क्या किसी आतंकवादी संगठन से मात्र जुड़ाव UAPA के तहत अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है ?
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय थवाहा फसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2021) ने Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967 (UAPA) के तहत महत्वपूर्ण प्रावधानों की व्याख्या की। यह मामला इस पर केंद्रित था कि क्या किसी आतंकवादी संगठन से मात्र जुड़ाव या उससे संबंधित सामग्री का कब्जा (Possession) अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है।
कानूनी ढांचा और प्रावधानों की चर्चा (Legal Framework and Provisions Examined)
इस मामले में UAPA की धारा 38 और 39 पर ध्यान केंद्रित किया गया।
• धारा 38: यह उस व्यक्ति को अपराधी ठहराती है जो किसी आतंकवादी संगठन से जुड़ता है या उसके साथ जुड़ा हुआ होने का दावा करता है, यदि यह जुड़ाव संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य (Intention) से है।
• धारा 39: यह किसी आतंकवादी संगठन को समर्थन (Support) देने वाले कृत्यों को दंडनीय बनाती है, जैसे समर्थन के लिए लोगों को आमंत्रित करना, बैठकें आयोजित करना, या भाषण देना, यदि ये कृत्य संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किए गए हों।
इसके अलावा, धारा 43D(5) के तहत आतंकवादी गतिविधियों के मामलों में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें (Stringent Conditions) लागू होती हैं।
मंशा और इरादा (Mens Rea and the Requirement of Intention)
इस मामले का मुख्य मुद्दा "इरादा" (Intention) और "जुड़ाव" (Association) की व्याख्या था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मात्र किसी आतंकवादी संगठन से संबंधित साहित्य (Literature) या सामग्री का कब्जा होना, अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अभियोजन पक्ष (Prosecution) को यह दिखाना होगा कि आरोपी का इरादा संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने का था।
यह व्याख्या पहले के निर्णयों जैसे People's Union for Civil Liberties v. Union of India (2004) और Arup Bhuyan v. State of Assam (2011) के अनुरूप है, जिनमें कहा गया था कि अपराध के लिए "मंशा" (Mens Rea) आवश्यक है।
सबूत और प्रारंभिक मामला (Evidence and Prima Facie Case)
कोर्ट ने इस बात को दोहराया कि क्या प्रस्तुत सबूत आरोपी के इरादे को आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए दर्शाते हैं।
National Investigation Agency v. Zahoor Ahmad Shah Watali (2019) के मामले का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने कहा कि जमानत (Bail) के चरण में अदालत को सबूतों के गुण-दोष (Merits) पर विचार नहीं करना चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि क्या अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत आरोप और सबूत उचित रूप से आरोपी की मंशा को दर्शाते हैं।
संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Constitutional Rights)
कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) और संविधान के भाग III के तहत अधिकारों (Rights) के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
Union of India v. K.A. Najeeb (2021) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विशेष कानूनों के तहत कठोर जमानत शर्तें (Stringent Bail Conditions) संवैधानिक अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकतीं, विशेष रूप से स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Liberty) को।
निर्णय और अवलोकन (Observations and Judgment)
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि प्रस्तुत सबूतों और सामग्री से यह साबित नहीं होता कि आरोपी का इरादा आतंकवादी संगठन CPI (Maoist) की गतिविधियों को बढ़ावा देना था।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि केवल सामग्री का कब्जा (Possession) और कुछ व्यक्तियों के साथ जुड़ाव, UAPA की धारा 38 और 39 के तहत अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए, आरोपी को जमानत देने के लिए धारा 43D(5) की कठोर शर्तें लागू नहीं थीं।
व्यापक प्रभाव (Broader Implications)
यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि Anti-Terror Laws की व्याख्या संवैधानिक सिद्धांतों (Constitutional Principles) के अनुरूप की जाए। यह पुष्टि करता है कि UAPA के तहत दायित्व (Liability) को साबित करने के लिए इरादे और सक्रिय भागीदारी (Active Participation) का स्पष्ट प्रमाण आवश्यक है।
थवाहा फसल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का निर्णय इस बात को पुनः स्थापित करता है कि UAPA के तहत आपराधिक दायित्व (Criminal Liability) को स्पष्ट सबूतों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।
यह न केवल कानून के शासन (Rule of Law) को मजबूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण (Encroachment) न हो।