ऐसे कॉन्ट्रैक्ट जिनका पालन Specific Relief Act के अनुसार नहीं करवाया जा सकता
Specific Relief Act केवल उन संविदा का उल्लेख नहीं करता है जिनका कोर्ट में प्रवर्तन कराया जा सकता है अपितु उन संविदाओं का भी उल्लेख कर रहा है जिनका प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता। धारा 14 के अनुसार निम्नलिखित संविदा को विनिर्दिष्ट प्रवर्तित नहीं कराया जा सकता-
वह संविदा जिसके पालन के लिए धन के रूप में प्रतिकर योग्य अनुतोष है यदि संविदा ऐसी है जिसका पालन नहीं किए जाने पर धन के रूप में प्रतिकर दिया जा सकता है और ऐसा प्रतिकर योग्य प्रतिकर है तो विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के अंतर्गत अनुतोष नहीं दिया जाएगा और उसको प्रतिकर हेतु वाद करना होगा
वह संविदा जो पक्षकारों के व्यक्तिगत योग्यताओं या स्वेच्छा पर इतनी आश्रित हो अन्यथा अपनी प्रकृति के कारण ऐसी हो कि कोर्ट उसके तात्विक निबंधनों के पालन का प्रवर्तन न करा सकता हो
संविदा जो अपनी प्रकृति से ही समाप्त हो
वह संविदा जिसके पालन में ऐसा सतत कर्तव्य पालन अन्तर्विलित हो जिसका कोर्ट परीक्षण नहीं कर सकता है
मध्यस्थम अधिनियम 1940 में अन्यथा उपबंधित के सिवाय वर्तमान या भावी मतभेदों को मध्यस्थम के लिए निर्देशन करने की कोई संविदा विनिर्दिष्ट प्रवर्तित नहीं की जाएगी किंतु यदि कोई व्यक्ति जिसने ऐसी संविदा की हो और उसका पालन करने से इंकार कर दिया हो किसी ऐसे विषय के बारे में वाद लाए जिसके निर्देशन की उसने संविदा की है तो ऐसी संविदा का अस्तित्व उस बात पर वाचन करेगा।
जहां धन प्रतिकर के रूप में योग्य अनुतोष है वहां संविदा प्रवर्तनीय नहीं होती है-
धारा 14 (1) (क) के अनुसार वह संविदाएं जिनके अपालन के लिए धन के रूप में प्रतिकर योग्य अनुतोष माना जाता है उनका प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता।
उदाहरण के लिए क ख से करार करता है कि वह 1 माह के भीतर 1000 बोरे बासमती चावल प्रदान करेगा। का चावल प्रदान करने में असफल रहता है, ख के वाद करने पर इस संविदा का Specific Performance नहीं कराया जा सकता क्योंकि इसके अपालन के लिए धन के रूप में प्रतिकार यथायोग्य अनुतोष होगा।
अशोक कुमार श्रीवास्तव बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के वाद में अपीलार्थी को एक संविदा के अंतर्गत निरीक्षक 19-9-1980 को कुछ शर्तों के अधीन नियुक्त किया गया था। 13-3-1982 को प्रत्यार्थी कंपनी ने 20 दिन का नोटिस देकर इस आधार पर निकाल दिया कि प्रीमियम के निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में असफल रहा। अपीलार्थी ने वाद किया और यह आधार लिया गया की निष्कासन अवैध है तथा यह घोषणा की जाए की वह अभी सेवा में है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया की अपीलार्थी द्वारा दायर किया गया वाद विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 14 (4 ) के अंतर्गत स्वीकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि धारा 14 के अंतर्गत वाद पोषणीय नहीं है परंतु सिविल कोर्ट की धारा 34 के अंतर्गत घोषणात्मक डिक्री के लिए वाद स्वीकार किया जा सकता है।
विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम 1963 की धारा 14 (1) ख के अंतर्गत ऐसी संविदाओं का विनिर्दिष्ट प्रवर्तन नहीं कराया जा सकता जिनमें बहुत से तथ्य जानकारियां हो या फिर पक्षकारों की व्यक्तिगत योग्यताओं या सुरक्षा पर निर्भर हो जैसे कि किसी अभिनेता या गायक द्वारा गीत गाया जाना अभिनय किया जाना।
कार्यपालिक समिति उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम लखनऊ बनाम चंद्रकिरण त्यागी के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि व्यक्तिगत सेवा की संविदा के विनिर्दिष्ट प्रवर्तन का आदेश सामान्यता नहीं दिया जा सकता है परंतु इस नियम को निम्नलिखित तीन अपवाद हैं-
जहां किसी लोक सेवक को संविधान के अनुच्छेद 311 के उल्लंघन में पद तथा सेवा से निष्कासित किया जाता है।
जहां किसी कर्मचारी को औद्योगिक विधि के अंतर्गत पद से हटा दिया जाता है।
जहां कोई कानूनी निकाय अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में कुर्की करती हैं।
उपर्युक्त नियम का अनुमोदन सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकारिणी समिति वेस्ट डिग्री कॉलेज श्यामली बनाम लक्ष्मीनारायण के वाद में कर दिया है।
शिवकुमार तिवारी विधिक प्रतिनिधियों द्वारा बनाम जगत नारायण राय के मुकदमे में अपीलार्थी एक कॉलेज में अस्थाई लेक्चरर नियुक्त किया गया था।
जिला इंस्पेक्टर ने उसकी नियुक्ति का अनुमोदन प्रति वर्ष के आधार पर किया था। उक्त अनुमोदन 1973 के पश्चात नहीं दिया गया। तत्पश्चात प्रत्यार्थी को शिक्षा विभाग में लेक्चरर नियुक्त किया। अपीलार्थी ने कालेज के विरुद्ध सिविल वाद किया जिस पर शिक्षा विभाग पक्षकार नहीं बनाया गया। सिविल कोर्ट ने निर्णय दिया की अपीलार्थी कॉलेज का स्थाई लेक्चरर है अतः शिक्षा विभाग से संबंधित क्षेत्र के डिप्टी डायरेक्टर ने आदेश पारित किया।
सिविल कोर्ट के निर्णय के फलस्वरुप अपीलार्थी कॉलेज का स्थाई लेक्चरर हो गया तथा प्रत्यार्थी की सेवाएं समाप्त की जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि सिविल कोर्ट का निर्णय शिक्षा विभाग पर बाध्यकारी नहीं है तथा डिप्टी डायरेक्टर का आदेश अपास्त होने योग्य है, सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि प्रार्थी द्वारा निबंध का तर्क मान्य नहीं है इसके अतिरिक्त विरुद्ध विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम के उपबंधों को ध्यान में रखते हुए सिविल कोर्ट उक्त घोषणा नहीं कर सकता था।
इन सब बातों के बाद भी आधुनिक नियम यह है कि विशिष्ट पालन की डिक्री प्रदान करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है तथा इसका प्रयोग करते समय कोर्ट वाद की परिस्थितियों पक्षकारों का आचरण तथा उक्त संविदा में उनके हितों को ध्यान में रखता है इसका मुख्य कारण यह है कि Specific परफॉरमेंस की विधि का विकास साम्य कोर्ट द्वारा किया गया था और साम्य कोर्ट में न्याय न्यायालयों के विवेक अनुसार होता है।