क्या है साइबर स्टॉकिंग पर कानून, साइबर क्राइम एवं महिलाओं के विरुद्ध हिंसा- भाग-1

Update: 2019-09-26 06:17 GMT

-चित्रांगदा शर्मा और सुरभि करवा

इंटरनेट की शुरुआत एक लोकतान्त्रिक और समानता के सिद्धांत आधरित प्लेटफार्म के वादे के साथ हुई थी और कुछ हद तक यह उद्देश्य हमारा समाज पा भी चुका है। आज इंटरनेट ने देश के कई कोनों में पहुँचकर हाशिये पर धकेली हुई आवाजों को मुख्य धारा में आने का मौका दिया है, लेकिन जाति, धर्म, लिंग आदि के भेदभावों से इंटरनेट भी अछूता नहीं रहा है।

इस सन्दर्भ में यदि पितृसत्ता और लैंगिक भेदभाव की बात करें तो कई शोध कहते हैं कि वास्तविक दुनिया की पुरुष प्रधानता इंटरनेट में भी पहुँच चुकी है। इंटरनेट भी एक 'जेंडर्ड स्पेस' बन गया है. सोशल मीडिया पर महिलाएँ बलात्कार की धमकियों, ट्रोलिंग, छेड़छाड़, और मिसोजेनिस्ट कमेंट आदि झेलती हैं। कई बार अजनबियों के हाथों तो कई बार स्वयं के पार्टनर उनके साथ ऐसा सुलुक करते हैं।

यह ज़रुरी है कि हम साइबर स्पेस में महिलाओं के विरुद्ध अपराध को समझे और उस पर बनाये गए कानूनों के प्रयोग पर ध्यान दें। अत: हम आने वाले लेखों में महिलाओं के विरुद्ध विभिन्न साइबर अपराधों पर चर्चा करेंगे।

साइबर स्टॉकिंग

सबसे पहले हम बात करेंगे साइबर स्टॉकिंग की। स्टॉकिंग को हिंदी में आमतौर पर 'पीछा करना' कहा जाता है। हालाँकि स्टॉकिंग की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है लेकिन मोटे तौर पर स्टॉकिंग का मुख्यत: अर्थ है अवांछित रूप से लगातार किसी व्यक्ति से संपर्क करने का प्रयास करना। नतीजा यह होता है कि पीड़ित व्यक्ति भय महसूस करता है। पूर्ण: स्वतंत्रता के साथ सोशल मीडिया पर अपने विचार आदि प्रस्तुत नहीं कर पाता और साथ ही पीड़ित पर मानसिक रूप से भी बुरा असर पड़ता है।

स्टॉकिंग के अपराध का सीधा सम्बन्ध उस सामाजिक व्यवस्था से है जहाँ पुरुषों को 'न' स्वीकार करना नहीं सिखाया जाता| किसी महिला की 'न' को उसकी आज़ादी और चुनाव की स्वतंत्रता न मान कर, पुरुषोचित दंभ का मुद्दा माना जाता है। इसका सीधा सम्बन्ध 'पॉवर और 'कट्रोल' से है।

साइबर स्टॉकिंग और भारतीय कानून

साल 2013 के पूर्व IPC में स्टॉकिंग पर कोई सीधे कोई प्रावधान नहीं थे। 2013 में संशोधन अधिनियम द्वारा IPC की धारा 354 D को लाया गया। जस्टिस वर्मा कमेटी ने 2013 में 354 D लाने का सुझाव दिया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में एक 'बिल ऑफ़ राइट्स ' पेश करते हुए प्रत्येक महिला को 'राइट टू सिक्योर स्पेस' की बात कही और कहा कि प्रत्येक महिला को बिना किसी भय के पब्लिक स्पेस इस्तेमाल करने का अधिकार है।

आईपीसी की धारा 354 D क्या कहती है

(1) ऐसा कोई पुरुष जो-

(2) जो कोई किसी स्त्री द्वारा इंटरनेट, ई-मेल या किसी अन्य प्रारूप की इलेक्ट्रॉनिक संसूचना का प्रयोग किये जाने को मॉनिटर करता है, पीछा करने का अपराध करता है।

इसके अलावा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी अधिनियम 2000 के तहत भी साइबर स्टॉकिंग के कुछ हिस्सों पर नियम मिलते हैं। इस अधिनियम में सीधे तौर पर कोई प्रावधान साइबर स्टॉकिंग की बात नहीं करता है लेकिन साइबर स्टॉकिंग के कुछ हिस्सों को इस अधिनियम के तहत चार्ज किया जा सकता है।

साइबर स्टॉकिंग और प्रावधानों का प्रयोग

साइबर स्टॉकिंग का अपराध क्या है? उसके मुख्य तत्व क्या हैं, यह अभी तक जुडिशल डिस्कोर्स का हिस्सा नहीं बना है। कोई सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का फैसला इस मुद्दे पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन साइबर स्टॉकिंग 2-3 अपराधों का मिश्रण हो सकता है। ऐसे में के धारा 354 D के साथ-साथ अन्य धाराएँ भी लागू होती हैं। आइए देखते हैं| 

अ. यदि वह व्यक्ति स्टॉक करने के साथ-साथ लगातार अभद्र सन्देश भेजता है। अभद्र फोटो भेजे तो आईटी एक्ट की धारा 67A के तहत अपराध दर्ज हो सकता है. धारा 67A यौन रूप से स्पष्ट सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक साधन द्वारा प्रकाशित या प्रेषित करने पर दंड का प्रावधान करती है। IPC की धारा 509 भी इस सन्दर्भ में इस्तेमाल की जा सकती है।

ब. यदि वह व्यक्ति स्टॉक करने के साथ-साथ लगातार धमकी भरे सन्देश भेजे तो IPC की धारा 506 लागू होगी। धारा 506 धमकी देने सम्बंधित अपराध में दंड का प्रावधान करती है।

स. यदि वह व्यक्ति उपर्युक्त दोनों ही गतिविधि नहीं करता परन्तु लगातार 'Hi', 'Hello' या अन्य इसी तरह के सन्देश सन्देश भेजता है तो यह स्पष्ट नहीं है कि धारा 354 D लागू होगी कि नहीं। क्या लगातार सन्देश भेजना 354 D के तहत 'मॉनिटरिंग' में शामिल है? इस मुद्दे पर कोर्ट का कोई फैसला उपलब्ध नहीं है। 'मॉनिटरिंग' शब्द के शब्दकोश आधारित अर्थ से तो ऐसा नहीं लगता।

जस्टिस वर्मा कमेटी ने धारा 354 D को अलग तरह से ड्राफ्ट किया था। उप-धारा (1) और (2) के अलावा एक (3) बिंदु और सुझाया था। वह इस प्रकार से है-

354 ...

(1)

(2)

(3) या कोई व्यक्ति नज़र रखता है या जासूसी करता है जिसके परिणामस्वरूप हिंसा का डर या भय की गंभीर चिंता हो या पीड़ित मानसिक तनाव महसूस करे या उसकी मानसिक शांति में बाधा उत्पन्न हो तो वह व्यक्ति स्टॉकिंग का अपराध करता है।

अगर यह तीसरी उपधारा भी कानून का हिस्सा होती तो लगातार सन्देश भेजने पर भी स्टॉकिंग का मामला बन सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है, इसलिए कुछ स्पष्टता की कमी है।

अगले लेख में हम महिलाओं की साइबर ट्रोलिंग पर चर्चा करेंगे।

(चित्रांगदा शर्मा और सुरभि करवा राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय, दिल्ली की पूर्व छात्राएँ हैं। प्रस्तुत लेख में प्रोफ. मृणाल सतीश ने मार्गदर्शन किया।) 

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