संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन संबंधी प्रावधान हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से निर्वाचन की तैयारी और मतदाता सूचियों के निर्माण के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 एक महत्वपूर्ण कानून है। यह अधिनियम मतदाता सूचियों की तैयारी, संशोधन और सुधार से संबंधित है। इस अधिनियम की धारा 31 विशेष रूप से मतदाता सूची से जुड़ी झूठी घोषणाओं को दंडनीय अपराध बनाती है। धारा 31 का उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है, क्योंकि मतदाता सूची ही निर्वाचन का आधार है। यदि कोई व्यक्ति मतदाता सूची की तैयारी, संशोधन या सुधार में झूठी घोषणा करता है, तो वह दंडित हो सकता है। यह धारा लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है, क्योंकि झूठी मतदाता प्रविष्टियां चुनावी धोखाधड़ी को जन्म दे सकती हैं।
यह धारा स्पष्ट रूप से झूठी लिखित घोषणाओं को अपराध मानती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि घोषणा लिखित होनी चाहिए; मौखिक झूठी बयान इस धारा के अंतर्गत नहीं आते। यह प्रावधान मतदाता पंजीकरण फॉर्म (जैसे फॉर्म 6, 7, 8) में दिए जाने वाले प्रमाणपत्रों पर लागू होता है, जहां व्यक्ति अपनी आयु, पता, नागरिकता आदि की घोषणा करता है।
धारा 31 का संबंध अधिनियम की अन्य धाराओं से भी है, जैसे धारा 17 (एक से अधिक जगह मतदाता पंजीकरण निषिद्ध) और धारा 18 (मतदाता सूची में नाम शामिल करने की शर्तें)। यदि कोई व्यक्ति अपनी पहले की पंजीकरण को छिपाकर नई घोषणा करता है, तो यह धारा 31 के अंतर्गत दंडनीय है।
धारा 31 निर्वाचन प्रक्रिया की अखंडता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में मतदाता सूची की तैयारी निर्वाचन आयोग के अधीन होती है, और यह प्रक्रिया निरंतर चलती है। झूठी घोषणाएं मतदाता सूची में डुप्लिकेट प्रविष्टियां, मृतकों के नाम या फर्जी मतदाताओं को जन्म दे सकती हैं, जो चुनावी धोखाधड़ी का कारण बनती हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति गलत पता या आयु घोषित करता है, तो वह अवैध रूप से मतदान कर सकता है, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
निर्वाचन आयोग ने कई बार चेतावनी जारी की है कि झूठी जानकारी देने पर धारा 31 के तहत एक वर्ष की कैद या जुर्माना हो सकता है। आंध्र प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने 2023 में कहा कि मतदाता आवेदन फॉर्म में झूठी जानकारी देना जेल की सजा का कारण बन सकता है। यह प्रावधान मतदाता जागरूकता बढ़ाता है और निर्वाचन अधिकारियों को सशक्त बनाता है।
लोकतंत्र में मतदाता सूची की शुद्धता आवश्यक है क्योंकि अनुच्छेद 326 वयस्क मताधिकार पर आधारित है। धारा 31 जैसी धाराएं सुनिश्चित करती हैं कि केवल योग्य नागरिक ही मतदान करें। यह राजनीतिक दलों को भी प्रभावित करती है, क्योंकि फर्जी मतदाता चुनाव परिणाम बदल सकते हैं।
धारा 31 की व्याख्या न्यायालयों ने कई मामलों में की है। यह निर्णय धारा के दायरे, आवश्यक तत्वों और दंड की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं।
यह सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभियुक्त केशव लाल ठाकुर पर आरोप था कि उन्होंने मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए झूठी घोषणा की। लेकिन घोषणा लिखित नहीं थी; यह मौखिक थी। निचली अदालत ने धारा 31 के तहत कार्यवाही शुरू की, लेकिन ठाकुर ने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
जस्टिस जी.एन. रे और जस्टिस जी.टी. नानावती की पीठ ने कहा कि धारा 31 स्पष्ट रूप से "लिखित कथन या घोषणा" की बात करती है। मौखिक बयान इस धारा के अंतर्गत नहीं आते। इसलिए, कार्यवाही रद्द कर दी गयी। यह निर्णय धारा 31 के लिए लिखित रूप की अनिवार्यता स्थापित करता है। यह मामला दर्शाता है कि न्यायालय कानून की शाब्दिक व्याख्या पर जोर देते हैं, जिससे निर्वाचन प्रक्रिया में सख्ती बनी रहती है।
पंजाब राज्य के एक मामले में सुखदीप कौर पर आरोप था कि उन्होंने मतदाता पंजीकरण के लिए फर्जी दस्तावेज जमा किए, जिसमें गलत पता और पहचान शामिल थी। यह धारा 31 के साथ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 420, 465, 467, 468 और 471 के अंतर्गत मामला था। कौर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि कार्यवाही रद्द की जाए।
कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और कहा कि यदि लिखित घोषणा झूठी है और व्यक्ति जानता है कि वह झूठी है, तो धारा 31 लागू होती है। यह मामला दर्शाता है कि धारा 31 IPC की जालसाजी धाराओं के साथ मिलकर काम करती है। कोर्ट ने जोर दिया कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक है, और ऐसे अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह निर्णय निर्वाचन अधिकारियों को फर्जी पंजीकरणों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति देता है।
सुप्रीम कोर्ट के अन्य निर्णयों में, जैसे मतदाता सूची संबंधी मामलों में, धारा 31 की भूमिका पर जोर दिया गया है कि यह निर्वाचन की निष्पक्षता सुनिश्चित करती है। यह निर्णय दर्शाते हैं कि न्यायालय धारा 31 को सख्ती से लागू करते हैं, लेकिन केवल जब सभी तत्व (लिखित, झूठी, ज्ञान) मौजूद हों।