सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 आदेश भाग 77: आदेश 16(क) के प्रावधान

Update: 2024-01-10 04:47 GMT

सिविल प्रक्रिया संहिता,1908(Civil Procedure Code,1908) का आदेश 16(क) कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध साक्षियों की हाजिरी के प्रावधान करता है। यह एक छोटा सा आदेश है जो यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई साक्षी जेल में निरुद्ध है तब उसकी हाजिरी किसी सिविल वाद में कैसे करवाई जा सकती है। इस आदेश के अंतर्गत कुल 7 नियम समाविष्ट किये गए हैं जिनका इस आलेख में उल्लेख किया जा रहा है, इस प्रकार इस आलेख के अंतर्गत समस्त आदेश 16(क) पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

नियम-1 परिभाषाएं-इस आदेश में -

(क) "निरुद्ध" के अन्तर्गत निवारक निरोध के लिए

उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध भी है:

(ख) कारागार के अन्तर्गत निम्नलिखित भी हैं-

(1) ऐसा कोई स्थान जिसे राज्य सरकार ने साधारण या विशेष आदेश द्वारा अतिरिक्त जेल घोषित किया है, और

(2) एक सुधारात्मक सुविधा, बोर्स्टल संस्था या अन्य समान संस्था।

नियम-2 साक्ष्य देने के लिए बंदियों को हाजिर करने की अपेक्षा करने की शक्ति-जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि राज्य के भीतर कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्ति का साक्ष्य वाद में तात्विक है यहां न्यायालय कारागार के भारसाधक अधिकारी से यह अपेक्षा करने वाला आदेश कर सकेगा कि वह उस व्यक्ति को साक्ष्य देने के लिए न्यायालय के समक्ष पेश करे:

परन्तु यदि कारागार से न्याय सदन की दूरी पचीस किलोमीटर से अधिक है तो ऐसा आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक न्यायालय का यह समाधान नहीं हो जाता है कि कमीशन द्वारा ऐसे व्यक्ति की परीक्षा पर्याप्त नहीं होगी।

नियम-3 न्यायालय में व्यय का संदत्त किया जाना (1) न्यायालय नियम (2) के अधीन कोई आदेश करने के पूर्व उस पक्षकार से, जिसकी प्रेरणा पर या जिसके फायदे के लिए आदेश निकाला जाना है, यह अपेक्षा करेगा कि वह न्यायालय में ऐसी धनराशि संदत्त करें जो न्यायालय को आदेश के निष्पादन के व्ययों को चुकाने के लिए जिसके अन्तर्गत साक्षी को दिए गए अनुरक्षक के यात्रा व्यय और अन्य व्यय भी है, पर्याप्त प्रतीत होती है।

(2) जहां न्यायालय उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है वहां ऐसे व्ययों का मापमान नियत करने में, इस निमित्त उच्च न्यायालय द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों को ध्यान में रखा जाएगा।

नियम-4 नियम 2 के प्रवर्तन से कुछ व्यक्तियों की अपवर्जित करने की राज्य सरकार की शक्ति - (1) राज्य सरकार उपनियम (2) में विनिर्दिष्ट बातों को ध्यान में रखते हुए किसी भी समय साधारण या विशेष आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि किसी व्यक्ति या वर्ग के व्यक्तियों को ऐसे कारागार से नहीं हटाया जाएगा जिसमें उसे या उन्हें वह राज्य सरकार द्वारा किए गए आदेश की तारीख के पूर्व या उससे पश्चात किया गया हो, ऐसे व्यक्ति या ऐसे वर्ग के व्यक्तियों के बारे में प्रभावी नहीं होगा।

(2) राज्य सरकार उपनियम (1) के अधीन आदेश करने से पूर्व निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेगी

अर्थात्:-

(क) उस अपराध का स्वरूप जिसके लिए या वे आधार जिन पर व्यक्ति को या वर्ग के व्यक्तियों को कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध करने का आदेश दिया गया है;

(ख) यदि उस व्यक्ति को या उस वर्ग के व्यक्तियों को कारागार से हटाने की अनुज्ञा दी जाती है तो लोक व्यवस्था में विघ्न की संभाव्यता, और

(ग) साधारणतया लोकहित।

नियम-5 कारागार से भारसाधक अधिकारी का कुछ मामले में आदेश की कार्यान्वित न करना-जहां वह व्यक्ति जिसके सम्बन्ध में नियम 2 के अधीन किया गया है,-

(क) ऐसा व्यक्ति है जिसकी बाबत कारागार से सम्बद्ध चिकित्सा अधिकारी ने यह प्रमाणित किया है कि वह बीमारी या अंगशैथिल्य के कारण कारागार से हटाए जाने के योग्य नहीं है, अथवा

(ख) विचारण के लिए सुपुर्दगी के अधीन है या विचारण के लम्बित रहने तक के लिए या प्रारम्भिक अन्वेषण के लम्बित रहने तक के लिए प्रतिप्रेक्षण के अधीन हैं, अथवा

(ग) ऐसी अवधि के लिए अभिरक्षा में है जो आदेश का अनुपालन करने के लिए और उस कारागार में जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है वापस ले आने के लिए अपेक्षित समय के समाप्त होने के पूर्व समाप्त हो जाएगी, अथवा

(घ) ऐसा व्यक्ति हैं जिसको राज्य सरकार द्वारा नियम 4 के अधीन किया गया आदेश लागू होता वहां कारागार का भारसाधक अधिकारी न्यायालय के आदेश को कार्यान्चित नही करेगा और ऐसा न करने के कारणों का विवरण न्यायालय को भेजेगा।

नियम-6 बन्दी का न्यायालय में अभिरक्षा में लाया जाना कारागार का भारसाधक अधिकारी किसी अन्य मामले में न्यायालय का आदेश परिदत्त किए जाने पर उसमें नामित व्यक्ति को न्यायालय में भिजवाएगा जिससे वह उस आदेश में उल्लिखित समय पर उपस्थित हो सके और उसे न्यायालय में या उसके पास अभिरक्षा में तब तक रखवाएगा जब तक उसकी परीक्षा न कर ली जाए या जब तक न्यायालय उसको उस कारागार में जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है, वापस ले जाने के लिए उसे प्राधिकृत न करे।

नियम-7 कारागार में साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन निकालने की शक्ति (1) जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि कारागार में, चाहे वह राज्य के भीतर हो या भारत में अन्यत्र हो, परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्ति का साक्ष्य वाद में तात्त्विक है, किन्तु ऐसे व्यक्ति की हाजिरी इस आदेश के पूर्ववर्ती उपबन्धों के अधीन सुनिश्चित की जा सकती है वहां न्यायालय उस व्यक्ति की परीक्षा उस कारागार में जिसमे वह परिरुद्ध या निरुद्ध है, करने के लिए कमीशन निकाल सकेगा।

(2) आदेश 26 के उपबन्ध जहां तक हो सके कारागार में ऐसे व्यक्ति की कमीशन द्वारा परीक्षा के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होगे जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति की कमीशन द्वारा परीक्षा के सम्बन्ध में लागू होते हैं।

1976 के संशोधन द्वारा आदेश 16 (क) कारागार में रोके गये व्यक्ति को साक्षी के रूप में न्यायालय में उपस्थित करने के बारे में व्यवस्था करने के लिए नया जोड़ा गया है। नियम 1 में दो शब्दों निरुद्ध और कारागार की परिभाषायें दी गयी हैं। नियम 2 के अनुसार बंदी को हाजिर करने के लिए न्यायालय कारागार (जेल) के भारसाधक अधिकारी को आदेश देगा, परन्तु कारागार और न्यायालय सदन के बीच 25 किलोमीटर से अधिक दूरी होने पर कमीशन द्वारा उस साक्षी की परीक्षा संभव न होने पर ही ऐसा आदेश देगा।

इसके लिए उस साक्षी तथा उसके अनुसंरक्षक का यात्रा व्यय आदि सब खर्चे संबंधित पक्षकार जमा करायेगा राज्य सरकार कुछ व्यक्तियों को साक्षी देने के लिए जाने से रोक सकती है और कारागार का भारसाधक अधिकारी भी ऐसे आदेश को कार्यान्वित नहीं कर सकेगा, पर इसके कारणों का विवरण न्यायालय को भेजेगा। यह व्यवस्था इसलिए दी गई जिसके किसी सिविल वाद के कारण न्याय प्रशासन में कोई परेशानी नहीं आए।

किसी बंदी को जेल से साक्ष्य हेतु लाया जा सकता है किंतु इस आदेश के नियमों के अंतर्गत ही लाया जा सकता है और ऐसे साक्षी को बुलाने का खर्च भी पक्षकार को देना होगा जिसके द्वारा ऐसे साक्षी को बुलाया जा रहा है। ऐसे बन्दी को न्यायालय में अभिरक्षा (कस्टडी) में ही लाया जाएगा। न्यायालय जेल में रोके गये साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन निकाल सकता है जो आदेश 6 के अनुसार होगा।

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