सिविल प्रक्रिया संहिता,1908 आदेश भाग 26: आदेश 6 नियम 15 अभिवचन का सत्यापन

Update: 2023-12-10 07:45 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 6 अभिवचन से संबंधित है जहां अभिवचन के साधारण नियम दिए गए हैं। आदेश 6 का नियम 15 अभिवचन से संबंधित है, जहां यह स्पष्ट किया गया है कि अभिवचन का सत्यापन पक्षकार द्वारा किया जाएगा। इस आलेख के अंतगर्त नियम 15 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-15 अभिवचन का सत्यापन (1) उसके सिवाय जैसा कि तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा अन्यथा उपबन्धित है, हर अभिवचन उसे करने वाले पक्षकार द्वारा या पक्षकारों में से एक के द्वारा या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जिसके बारे में न्यायालय को समाधानप्रद रूप में साबित कर दिया गया है कि वह मामले के तथ्यों से परिचित है, उसके पाद-भाग में सत्यापित किया जाएगा।

(2) सत्यापन करने वाला व्यक्ति अभिवचन के संख्यांकित पैराओं का निर्देश करते हुए यह विनिर्दिष्ट करेगा कि कौन-सा पैरा वह अपने निजी ज्ञान के आधार पर सत्यापित करता है और कौन-सा पैरा वह ऐसी जानकारी के आधार पर सत्यापित करता है जो उसे मिली है और जिसके बारे में उसका यह विश्वास है कि वह सत्य है।

(3) सत्यापन करने वाले व्यक्ति द्वारा वह सत्यापन हस्ताक्षरित किया जाएगा और उसमें उस तारीख का जिसको और उस स्थान का जहां वह हस्ताक्षरित किया गया था कथन किया जाएगा।

(4) अभिवचन का सत्यापन करने वाला व्यक्ति अपने अभिवचनों के समर्थन में शपथ-पत्र देगा।

न्यायालयों में प्रस्तुत किये जाने वाले अभिवचनों पर पक्षकार द्वारा सत्यापन अर्थात् सत्य होने का प्रमाण पत्र देना आवश्यक है। इस सत्यापन के लिए शर्तें व तरीका नियम 15 में बताया गया है।

सत्यापन की शर्तें - (नियम 15) - निम्नलिखित शर्तें एक विधिमान्य (वैध) सत्यापन के लिए आवश्यक हैं-

यदि किसी प्रवृत्त (लागू) विधि में और कोई दूसरा उपबंध न हो, तो सत्यापन का यह नियम प्रत्येक अभिवचन पर लागू होगा,

सत्यापन कौन कर सकता है-

(i) अभिवचन करने वाला पक्षकार, या

(ii) उन पक्षकारों में से एक, या

(iii) कोई दूसरा व्यक्ति, जो उस मामले के तथ्यों से परिचित है और जिसके बारे में न्यायालय का समाधान हो गया है-

अभिवचन के पद-भाग में अर्थात् अन्त में नीचे, उसे सत्यापित करेगा।

सत्यापित करने वाला व्यक्ति यह सत्यापित करेगा कि

(i) कौन-सा पैरा यह अपने निजी ज्ञान से सत्यापित करता है और

(ii) कौन-सा पैरा ऐसी जानकारी के आधार पर सत्यापित करता है, जो उसे मिली है और जिसके बारे में उसे विश्वास है कि यह सत्य है करेगा।

हस्ताक्षर - सत्यापन पर वह व्यक्ति हस्ताक्षर करेगा तथा तारीख (दिनांक) व स्थान का उल्लेख होगा।

सत्यापन का तरीका - नियम 5 के उपनियम (2) व (3) के अनुसार अभिवचन के पैरों की संख्या बताते हुए निजी ज्ञान के आधार पर या ऐसी जानकारी के आधार पर सत्यापन किया जाता है, जो सत्य है। सत्यापन के नीचे हस्ताक्षर, दिनांक व स्थान अंकित किया जाता है। न्यायालयों ने सत्यापन में मेरी जानकारी की सीमा तक सही है पैरा से तक की अन्तर्वस्तु मेरे श्रेष्ठतम ज्ञान व निर्देशों के अनुसार सत्य है अन्तर्वस्तु तात्विक रूप से सही है इन शब्दावलियों को पर्याप्त नहीं माना है।

सत्यापन का उदाहरण इस प्रकार होगा-

"मैं, आत्मज आयु वर्ष निवासी यह सत्यापित करता हूँ कि उक्त वादपत्र/प्रतिवादपत्र का पैरा सं. 1 से 6 तक तथा प्रार्थना का पद मेरे निजी ज्ञान के आधार पर सत्य है और पैरा सं. 7 व 8 ऐसो जानकारी के आधार पर जो मुझे मिली है और जिसके बारे में मेरा विश्वास है कि वह सत्य है तथ पैरा सं. 9 से 11 विधिक होकर मेरे अभिभाषक महोदय प्रमाणे सत्य एवं सही हैं। यह सत्यापन मैंने आज दिनांक को (स्थान) में हस्ताक्षरित किया।

वादी/प्रतिवादी (पक्षकार)

इसके साथ उपधारा (4) के अनुसार अभिवचनों के समर्थन में एक शपथ-पत्र दिया जावेगा, परन्तु यह शपथ-पत्र इस वाद में साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकेगा।

न्यायालय निर्णयों का सारांश- नियम 15 के अधीन सत्यापन महत्वपूर्ण होता है। असत्य सत्यापन करने पर दाण्डिक (फौजदारी) कार्यवाही की जा सकती है। असत्य अभिवचन को रोकने के उद्देश्य से सत्यापन करवाया जाता है, ताकि ऐसे अभिवचन करने वाले का दायित्व निर्धारित किया जा सके। यह नियम निर्वाचन याचिकाओं पर भी लागू होता है और दोषपूर्ण सत्यापन के कारण किसी वाद या याचिका को खारिज करना आवश्यक नहीं है। उसका संशोधन करने के लिए अवसर देना एक साधारण उपाय व तरीका है। पक्षकारों के अलावा अन्य कोई व्यक्ति भी जो उस मामले में तथ्यों से परिचित है, सत्यापन कर सकेगा।

दोषपूर्ण सत्यापन का प्रभाव - दोषपूर्ण सत्यापन से अभिवचन शून्य नहीं हो जाता, क्योंकि संशोधन करने के लिये आवेदन देकर इस दोष को दूर किया जा सकता है। बैंक के प्राधिकृत एजेंट द्वारा वादपत्र पर हस्ताक्षर कर सत्यापन किया गया, जो कि उस मामले के तथ्यों को जानता था। प्रतिवादी ने यह दर्शित नहीं किया कि एजेंट हस्ताक्षर करने व सत्यापन करने के लिये प्राधिकृत नहीं था। अतः वादपत्र सही रूप से हस्ताक्षरित और सत्यापित माना गया। सत्यापन एवं शपथपत्रों के सत्यापन में कमी (Defect), ऐसी चूक को दूर करने के लिए पक्षकारों को अवसर दिया जा सकता है।

निष्पादन के आवेदन को जो उस मामले में तथ्यों से परिचित कोई व्यक्ति सत्यापित कर सकता है और ऐसा आवेदन परिसीमा अधिनियम के अधीन विहित परिसीमा को बचाने के लिए पर्याप्त होगा। बेदखली के वाद में एक भाई के पास अन्य भाइयों को ओर से सामान्य अधिकार-पत्र था, उसके द्वारा उन सबको ओर से बेदखली आवेदन पर हस्ताक्षर और सत्यापन करना विधिमान्य है।

एकाधिकार फर्म के नाम से वाद फाइल किया गया, जिसमें वादपत्र का सत्यापन उस फर्म के व्यवस्थापक द्वारा किया गया, एकाधिकार द्वारा नहीं। विचारण के समय मुख्तारनामा (Power of attorney) पेश कर दिया गया, अतः नियमों को सारभूत अनुपालना हो जाने से वाद चलने योग्य माना गया। यदि अधिकार पत्र वाद के दिनांक में दिया गया था, पर वह उस पिछले दिनांक से लागू माना गया, जब वाद-पत्र पेश किया गया था। संविदा अधिनियम की धारा 196 तथा 199 का अनुसरण करते हुए इस कार्यवाही से कमी पूर्ति मानी गयी।

यह अपेक्षा कि वादपत्र वादी या उसकी ओर से हस्ताक्षरित और सत्यापित होना चाहिए केवल प्रक्रिया का विषय है। यदि वादपत्र हस्ताक्षरित और सत्यापित नहीं है तो वादी वाद के किसी प्रक्रम पर इस कामों की पूर्ति कर सकता है। जब कोई व्यक्ति अभिकर्ता को हैसियत से स्वत्वधारी (प्रोपराइटर) के हस्ताक्षरों के बिना वाद-पत्र फाइल करता है और न्यायालय का इस बाबत समाधान करा देता है कि वह वाद-पत्र हस्ताक्षर करने और उसे सत्यापित करने के लिए प्राधिकृत किया गया है या वह ऐसा प्राधिकार न्यायालय में पेश कर देता है तो वाद-पत्र की बाबत यह समझा जावेगा कि वह उक्त संहिता के आदेश 6 के नियम 14 और 15 में अधिकथित सिद्धांत और सार के अनुरूप फाइल किया गया है।

ऐसा वाद-पत्र युक्तियुक्त रूप से चलने योग्य है। सत्यापन केवल औपचारिक मात्र नहीं है। लेकिन सत्यापन को चूक को संशोधित करके दूर किया जा सकता है। जब लिखित कथन में वादपत्र का उचित सत्यापन नहीं होने का तर्क नहीं उठाया गया, तो इसे विचारण के समय नहीं उठाया जा सकता। चुनाव याचिका में अनुसूची का सत्यापन नहीं करना गंभीर नहीं है। यह अनियमितता है, अवैधता नहीं। अतः चुनाव याचिका संधारणीय है।

निर्वाचन-याचिका का सत्यापन आदेश 5 नियम 15 के अधीन निर्वाचन याचिका का सत्यापन धारा 83 (1) (ग), जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार होता है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी याचियों द्वारा इसका सत्यापन किया जाये। उनमें से एक द्वारा या तथ्यों के जानकार अन्य किसी व्यक्ति द्वारा सत्यापन करना पर्याप्त है। परन्तु ज्ञान का स्त्रोत लिखने की आवश्यकता नहीं है।

अभिवचन का सत्यापन - भ्रष्ट आचरण के आधार पर चुनाव याचिका दायर की गई। इसके सत्यापन हेतु दो शपथ-पत्रों को आवश्यकता नहीं है। केवल आदेश 6 नियम 15(4) सि.प्र.सं. के अनुसार ही शपथपत्र दिया जायेगा। अभिवचन का सत्यापन व अभिवचन के समर्थन में शपथ-पत्र दोनों भिन्न हैं। शपथ-पत्र अकेला ही दस्तावेज है यह सत्यापन का भाग नहीं है।

आदेश 6 नियम 15 को यह अपेक्षा नहीं है कि सत्यापन वादपत्र के नीचे विना स्थान छोड़े किया जाना चाहिये। इसका कोई महत्त्व नहीं है कि अन्तिम पैरा के बाद कुछ स्थान छोड़ा गया है या बिना स्थान छोड़े सत्यापन किया गया है।

अभिवचन का सत्यापन - वादपत्र में कुछ चरणों (पैराग्राफरों) का सत्यापन नहीं किया गया। यह कोई ऐसा दोष नहीं है, जो उस मामले के गुणागुण या न्यायालय की अधिकारिता को प्रभावित करता हो। विवाह-विच्छेद की संयुक्त अर्जी पर सत्यापन यह कहा गया कि वास्तव में संयुक्त अर्जी एक पक्षकार ने सत्यापित की थी। उक्त सत्यापन संहिता के आदेश 6 नियम 15 में उल्लेखित सभी अपेक्षाओं के एकदम अनुसार नहीं है।

एक पक्षकार ने घोषणा के नीचे हस्ताक्षर किये हैं कि उपर्युक्त सभी तथ्य मेरे ज्ञान और सूचना के अनुसार सत्य हैं। संहिता के आदेश 6 नियम 5 के अनुसार यह काफी है कि अभिवचन करने वाले पक्षकारों में से कोई अभिवचन का सत्यापन कर दे। संयुक्त अर्जी में उपनियम (2) की इस अपेक्षा का अनुपालन नहीं किया गया है कि सत्यापन करने वाला व्यक्ति अभिवचन के संख्यांकित पैराओं का निर्देश करते हुए यह विनिर्दिष्ट करेगा कि कौन सा पैरा यह निजी ज्ञान के आधार पर सत्यापित करता है और कौन सा पैरा वह ऐसी जानकारी के आधार पर सत्यापित करता है जो उसे मिली है और जिसके बारे में यह विश्वास है कि वह सत्य है। हालांकि अधिकांश न्यायिक नजीर इस दृष्टिकोण के पक्ष में है कि यदि इस का सारवान् रूप से अनुपालन कर दिया जाता है, तो कोई अभिवचन केवल इसलिए अविधिमान्य नहीं बन जाता कि अभिवचन में कुछ खामियां रह गई हैं।

सत्यापन में त्रुटि सदैव घातक नहीं इस बात की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिये कि निचले न्यायालयों में अभिवचन या सत्यापन के नियमों का कठोरता से अनुपालन नहीं किया जाता है। किसी भी व्यक्ति को निचले न्यायालयों में उसी दक्षता की आशा नहीं करनी चाहिये, जो उच्च न्यायालय में उपलब्ध है। इसके साथ ही सत्यापन में त्रुटि सदैव घातक नहीं होती है। रिट याचिका में इसे कुछ परिस्थितियों में घातक माना जाता है। किन्तु न्यायालय को सत्यापन की त्रुटि माफ करने के लिए सदैव विवेकाधिकार होता है।

अन्य (दूसरे) शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सत्यापन में त्रुटि साक्ष्य की त्रुटि है और न्यायालय को सत्यापन में त्रुटि की उपेक्षा करने का विवेकाधिकार है। इस मामले में अवयस्क के मामलों में सत्यापन में त्रुटि के आधार कर शपथ पत्रों की अपेक्षा (आशा) करना समीचीन (ठीक) नहीं कहा जा सकता।

रिट याचिकाओं में उचित रूप से सत्यापित न किए गए शपथ-पत्रों की उपेक्षा करने के लिए उच्च न्यायालय की अधिकारिता के बारे में कोई विवाद नहीं हो सकता। इस सिद्धान्त के लिए कोई निर्णय या उदाहरण उद्‌धृत करने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु उच्च न्यायालय में संरक्षकता की कार्यवाहियों के बीच बहुत अन्तर है।

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