु जो ऊपर वर्णित निम्न परिस्थितियों में होती है तो ही 304 बी का अपराध घटित होगा।
जहां तक मृत्यु से ठीक पूर्व का प्रश्न है, क्रूरता का आचरण मृत्यु के बीच सीधा संबंध होना तथा दोनों के बीच में अधिक अंतराल नहीं होना है। क्रूरता और मृत्यु के बीच में इतना युक्तियुक्त अंतराल होना चाहिए कि यह माना जा सके की मृत्यु क्रूरता के परिणाम स्वरूप ही हुई है।
भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा यही मत मुस्तफा शहादल शेख़ बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र के मामले में दिया गया है।
पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1995 एससी 774 के मामले में माना गया कि दहेज मृत्यु के अपराध के गठन के लिए दहेज की मांग किए जाने के विषय में किसी करार का होना आवश्यक नहीं है।
दहेज का अर्थ
भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के अंतर्गत दहेज की परिभाषा नहीं दी गई है परंतु भारतीय दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 में जो दहेज की परिभाषा दी गई है वही दहेज इस धारा के अंतर्गत मानी जाएगी। यह बात स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश बनाम राजगोपाल आसावा ए आई आर 2004 एस सी 1933 के मामले में कही गई है।
मृत्यु से पूर्व
दहेज मृत्यु से पूर्व घटने वाली घटनाओं पर चिंतन के बाद ही इस तरह के अपराध पर चिंतन किया जा सकता है। एम श्रीनिवासुलू बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्धारित किया गया है कि किसी मामले को धारा 304 बी की परिधि में मानने के लिए दहेज की मांग मृत्यु के बीच संबंध होना आवश्यक था। मृत्यु दहेज़ की मांग के परिणामस्वरूप होना अपेक्षित है।
घटना के कुछ दिनों पूर्व पत्नी को यातना देना भी धारा 304 बी की परिधि में आता है।
श्रीमती शांति और अन्य बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा एआईआर 1991 एससी 1226 के मामले में यह अभिनिर्धारित हुआ है कि अभियुक्तगण का मृतक के पिता तथा भाई से दहेज की मांग करना तथा पत्नी के साथ निर्दयता पूर्वक व्यवहार करना, मृतक का विवाह के 7 साल के भीतर मर जाना, मृतक के माता-पिता को सूचना दिए बिना जल्दीबाजी में मृतक का दाह संस्कार कर देना, यह सब अप्राकृतिक मृत्यु के संकेत हैं। धारा 304 बी के अंतर्गत अपराध का गठन करते हैं।
स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम एमवी मंजूनाथ का मामला। इस मामले में पत्नी की विवाह की 6 माह के भीतर मृत्यु हो गई थी। मृत्यु से पूर्व उसे दहेज के लिए तंग किया गया था। मृतक के भाई की गवाही से यह बात की पुष्टि होती थी, इसे दहेज हत्या माना गया।
रामबदन शर्मा बनाम बिहार राज्य इस विषय पर एक अच्छा उदाहरण है। मामला यह है कि अभियुक्त द्वारा मृतका से निरंतर दहेज की मांग की जाती रही। दहेज को लेकर मृतक को परेशान किया जाता रहा। उसके साथ आमानवीय व्यवहार भी किया जाता रहा। समय-समय पर उसे पीटा जाता रहा। अंत में उसे विष दिया गया जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
पवन कुमार बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा का मामला। इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि दहेज मृत्यु के मामले में दहेज के लिए करार का होना आवश्यक नहीं है। मृतक और उसके पिता से निरंतर टीवी और स्कूटर की मांग करते रहना दहेज़ की परिधि में आता है।
दहेज की मांग के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। ऐसी परिस्थिति में मामला खारिज भी किया जा सकता है। धीरज कुमारी बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में धारा 304 बी के अंतर्गत की गई दोष सिद्धि को इसलिए नहीं माना गया क्योंकि मृत्यु से ठीक पूर्व दहेज की मांग को लेकर मृतका को यातना देने अथवा परेशान करने वाले साक्ष्य का अभाव था।
ध्यान देने योग्य है की दहेज की मांग का साक्ष्य इस मामले में अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम निक्कूराम एआईआर 1995 एससी 67 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने धारा 304 बी के आवश्यक तत्व पर प्रकाश डाला है। उसमें एक मृतक रोशनी के पति राम उसकी माता वतथा बहन कमला देवी पर रोशनी की मृत्यु दहेज मृत्यु का आरोप था।
यह कहा गया कि दहेज की मांग को लेकर रोशनी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था। उसे दरांती से चोट पहुंचाई गई। अनंत रोशनी ने विषपान कर मृत्यु कारित कर ली।
उच्चतम न्यायालय ने धारा 304 बी की परिधि में आने वाला अपराध नहीं माना क्योंकि ना तो रोशनी के शरीर पर से चोट पाई गई जो मृत्यु पारित करने वाली हो और ना ही दहेज के कारण निर्दयता पूर्वक व्यवहार करने की कोई साक्ष्य थी।
सरोजिनी बनाम स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश एक महत्वपूर्ण मामला है।उसमें मृतक का शव उसके सुसराल के मकान के स्टोर रूम में पूर्ण रूप से जली हुई अवस्था में पाया गया। उसकी जीभ और आंखें बाहर निकल आयी थी और मुंह से खून रिस रहा था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मेडिकल रिपोर्ट तथा अन्य प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने हत्या का मामला माना न कि आत्महत्या का।
इसी प्रकार हरबंस लाल बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के मामले में पति और सास ने बहू को एक 9 माह के शिशु के साथ इसलिए जलाकर मार डाला के दहेज में पर्याप्त संपत्ति ना मिलने से व्यथित थे। उच्चतम न्यायालय ने उसे भी हत्या का मामला माना।
के प्रेमा एस राव बनाम माई श्रीनिवास राव के मामले में यह कहा गया कि जहां पिता द्वारा अपनी पुत्री को विवाह के समय कुछ भूमि दी गई हो वहां अभियुक्त द्वारा पत्नी से भूमि को अपने नाम अंतरित कराने के लिए कहा जाना दहेज की मांग नहीं है। ऐसे मामलों में भी न्याय 304 बी के अंतर्गत नहीं किया जा सकता।
धारा 304 बी के अंतर्गत दंड
धारा 304 बी के अंतर्गत न्यूनतम 7 वर्ष का कारावास और आजीवन कारावास तक का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ जुर्माने की व्यवस्था रखी गई है। यह संज्ञेय अपराध है और गैर जमानती अपराध है, जिसे सत्र न्यायालय द्वारा विचारण किया जाता है।